Afroz Alam   (अफ़रोज़)
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Associate Professor
Joined 12 January 2021


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16 HOURS AGO

सब आईने सा साफ़ है कि
ज़िंदगी जिंदा रखने के एवज में
हर एक चीज़ वापस ले लेती हैं

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5 MAY AT 21:12

तो शर्मिंदा होने की क्या हद होगी
इसका अंदाज़ा लगाया नहीं कभी

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30 APR AT 20:05

एक रास्ता ही तो हैं, जो हमसफर है मुसाफ़िर का
वरना जफ़ा कर जाना तो मंजिलों की फ़ितरत हैं

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23 APR AT 19:59

मां, ख़ुदा तो नहीं पर, ख़ुदा की वो नेमत थी
जो हर दर्द को समझती थी, बांट लेती थी

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23 APR AT 19:54

ख़ुद पता चल जाएगा
यह वोह शोला हैं जो
आग लगा के ही बुझता है

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23 APR AT 19:52

आरज़ू यह है मेरी कि जन्नत के दीदार हो
लेकिन इश्क़ दुनिया से मुझे मरने नहीं देता

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21 APR AT 21:06

जिस ऊंचाई पर पहुंच कर
तुम्हें लोग बहुत छोटे दिखने लगे
तो समझो उन छोटे लोगों को अब
तुम नज़र भी नहीं आ रहे होगें

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21 APR AT 21:01

जिस्म की हरारत कभी कभी
इस हद तक बढ़ा दिया करता है
जिसमें दिल पिघल के बह जाता हैं

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16 APR AT 16:00

मौत तुमसे एक क़दम आगे हैं
ज़्यादा तेज़ भागोगे अगर तो
बस यह जल्दी मिल जायेगी

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15 APR AT 21:29

ना आए बारिश यही मनाते रहते हैं
यूं तो मौत तय हैं हर बशर की पर
इससे ज़िंदगी भर आंख चुराते रहते हैं

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