पुखराज   (पुखराज)
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Joined 14 July 2018


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मेरे रब की मेहरबानी यारों भला मैं बताऊँ क्या-क्या,
गिरते को सम्हाला है मुझे क़माल जताऊँ क्या-क्या।

मांगने से पहले ही झोली भर दी मेरे ख़ुदा ने हरबार,
चाहा उससे ज़्यादा दिया अहसान गिनाऊँ क्या-क्या।

बुरा वक़्त भी आया जीवन में पर मुझे तोड़ ना सका,
मेरे ख़ुदा की करामात भला यारों दिखाऊँ क्या-क्या।

अलग-अलग रंग-रूप में ख़ुदा साथ देता रहा है मेरा,
है कितने रंग-रूप मेरे ख़ुदा के गुनगुनाऊँ क्या-क्या।

रब की रहमतों से ही रौशन ज़िन्दगियाँ कहें "पुखराज"
दास्ताँ उसकी मेहरबानियों की अब सुनाऊँ क्या-क्या।

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30 APR AT 22:59

उम्मीद और यक़ीन हो तो ये तस्वीर बदल सकती है,
तेरी बिगड़ी हुई तक़दीर भी फ़िर से सँवर सकती है।

हो गर इरादा मन में पक्का कुछ भी असंभव नहीं है,
बुलंद हौसलों से मज़बूत चट्टान भी पिघल सकती है।

ऐसा कौन होगा भला यहाँ पे जिसने गलतियाँ ना की,
गलतियों से सीखकर भी ये ज़िन्दगी संभल सकती है।

ग़लत कर के कभी यह मत सोचना तुम ख़ुश रह लोगे,
नियत अच्छी रख ज़िन्दगी अच्छे से निकल सकती है।

जीवन में इक अच्छा इँसान ज़रूर बनों कहें "पुखराज"
चाहत हो तो ज़िन्दगी जैसा चाहों वैसी ढल सकती है।

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30 APR AT 22:09

उम्मीद और यक़ीन हो तो हर हाल में ज़िन्दगी अच्छी,
जो भी होगा अच्छा होगा ख़ुदा की ऐसी बंदगी अच्छी।

एक का दर्द दुसरे की आँखों से आँसू बन छलक जाए,
रिश्तों में प्रेम अपनापन भावनात्मक संजीदगी अच्छी।

यह वक़्त गहरे से भी गहरे घाव को भर देता है यारों,
गर लफ़्ज़ दिलों को छूँ जाए तो समझो शायरी अच्छी।

प्रतिस्पर्धा ख़ुद से हो और कुछ कर गुजरने का जज्बा,
वक़्त के साथ और बेहतर बनूँ मैं ऐसी तिश्रगी अच्छी।

दोस्त बिना कहें ही हर बात है समझते कहें "पुखराज"
अगर जिससे कहना पड़े फ़िर उससे ख़ामुशी अच्छी।

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28 APR AT 23:03

दुनिया की भीड़ से दूर ये सन्नाटा अच्छा लगता है,
गांव में बीते बचपन का किस्सा अच्छा लगता है।

ज़माने से क़दम मिलाकर ज़रूर चलना होगा पर,
आंखों में थोड़ा सा हया का पर्दा अच्छा लगता है।

ज़मीं में जुड़े रहकर भी आसमाँ छूँ सकते हो तुम,
दिखावा से दूर बीते जीवन ऐसा अच्छा लगता है।

लफ़्ज़ घाव भी देते लफ़्ज़ मरहम भी बन जाते हैं,
दिल छूँ लेते वहीं मुंह से निकला अच्छा लगता है।

अकेले, तन्हा रहना सीख लो तुम कहें "पुखराज"
फ़िर तुम भी ये कहोगे हर रस्ता अच्छा लगता है।

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28 APR AT 20:15

अगर तुमसे दूर रह कर जीना पड़ा तो ख़ाक जीना है,
यूं जीने की हसरत नहीं जिसमें हरपल आँसू पीना है।

जब तुम साथ होते हो तो हर लम्हा उत्सव लगता है,
तुमसे दूर कटते नही लम्हे मुश्किल यह दर्द सीना है।

तुमसे बिछड़ कर यार होता मेरा यहाँ पर बुरा हाल है,
मेरी ये उदास सूरत देखकर अब तो हंसता आईना है।

इक तेरे सिवा सब कुछ तो है यहाँ पर फ़िर भी देखा,
मेरे मन-मस्तिष्क में अजीबो-गरीब वीरान बसता है।

जल्दी लौट आया कीजिए जाकर यार कहें "पुखराज"
इस जुदाई ने तो मेरा हरपल चैन-सुकून सब छीना है।

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27 APR AT 22:08

दौलत नहीं शोहरत नहीं चाहूँ सुकून ज़िन्दगी में,
बाक़ी तेरी रज़ा ख़ुदा मैं तो ख़ुश हूँ तेरी बंदगी में।

जबसे वो मिले है सब कुछ अच्छा लगने लगा है,
मज़ा आ रहा है जीने में उनके संग दिल्लगी में।

वो मुस्कुराए तो संग मेरी ये ज़िन्दगी मुस्कुराती है,
मेरी तो खुशियाँ छिपीं हुई है मेरे यार की हँसी में।

फ़िक्र इँसानियत के लिए भी दिल में मेरे बनी रहें,
भूलकर भी पड़ना ना चाहूँ झूठ, मक्कारी बदी में।

छलावा दिखावा ना हो क़िरदार में कहें "पुखराज"
सादगी बनी रहें भटकूँ न इस चकाचौंध रोशनी में।

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25 APR AT 22:28

मेरी पसंद लाज़वाब है तुम ख़ुद को ही देख लो यार,
मेरे लफ़्ज़ों की रूह तुम हो मेरी ग़ज़लें पढ़ लो यार।

तुम्हें क्यों यकीं नहीं आता कि मैं सिर्फ़ तुम्हारा ही हूँ,
सीने से लगकर मेरे दिल की ये धड़कनें सुन लो यार।

दीवाना हूँ तेरा लो खुलकर आज सरे-आम कहता हूँ,
मुझको ही दुनिया की भीड़ में अब तुम चुन लो यार।

और कब तलक भला यूँ ही दूर रह तड़पाओगे मुझे,
तन्हा अकेला हूँ आ-कर अपनी बाहों में भर लो यार।

तू मिल जाए मेरी ज़िन्दगी सँवर जाए कहें "पुखराज"
संग मेरे अपनी ज़िन्दगी का हर सपना बुन लो यार।

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24 APR AT 22:29

तेरी भीगी लटों से उलझने का जी चाहता है,
तेरी बाहों में आके सिमटने का जी चाहता है।

बहुत तन्हा और अकेला हूँ अंदर से टूट हुआ,
तेरे पहलू में आके बिखरने को जी चाहता है।

जी चाहता तन-मन, ख़ुद को ही तुम्हें सौंप दूँ,
यार तेरी रूह तलक उतरने को जी चाहता है।

ख्वाहिश यहीं अब तुझ संग ही बीते ज़िन्दगी,
ये ज़िन्दगी तेरे नाम करने का जी चाहता है।

हो गया तेरे प्यार में फ़ना यार कहें "पुखराज"
तेरे प्यार में हद से गुज़रने का जी चाहता है।

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23 APR AT 20:40

सादगी में रहकर ही मुझे अपना क़िरदार निभाना है,
ज़मीं से जुड़े रहकर ही मुझको ये आसमां छूँ जाना है।

कोशिश यहीं है मेरी मानवीय गुणों को बनाए रखूँ मैं,
अपने कर्म एवं वचन से किसी का न दिल दुखाना है।

अनुशासन में जी-कर अपना जीवन आसान पाता हूँ,
मर्यादा में रहकर ही मुझे अपना ये जीवन बिताना है।

इँसानियत को ही सच्चा, सबसे बड़ा धर्म मानता हूँ मैं,
जाति-धर्म में ना पड़ इँसानियत की राह पे चलाना है।

कोशिश यह रहती मेरी सच को सच झूठ को झूठ कहूँ,
सीख-सीखकर ख़ुद को हरदम राहों में आगे बढ़ाना है।

जितना दिया मालिक ने उसमें ख़ुश हूँ कहें "पुखराज"
बीतते वक़्त के साथ ख़ुद को बेहतर इँसान बनाना है।

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22 APR AT 22:44

तुम्हारे हिस्से के आँसू मुझको ही मिल जाए यार,
मेरी सारी खुशियाँ ही तेरे होठों पे सज जाए यार।

कभी ना मिलें मज़बूर हालात ना कोई ग़म सताए,
तेरी ये ज़िन्दगी फूलों की मानिंद ख़िल जाए यार।

आँखें तेरी नम हो वो पल ज़िन्दगी कभी ना आए,
मेरी दुआओं से तेरा हर एक दर्द सिल जाए यार।

रोता हुआ इँसान भी तुम्हें देखकर तुझे मुस्कुरा दें,
तेरी सादगी देख पिघल हर सख़्त-दिल जाए यार।

जुद़ा हो-कर हम फ़िर रह ना सके कहें "पुखराज"
रूह तेरी-मेरी आपस में ऐसे घुल-मिल जाए यार।

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