कुछ कब्र मेरे डायरी में भी हैं, थोड़ा थोड़ा दिल दफन हैं वहाँ..वो नज़्म नहीं, फ़ातेहा है,बिखरी स्याही का कफ़न है वहाँ..ये जहां दिलों का क़ब्रिस्तान सा क्यों लगता है अब.. -
कुछ कब्र मेरे डायरी में भी हैं, थोड़ा थोड़ा दिल दफन हैं वहाँ..वो नज़्म नहीं, फ़ातेहा है,बिखरी स्याही का कफ़न है वहाँ..ये जहां दिलों का क़ब्रिस्तान सा क्यों लगता है अब..
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