माना इस वक्त,
सुख छोड़ चुका दामन..
जिनके स्पर्श में थे,
कईयों का सिर्फ रह गया स्मरण..
इस संगरोधिक काल के चलते,
हुआ नगर में घन परिवर्तन..
कई अपनों का देख चुके हम,
मृत्यु और स्वर्गगमन..
कई खाली बैठे हैं, अव्यस्त
होता ही है खाली दिमाग शैतान का घर
तो क्यों न अपनी रूचि पर ध्यान दें
अब है हमारे पास कई अवसर..
क्यों न समाचार से दूर रहकर,
कुछ समय हम अपनों को दें..
खुद भी खुश रहें,
और उन्हें भी खुश रखें..
शायद हम फैला सकें,
सकारात्मकता का आभास..
खुश रहकर हम कर सकें,
वातावरण का विकास..
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