मुझे अपने दिल से न निकालो
मैं तुम्हारे बच्चों के किताबों में भी आ सकता हूँ
जो नज़्म मैंने लिखी है तुम्हारे लिए
वो मैं उन्हें भी याद करा सकता हूं-
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नए साल का नया अहदनामा की
उसे भूल जाएंगे
अरे ! ये तो है एक झूठ पुराना की
उसे भूल जाएंगे-
ना घर वापसी की तलब है ,
ना परदेश मैं रहने की ख्वाहिश ,
अब कोई ऐसा पता बात दो ,
जहा ना हो कोई आज़माइश ।-
पाल रहा है तबीब के बच्चों को पूरा शहर,
हर रोज़ एक नई बीमारी पाल कर ।-
भीड़ का हिस्सा बनने मैं ना जाने क्या मज़ा है,
अपना किला बनाना क्या कोई सज़ा है ।
दुसरो की दुकानों की नकल करने मे कोई बात नही है,
अपनी नई दुकान सजाने मैं बहुत माज़ा है ।।-
आ 'ले रसूल से पूछो क्या है मोहर्रम का महीना
इनका घर लूट गया और लोगो ने कहा नया साल आ गया ।-
रोकने को हिचकियां पी गए पूरा सैलाब चंद घूटो मैं हम,
तेरी याद बेकाबू हो रही थी-
बेवफाई हमारे खून में नही है ,
वफ़ा में हमे सुकून नही है ,
इतनी दफ़ा हमारे मुकद्दर के साथ यूँ खिलवाड़ हुआ है,
मोहब्बत तो क्या अब हमें दोस्ती भी किसी कि क़ुबूल नही है ।
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जिस पत्थर के आगे सर झुक जाए वो खुदा हो जाता है,
जिसे शिद्दत से चाह लो वो बेवफा हो जाता है ।-