Safar   (Safar)
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Joined 11 September 2019


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22 HOURS AGO

अंजानी है, है अजनबी..
उससे मिला.. भी ना कभी..
फिर भी, है वो..
दिल में कहीं..
दिलरूबा.. दिलरूबा..
🎵 🎵
जिसको मैं समझा,
था ख्वाब सा..
सच ये भी होगा,
क्या था पता..
🎵 🎵
है मुब्तिला दिल,
अब इस इश्क़ में,
राज रखूं या,
दूं मैं बता..
मेरी बेकरारी,
तेरी.. अदा..
दिलरूबा..

-


25 APR AT 18:02

मैं तुम्हारे ख्वाब में आऊं तो क्या करोगे,
और फिर वहीं ठहर जाऊं तो क्या करोगे।

तुम्हारा दिल तुम्हारे ही खिलाफ हो जाए,
मैं उसी दिल में बस जाऊं तो क्या करोगे।

तुमसे इंकार ही ना हो पाए मेरी बात का,
इस कदर तुम पे छा जाऊं तो क्या करोगे।

तुम चले जाओ किसी और ही दुनिया में,
और मै रह रह के याद आऊं तो क्या करोगे।

तुम दौड़ कर आओ मुझसे मिलने कभी,
मैं उससे पहले ही मर जाऊं तो क्या करोगे।

तुम्हें अहसास हो शदीद मुझसे इश्क़ का,
मैं दूजे जन्म तक इंतजार कराऊं तो क्या करोगे।

तुम्हें छल जाए दुनिया में हर कोई बार बार,
और फिर मैं भी बदल जाऊं तो क्या करोगे।

तुम्हें अहसास हो अपनी बेवफ़ाई का मुसलसल,
पर अब मैं भी वफ़ा ना कर पाऊं तो क्या करोगे।

-


22 APR AT 16:23

इश्क़ लिखूं या इश्क़ पर ग़ज़ल लिखूं,
दिल तोड़ने को मानिंद एक कत्ल लिखूं।

कतरा कतरा पेबस्त होता है रूह में,
जिस्म को साकी, दिल को बोतल लिखूं।

मुझे मिलती नहीं कोई शय लक़ब के लिए,
कैसे सिर्फ दिखाने को ग़लत लिखूं।

तुम्हें मिला तो‌ क्या कोई छोटी बात है,
इस रहनुमाई को खुदा का अदल लिखूं।

इश्क़ रूह की गिंजा है जिस्म का चोला नहीं,
क्यूं ना चाहतों को इश्क़ की नकल लिखूं।

इश्क़ हो जाता है कर नहीं सकते सफ़र,
बेवफ़ाई को रब की रज़ा में दखल लिखूं।

जिसमें नूर ए हक से मुलाक़ात हो‌ जाए,
उस इश्क़ को कैसे ना फिर सफल लिखूं।

-


17 APR AT 16:42

यूं किसी से दुश्मनी नहीं है, फिर भी दुश्मन कई है
आदत सच को सच, झूठ को झूठ कहने की रही है।

मैं रूख नहीं बदलता हवा के झोंके के साथ,
धारा के साथ की आदत लाशों के बहने की रही है।

जान की बात भी आए तो हक़ से मुकरना नहीं,
मुझे ये बात बचपन से मेरे बुजुर्गों ने कही है।

हालांकि वक्त के साथ कुछ बदलाव जरूरी है,
रहेगा दूध ही भले कहने में छाछ, लस्सी या दही है।

आजमाइशें तो जरूरी हिस्सा है सफ़र का सफ़र,
इनमें साथ छोड़ देने वाला कतई इश्क़ नही है।

जो करता है घर के हर एक हिस्से को रोशन,
कहीं न कहीं अंधेरे से ज्यादा डरा हुआ वहीं है।

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16 APR AT 17:39

आंसू जो बहे तो जमाना याद आता है,
जो भी मिला दर्द पुराना याद आता है।

साथ हंसने वाला कोई नजर नहीं आता,
किसी का साथ निभाना याद आता है।

ये तो सबसे सच्चा अहसास है दिल का,
किसी से रूठना, किसे मनाना याद आता है।

सीख लेते हैं जीना वक्त के साथ जरूर,
मौको पर किसी का सताना याद आता है।

कभी खुशी में भी बहने लगतीं हैं आंखें,
सफ़र मे आजमाइशों का डराना याद आता है।

सब पाकर भी जब तन्हा हो जाए कोई,
गुजरा हर एक पल पुराना याद आता है।

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14 APR AT 18:17

किसको भूल जाऊं किसको याद करूं,
अपनी तन्हाई को किसको इमदाद करूं।

किसे पड़ी है किसी के दिल की हालत की,
किसका रफीक बनूं किसको साद करूं।

सब फल है अपने किये हुए का ही सफ़र,
किसी और से क्यूं इसकी फरियाद करूं।

खुद ना बचा पाया अपने नशेमन को ही,
बर्बाद कोशिशों से किसको आबाद करूं।

रूह तो तोड़ चुकी मुझसे रिश्ता अपना,
बेजान जिस्म को भी अब आजाद करूं।

जाने कितनी सांसें उधार है अब और,
तकाज़ा कर लूं और खत्म हिसाब करूं।

सब कुछ तो‌ सामने है आंखों के आगे,
किसे छोडूं और किसका इंतिखाब करूं।

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7 APR AT 19:21

आज किसी से अंखियों को मिलाया जाए,
किसी के दर्द को मुहब्बत से मिटाया जाए।

यहां हर बशर रब का ही बंदा है सफ़र,
उन्हें ये यकीन ये अहसास दिलाया जाए।

माना दर्द से मुरझा चुके हैं चेहरे कई,
कुछ डालियों पर तो गुलों को खिलाया जाए।

दूर से हाथ मिलाना शायद मुमकिन न हो,
अहसासों को समझे, फासलों को मिटाया जाए।

क्या पता जिंदगी का मकसद क्या है मेरी,
इसी तलाश में किसी को हक दिलाया जाए।

बहुत मिल चुका दुनियावी बूतो से अब तक,
अब खुद के वजूद से खुद को मिलाया जाए।

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1 APR AT 15:12

लफ्ज़ भी खामोश है अब,
तेरे साथ तन्हाई बोलती थी।

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1 APR AT 5:24

Khud ko batao tum, Kay abhi zinda ho,
Qaid me hi sahi abhi, Azad parinda ho..

Har raat ke bad subah aana lazimi hai,
Chahe raat ka ndhera jitna bhi ghanera ho..

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28 MAR AT 16:54

रिश्तेदारी बड़े नाजुक दौर में है आजकल,
दिल की बातें बहुत शोर में है आजकल।

भाई भाई में जो इख्तिलाफ हो बैठे हैं,
मां की ममता भी गौर में है आजकल।

दबदबा ओहदे और पैसों का हुआ बस,
जज़्बात दरिया के उस ओर में है आजकल।

खींच कर पैर फ़िर कंधा खूब देते हैं लोग,
सभी आपा धापी की दौड़ में है आजकल।

बन रही है तो खून भी माफ है तुम्हें,
वर्ना छोटी गलती भी गुनाह में है आजकल।

थोखे खाकर भी गैरों से गले लग जाना,
अपनों से बेमतलबी अदावत तौर में है आजकल।

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