बन प्रभात- पंछी चले हम सूरज से कुछ आगे,
पीछे- पीछे आया सूरज लेकर रश्मि के धागे।
मुर्गे की बाग सुनी मैंने और देखी स्वान अँगड़ाई,
पेड़ों की झुरमुट में देखा गिलहरियों की लड़ाई।
बछड़ों को देखा खूँटे पर उछल कूद मचाते,
पेड़ों से कोयल निकली एक मधुर कूक लगाते।
श्वेत रंग की चादर फैली, हरसिंगार के नीचे,
बच्चों ने फिर ली अँगड़ाई, आये आँखे मीचे।
हुई सुबह और कौवे जागे, काँव काँव चिल्लाये,
शोर मचाते बच्चों से फिर दादा जी झल्लाये।
हंसों का एक झुंड उड़ा जब सूरज की लाली में,
सुंदर- सुंदर फूल चुना फिर मंदिर के माली ने।
व्यस्त हुए सब लोग सवेरे दौड़े- दौड़े भागे,
बन प्रभात- पंछी चले हम सूरज से कुछ आगे।
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