Praveen Gour  
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Joined 26 February 2019


Joined 26 February 2019
25 APR AT 14:29

खुदा  खुदगर्ज  है, ये महज़, वहम निकला

वो जितना पीर का था, उतना काफिर का निकला


वो मय सा बटा, हर एक प्याले में

कही इश्क, कही  दुआ, तो कही दवा निकला


खोजते रहे हम, उसे, हर एक काबे में

वो कादिर - ए - मुतलक, हवा निकला


तजुर्बा, एतबार - ए - मुहब्बत का करना था

जो देखा दिल उनका, आईना निकला


ख्वाइश थी, उसे रूबरू देखने की

ना ढूंढ पाए हम, वो सौ दफा निकला

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27 FEB 2023 AT 9:34

हम बहुत दूर चले आये है,
ना अपने है, ना अपनो के साये है

गांव की पगडंडी बिसर गयी
कदम- कदम पे अब दोराहे है

जिंदगी बसर हुई, खानाबदोशी में
सफ़र कि हमसफर, फ़कत ये राहे है

ज़माना कामरां कहता हमे अक्सर
क्या जानें रात-रात, हम कराहे है

आईना भी नही पहचानता अब तो,
अरसा हुआ, न हम मुस्कुराये है।




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10 SEP 2021 AT 20:11

जय गणपति, जय जय गजानन.
वक्रतुंड करो, विघ्न निवारण....

रिद्धि सिद्धि के, तुम हो दाता,
तुम गणेश, तुम प्रथम विधाता।

अर्धचंद्र किये, सिर पर धारण
मंगलमूर्ति, हे शुभ कारण,

जय गणपति, जय जय गजानन...
वक्रतुंड करो, विघ्न निवारण....

एकदंत, बुद्धि के स्वामी,
काज संवारों, अंतर्यामी।

महाकाय, भक्तों के तारन,
गौरीनंदन, मूषक वाहन।

जय गणपति, जय जय गजानन
वक्रतुंड करो, विघ्न निवारण....

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8 AUG 2021 AT 12:44

ज़िंदगी का सफ़र, बदस्तूर जारी है
कुछ कदम चल दिये, कुछ की अभी बारी है।

अभी तलक ये ज़िंदगी, रही पश्मिनी शाल सी,
कहीं हार की रफ़ूगरी, कहीं जीत की कशीदाकारी है।
ज़िंदगी का सफ़र.....

हर पल, हर घड़ी, बदलते रहे ज़ायके,
कभी लगी मीठी बहुत, कभी लगा ये खारी है।
ज़िंदगी का सफ़र.....

रखा हिसाब हमने सदा, दुआओ का, वफ़ाओ का
कुछ का शुक्र अदा किया, कुछ की उधारी है।
ज़िंदगी का सफ़र.....

नहीं फ़िकर कोई यहाँ, बदलते मौसमो की,
ख़बर हमें, हर हाल में, रहमत तेरी जारी है।
ज़िंदगी का सफ़र.....

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7 AUG 2021 AT 15:26

देखना, एक दिन देश,अपना भी सोना उगलेगा,
दुनिया होगी स्तब्ध, प्रचंड वेग से उछलेगा,
देखना एक दिन देश,अपना भी सोना उगलेगा,

काल, प्रहर और दसों दिशाएँ, विजय गान सब गायेंगे
खून, पसीना, गिरे जो आँसू, सब पदक हो जायेंगे।

होगा तिरंगा आसमां, नीला तूफान उमड़ेगा,
देखना एक दिन देश,अपना भी सोना उगलेगा,

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31 JUL 2021 AT 23:38

ज़िंदगी,अपनी कचहरी रोज़ लगाती है,
कभी वकील तो कभी मुवक्किल बनाती है।।।

पल मे बना मुज़रिम, ला रखती कटघरे में,
पल मे दलीले दे, मुझको बचाती है।।।

किसी शाम मुझको डुबोती, दागदार करके,
अगली सुबह वो मुझको, बेदाग उठाती है।।।

मै कायल हूं इसका, देती किरदार, नित नये,
कभी कातिल तो कभी काज़ी बनाती है।।।

ज़िंदगी,अपनी कचहरी रोज़ लगाती है।।।

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18 JUN 2021 AT 22:52

ज़िंदगी की कसौटी, जब कसती है,
कोई बिखर जाता है,
तो कोई निखर जाता है।।।

कोई गिरता है, टूटता है,
जो उठता है, गिरकर सौ बार,
सँवर जाता है।।।

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23 MAY 2021 AT 21:58

गुल खिलकर इतराया, मै, ताज़-ए-बहार,
पत्ती घिसकर, हिना बनी, हुई साजन का प्यार।

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23 MAY 2021 AT 20:46

मोहब्बत का भी देखो, बड़ा अजब व्यापार,
खोकर यहां मुनाफा, पाकर घाटा हर बार।

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9 MAY 2021 AT 23:59

अजीब ये दौर-ए-बेबसी है,
जहाँ अपनों से मिलना खुदखुशी है।

संभाल खुद को चारदिवारी में गालिब,
राहों और चौराहों पे, अब मौत आ बसी है।

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