आज फिर गिर गया हूँ मैं, कल फिर खड़ा हो जाऊँगा शतरंज के इस खेल का प्यादा बन कर न रह जाऊँगा यौवन की अभिलाषा को फिर भस्म बना कर आऊँगा फिर शत्रुओं का सीस उतार, अपना परचम लहराऊँगा
लफ्ज़ कम पड़ जाते है तेरे बखान में क़ूवत और दे मेरे मौला मेरी ज़ुबान में करूँ हम्द-ओ-सना दिन-रात तेरी शान में ऐसी बरकत अता कर तू मेरे ईमान में शुक्र करता रहूँ तेरा ज़िक्र करता रहूँ अपनी आख़िरत की फ़िक्र करता रहूँ तेरे सिवा हमने किसी को पुकारा नहीं मोमिनो का तेरे सिवा कोई सहारा नहीं जो गुस्ताख़-ए-रसूल हो वो हमारा नहीं ऐसे लोगों से कोई रिश्ता हमें गवारा नहीं तू आलिमुल गुयूब भी है सत्तारुल उयूब भी हम गुनहगार भी है तो तू गफ्फरुल जुनूब भी बहिश्त में जाने के लिए भी तो मरना होगा हूर-ओ-जाम ही नहीं दूध का झरना होगा गुनाहों से कर तौबा, अज़ाब वरना होगा अब तो बस मगफिरत की दुआ करना होगा "ज़ुहैब"इमान वाले हो, मौत से क्या डरना शाम-ओ-सहर बस ज़िक्र खुदा का करना
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Seems Zuhaib Ahmad has not written any more Quotes.