Zuhaib Ahmad  
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Joined 24 April 2020


Joined 24 April 2020
8 NOV 2023 AT 17:23

बेहया बेशर्म बदतमीज हो गया
जब मैं दिल का मरीज हो गया
नज़र-ए-बद से बचाना क्या हुआ
मैं तो उसका कमीज़ हो गया ।

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4 NOV 2023 AT 0:58

उम्र भर जिसने दिया साथ वो पास खड़ी थी
मैने देखा कि, मेरी तन्हाई मेरे साथ खड़ी थी।

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26 NOV 2021 AT 22:22

यमुना, घाघरा, बागमती, ताप्ती, गंडक, कोसी जिसने भी तुम्हे गले लगाया सब का अस्तित्व समाप्त हो गया।

तुमने ही तो मुझे सिखाया है जीवित रहने का सलीका,
हाँ हाँ इलाहाबाद में, जब यमुना तुमसे जा मिलती है।

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23 NOV 2021 AT 1:31

आज फिर गिर गया हूँ मैं, कल फिर खड़ा हो जाऊँगा
शतरंज के इस खेल का प्यादा बन कर न रह जाऊँगा
यौवन की अभिलाषा को फिर भस्म बना कर आऊँगा
फिर शत्रुओं का सीस उतार, अपना परचम लहराऊँगा

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20 JUN 2021 AT 1:11

पँख कट गए मेरे या फिर उड़ना भूल गया ।
एक मुद्दत से मैं बंद था, खुलना भूल गया ।।

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7 JUN 2021 AT 11:39

ये भड़की है दोस्त-ओ-अहबाब के आने पर
ये जो आग है नही बुझेगी आब के आने पर

जो तुम ओढ़ लेते हो उम्मीद से भरा चादर
हकीकत पर महज़ पर्दा है ख्वाब के आने पर

वो तो इश्क़ का जाम था इसलिए पी गए
वरना मुह मोड़ लेते है शराब के आने पर

थे कभी पाक गुनाहों से किसी ज़माने में
हाँ मगर अब नही रहे शबाब के आने पर

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5 MAY 2020 AT 16:10

लफ्ज़ कम पड़ जाते है तेरे बखान में
क़ूवत और दे मेरे मौला मेरी ज़ुबान में
करूँ हम्द-ओ-सना दिन-रात तेरी शान में
ऐसी बरकत अता कर तू मेरे ईमान में
शुक्र करता रहूँ तेरा ज़िक्र करता रहूँ
अपनी आख़िरत की फ़िक्र करता रहूँ
तेरे सिवा हमने किसी को पुकारा नहीं
मोमिनो का तेरे सिवा कोई सहारा नहीं
जो गुस्ताख़-ए-रसूल हो वो हमारा नहीं
ऐसे लोगों से कोई रिश्ता हमें गवारा नहीं
तू आलिमुल गुयूब भी है सत्तारुल उयूब भी
हम गुनहगार भी है तो तू गफ्फरुल जुनूब भी
बहिश्त में जाने के लिए भी तो मरना होगा
हूर-ओ-जाम ही नहीं दूध का झरना होगा
गुनाहों से कर तौबा, अज़ाब वरना होगा
अब तो बस मगफिरत की दुआ करना होगा
"ज़ुहैब"इमान वाले हो, मौत से क्या डरना
शाम-ओ-सहर बस ज़िक्र खुदा का करना

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