Alok Pandey  
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Joined 10 September 2018


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22 MAR AT 18:18

"लाज़मी है" तो क्या बुरा मानूं
"आदमी है" तो सब कहा माने

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1 JUL 2022 AT 13:06

संवेदना के सर्वोच्च शिखर पर!
वेदना की अनुभूति! "क्या होगी आखिर"?
तुम कहो! "मालूम है मुझे"
"सब" कहो तो, आसान नही होगा!
टांकते हुवे तरकीब ने, बांटते हुवे गम से
कब पूछा मेरा हाल? बताओ तो जानू मैं
संभावित का सवाल!

और फिर! यूँ इतर ख़यालो के, एक दुनियां के चार पहनावें!
लूटकर बागबान कहते सब, लौटकर हम गुमान न जाने!
तरक्की हुई है शायद, ख़यालो की...
एक ने चढ़कर तो, दूसरे ने उतरकर
नाप लिया है ब्रह्माण्ड का हर इक सुदूर कोना
और अब शायद तुम कहो कि...🤔
मालूम नही मुझे!!

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30 JUN 2022 AT 12:47

सिवा मंजूर के, कोई शिकायत, खास न होती
परिंदा सर कटाए, तो बहुत, आवाज है होती

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28 JUN 2022 AT 8:47

समंदर कि हदों में कौन कितना किसके अंदर है
बना ही आसमा खुदगर्ज कमियां लाख अंदर है

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24 JUN 2022 AT 13:54

इक नदी और...
उसमें उलझे दो किनारों को

रस्सियों के तार नही टूटा करते
बांधने से वजन बढ़ जाता है बस

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24 JUN 2022 AT 10:12

नाहक़ ही मन ढूढ़ता, क्या हक़ मुझमे बात
दुविधा के इस देश मे, सुविधा के सब साथ

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8 MAR 2022 AT 11:47

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं आप सभी को💐🙏

कृपया रचना अनुशीर्षक में पढ़ें✍️🙏— % &

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29 JAN 2022 AT 15:23

करे क्या लूट वो ग़ालिब , दिवाला दिल की बस्ती का
कमी को हम नही रुख्सत , नमी को आंख फुर्सत है— % &

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29 JAN 2022 AT 13:03

"प्रेम" से बड़ा सुख कोई नही
और "यथार्थ" से बड़ा दुःख कोई नही
मैंने चुना जीवन मे, प्रेम और यथार्थ दोनो को!
प्रेम देने की सुखद प्रक्रिया
और यथार्थ "स्वीकार" करने की
बिना कुछ दिए कुछ लिया तो नही जाता,
और बिना कुछ लिए दिया भी नही जाता!
गठबंधन की प्रक्रिया से इतर,
एक मन का बंधन होता है!
जिसे स्वीकार करना होता है सबकुछ!
सुख-दुख, हानि-लाभ की संभावनाओं से इतर

और प्रेम तो स्वच्छंद होता है न!
यथार्थ भले ही संभावनाओं से घिरा हो
पर प्रेम किसी सम्भावित और स्वचलन कि
प्रक्रिया से दूर होता है।— % &

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29 JAN 2022 AT 10:45

कागजी पैरहन के जतन हर खुशी
हाल कैसे करे न कोई खुदकुशी— % &

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