बाबूजी, क्या नायाब तोहफा हो मेरे लिए आप,
अक्सर आपको देखकर ,अपने आप में खो जाता हूं मैं,
फिर थोड़ी देर बाद ,आपसे लिपटकर रो जाता हूं मैं ,
जब अकेला होता हूं ,आपके ख्वाबों में खो जाता हूं मैं,
फिर थोड़ी देर बाद ,
आपकी तस्वीर को सीने से लगा कर सो जाता हूं मैं।।
शायद साथ रहना खुदा को मंजूर नहीं,
फिर भी एक पल आपका दीदार करके,
दुनिया भर की खुशियां समेट लेता हूं मैं।
जब अकेला राह में चलता हूं मैं,
आपको समीप पाता हूं मैं,
फिर थोड़ी देर बाद ,आपको ढूंढते- ढूंढते रो जाता हूं मैं।।
मिलते हैं सफर में कई लोग मुझको, मगर आपके दीदार
को,तरसते- तरसते सफर में खो जाता हूं मैं।
मंदिर ,मस्जिद, गिरजाघर में घूमा करता हूं मैं,
आपके लिए मन्नत मांगता फिरता हूं मैं।।
अब तो खुदा भी लिपट कर रोया होगा,
आपको और मुझको साथ में पाया होगा,
जन्नत में पुष्प बरसाए होंगे।
वृंदावन के कृष्ण भी वहां आए होंगे,
साथ में.....
आपके और मेरे लिए,
साथ रहने का वरदान भी लाए होंगे।।
चलो अब जाता हूं मैं,
फिर से आपका बेटा बनकर, खो जाता हूं मैं।
अपने आप में आपको ,खोजते- खोजते रो जाता हूं।।
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