शब्द-शब्द पिरोता हूँ ग़ज़लों औऱ छन्दों में,
इनमें भी कुछ मर्म का अब सार होना चाहिये
राष्ट्रहिय के निजअंक में आक्रोशित सा रहते हैं
अब हाथों में सच्चाई का हथियार होना चाहिये
कल शहादत पर उठी हैं जो आवाजें यहाँ ,
इन्हें भी अब शर्मसार होना चाहिये
शत्रु में वो तेज नही जो हमें मिटा सकें
बस अब देश के जयचन्दों पर वार होना चाहिए
✍️-जय अवस्थी
📞 +91-8318352606-
29 APR 2019 AT 10:41
7 OCT 2020 AT 16:48
शत्रु का भय नहीं, करता रहे वह लाख छल-छंद !
मित्र शत्रु का भेद मिटा कर, जीत गया जयचन्द !!-
17 JUL 2018 AT 7:52
विचारान्ध धृतराष्ट्र भी न जाने कौन सा सुरमा लगाने लगे है
मस्तिष्क से अन्धे है फिर भी इन्हे जयचन्द नजर आने लगे है
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