मैं दिन खत्म होने का इंतजार करता हूँ।
क्युकी मैं कल का सूरज देखना चाहता हूँ।।
जिस प्रकार प्रकृति की खूबसूरती हम सब कम,
करते जा रहे हैं।।।
हो सकता हैं की कल के सूरज में भी दाग हो।।।।-
ये दुनिया तभी तक खुबशुरत लगेगी जब प्रकृति सुरक्षित हैं!
क्योंकि जब तक प्रकृति सुरक्षित हैं, तब तक मनुष्य सुरक्षित हैं!!
क्योंकि प्रकृति से जुडा हुआँ मनुष्य हैं,
मनुष्य से प्रकृति नहीं!!!-
आवारा हूँ बस तेरी एक झलक को देखने के लिए!
प्यार की पहली सिरी पे हूँ इस लिए आवारा हूँ!!
बस तू हाँ कह दे ये आवारा तेरा प्यार पाकर रुक जाएगा!!-
तुम चाहो तो मै अपनी सारी खुशी तेरे नाम कर दु।
लेकिन मेरी माँ की खुशी को ऐसे बदनाम मत क्या कर।।
वो ना होती मेरे पास, आज वो खुशी तेरे पास ना होती।।।-
वो सुबहा कब आएगी जो शाम में बदल गई हैं!
वो सूरज कब निकलेगा जो प्रदूषण के धुओ से छुप गया हैं!!
वो सुबह की पक्षियों की चहचहाहट कब सुनाई देगी, जो आज मनुष्य के विकास के आवाज में दब गई हैं!!!-
कोरोना वायरस
ये जो मंजर हैं वो खंजर बन चुका हैं!
ये मनुष्य के लिए मौत का समुन्द्र बन चुका हैं!!
कृपया कर के घर मे ही रहे,
ये कोरोना मानव जाति के लिए जहर बन चुका हैं!!-
चोट लगी थी मुझे और मैं रोया भी,
माँ ने मुझे अपनी गोद में लेकर ,
अपने आँचल से मेरा आशु पोछा,
और मैं एकदम से चुप हो गया,
जैसे मुझे कुछ हुआँ ही नहीं।-
चलो चलते है एक सफर पे जिससे ज़िन्दगी कहते है
देखते है कौन कहा मिलता और कौन कहा छोड़ता है
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अगर वो "भोजन" का हो या हो "धन" का,
तब ही अक्षय कहलाए ?
दिए तो थे यह अक्षय संसाधन, हम ही तो संभाल न पाए,
" सूर्य, अथाह सागर, असीमित प्राणवायु "
इन्हें अक्षय होते हुए भी, मनुष्य की तृष्णा प्रदूषित कर गई,
अब बन रहे हैं ये मनुष्य के अक्षय नाश की शरणस्थली,
कभी भूमंडलीय ऊष्मीकरण, तो कभी कैंसर,
कभी सुनामी, तो कभी तौकते,
कभी प्लेग, तो कभी कोरोना के रूप में...-
ध्येय चाहिए मीरा सा
तभी तो विष
अमृत होता है न
करना होता है समर्पित
पूर्ण रूप से
तभी तो मिलता है
प्रेम का वो
अक्षय अमृत
तपस्या ही होती है न
मीरा बनना
सुखो के बीच
केवल श्याम रटना
तभी तो जुड़ पाता है नाम
एक अलौकिक के साथ
एक लौकिक का।
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