बिसर गई हैं मुखर वेदना
उर अंतस की पीड़ लिखूंगी।
मन मयंक मद्धिम मयूख की
वृथा विरह अनुभूति लिखूंगी.....
प्रीति
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14 AUG 2018 AT 9:16
3 MAR 2021 AT 13:52
श्मशान धरा ये,
कौन यहाँ पर जिंदा है?
विस्तार ह्रदय का व्योम न छूता,
हृदय बड़ा शर्मिंदा है?
लाश का सफ़र,
टूटे पंख-सा रहता उतना ही।
वायु जितना चाहे,
छूता अंबर उतना ही।
अंतिम गति विदित नहीं,
कितना साथ निभाए।
कब लाश नीड़ तक पहुँचें,
कौन पाँव पहुँचाए।
( पूरा अनुशीर्षक में )-