रास्ता चाहे जैसा हो, चलते चलते कट जता है. दुख दर्द चाहे जितना हो, कहने सुनने से बँट जाता है. अंतरिक्ष मे जलद जमाव, स्थिर नहीं रहता एक स्थान पर, कभी तेज़ आवर्षण से, तो कभी वात से छँट जाता है.
इस पल में जितना भी कुछ था वह यूहीं कैसे बीत गया। खाली होता यह जीवन घट अभिलाषाओं में रीत गया। जो बीत गया वह लौटा क्या खाली भरता है आखिर कब। सब रंगमंच के पात्र यहां पलभर के किस्से में हमसब।
प्रीति
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