Zehra Falaq   (ज़ेहरा फ़लक़)
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Joined 19 November 2019


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4 FEB 2023 AT 13:12

कितने अंजाने में मरासिम बन जाते है
फिर भी इसे लोग ता-उमर निभाते हैं
जिन्हें नहीं मालूम अहमियत वो जान ले
ये सिर्फ़-ओ-सिर्फ़ रफ़ाक़तो के नाते हैं

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30 JAN 2023 AT 17:14

मुझको ये सोचकर हैरानी होती है
एक चेहरे में इतनी कहानी होती है
ताल्लुक़ बनाने में एहतियात रखिये
अब तो हर रिश्ते में बेईमानी होती है

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4 DEC 2022 AT 18:19

ज़िन्दगी उकेरती है ख्वाब कुछ हसरत के साथ
बैठी हूँ अकेली काफ़ी दिनो से फुरसत के साथ

तुम चाहो तो छीन लो मेरे जिस्म से जान मेरी
तुम्हारे सामने मैं आ खड़ी हूँ जसारत के साथ

आते नहीं है सलीके मुझे मुनाफ़िक बनने के
करती हूँ तुमसे झगड़ा मैं पूरे अदावत के साथ

होना है खिलाफ़ तुम्हें तो कहो बेखौफ़ होकर
और करो एलान-ए-जंग पूरी बग़ावत के साथ

तुम्हारे हिज्र में ये हाल बना के बैठ गयी हूँ मैं
ज़र्द पड़ गया है चेहरा हल्की हरारत के साथ

अपना रहे हो तो फ़िर अपनाओ खुले दिल से
सिर्फ़ अच्छी ही नहीं थोड़ी बुरी आदत के साथ

कह रहे हो दावे से खुद को "माँ" के बराबर हो
तो फेरो मेरी जबीन पर हाथ शफ़क़त के साथ



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6 NOV 2022 AT 20:47

मुझसे कहा था उसने कि देर नहीं करना
मैं जो कहता हूँ तुमसे बिल्कुल वही करना

उसके बाद किसी का एतबार नहीं किया मैंने
सब कह रहे थे मुझसे तुम मेरा यकीं करना

ख़्वाब जो देखे थे मैने वो पूरे ही नहीं हुए
बुज़ुर्गों ने तो दी थी दुआ तरक्की करना

जिससे मिली हमेशा उसको समझा अपना
मुझसे सीखो हर बार एक ही गलती करना

खामोश लब परेशान जबीन और उदास आँखे
देखो इस तरह से करते है ख़ुद को ग़मगीं करना

उसको आते है गुफ़्तगू के कई नायाब तरीक़े और
मुझे आता है उसकी हर बात में सिर्फ़ जी-जी करना

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12 MAY 2022 AT 21:15

कैसी अजब ख़्वाब है दुनिया
कब किसको दस्तियाब है दुनिया

सबके सच्चे सवालों का हाँ
एक झूठा जवाब है दुनिया

पुर-सुकून नहीं होने देती है
अलग सी ही ये इज़्तिराब है दुनिया

बदगुमाँ समझते है हसीं इसको
ये नहीं जानते की अज़ाब है दुनिया

भटक रहे है जो दर-बदर यहाँ
हमारा ही तो इंतिखाब है दुनिया

हम बागबानों का बाग़ है ये जहाँ
और इस बाग़ का शाख-ए-गुलाब है दुनिया

हर तरफ है ग़र्द-ओ-ग़ुबार का ही आलम
जैसे लगती है सहरा का सराब है दुनिया

किसी के लिए है उगते सूरज की मानिंद
तो किसी के लिए ग़ुरूब-ए-आफ़ताब है दुनिया

आमाल हमारे नहीं है काबिल-ए-तरीफ़
कहते फ़िरते है कि खराब है दुनिया

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6 JAN 2022 AT 21:42

तवज्जो की तवक्को में अहमियत रायगाँ है
नफरतें उरूज पर है और मोहब्बत रायगाँ है

ये जहाँ को किसने बतायी है खुदखुशी हसीं
हर किसी को लगता है उसकी हयात रायगाँ है

मैं अपने ज़ेहन के शोर से बहुत परेशान हूँ
यही सबब है की मेरी ख़ल्वत रायगाँ है

उसका हुकुम मैं दिल-ओ-जान से हूँ मानती
और उसके सामने मेरी हर मिन्नत रायगाँ है

नहीं होता वो शख़्स मुझसे मुतासिर कभी
उसके लिये मैं और मेरे जज़्बात रायगाँ हैं

ये क्या शौक बना लिया है इन परिंदो ने?
इनकी हिज्रत से शाख़ सूनी दरख़्त रायगाँ है

कितना दिलकश है ताल्लुक हमारा "फ़लक़"
कि इसके सामने हर तअ'ल्लुक़ात रायगाँ हैं

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30 DEC 2021 AT 17:17

मैं दुनिया की वो ना-कामयाब लड़की हूँ
जो किसी के मयार पर कभी खरी नहीं उतरती हूँ

मैं वो लड़की हूँ जो हर बार सबसे हारती हूँ
मैं वो जो कोई ताल्लुक निभा ही नहीं पाती हूँ

मैं हूँ तो दरिया के बहाव जैसी
पर हूँ बहुत उलझे स्वभाव जैसी

कब ख़त्म होगा सफ़र हयात का?
कब आएगा दिन मेरी वफ़ात का?

फ़िर नहीं होगा किसी को कोई शिकवा मुझसे
फ़िर नहीं होगा कोई बेवजह खफ़ा मुझसे

हो जायेंगे सब खुश मेरे बगैर फ़िर से
हो जायेगा चारो तरफ़ सब ख़ैर फ़िर से

मेरे बाद नहीं होगी कोई भी शिकायतें
ना रहेंगी बाकी फिर कोई भी नफ़रतें

तलाशेंगे शायद सब दर-ओ-दीवार-ओ-मकाँ
पर न रहेंगे तब तलक मेरे कोई भी निशाँ

हो चुका होगा सब निस्त-ओ-नाबूद
हो चुकी होगी वो रब के सुपर्द

आँख बंद, लैब खामोश और जिस्म बेजान रहेगा
बस इसी वक़्त ही तो इकठ्ठा सारा खानदान रहेगा

ख़त्म होगी दास्तान उस ना-कामयाब लड़की की
फ़िर किसी को ना होगी याद दस्तियाब लड़की की....

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14 DEC 2021 AT 18:41

तुम बैठे रहो मेरे रू-ब-रू यूँही रात भर
मैं करती रहूँ तुमसे गुफ्तगू यूँही रात भर

तेरे दीदार को तरसते रहे हम तामाम उम्र
रोज़ बढ़ती रही ये जुस्तजू यूँही रात भर

ये कैसी तिश्नगी थी तेरे लम्स की मुझको
क्यूँ बढ़ती गयी ये आरज़ू यूँही रात भर?

जा रहे थे तुम जो बज़्म को ऐसे छोड़ कर
मैं चाहती थी तुमको देखा करूँ यूँही रात भर

नहीं रही आईने की अब मुझको ज़रूरत
तुझे ही देखकर मैं सवंर लूँ यूँही रात भर

बताया था तुझको रास्ता मैंने मंज़िल का
फ़िर भी भटकता रहा तू यूँही रात भर

"फ़लक़" जो कहकहो से गूंजती रहती है
वो ही अब है खामोश क्यूँ यूँही रात भर

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21 JAN 2021 AT 18:53

مُجھے تُجھ سِے یہ گِلا ہے
تُو کِیوں نَہیں مُجھے مِلا ہے
تُم نِے تُوڈ دِیئے ہَر وَعدِے اَپنِے
کِیا یہ مِیری وَفاؤ کا صِلہ ہے

मुझे तुझसे ये गिला है
तु क्यूँ नहीं मुझे मिला है
तुमने तोड़ दिये हर वादे अपने
क्या ये मेरी वफाओं का सिला है

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28 DEC 2020 AT 18:04

एक हुए हम जुदा है मेयार फ़िर भी
जीत कर उससे मेरी हुई हार फ़िर भी

रहे महफूज़ एहसास मेरे मकान-ए-दिल में
लब-बस्ता रहकर तुमसे किया इज़हार फ़िर भी

जोड़े थे मैंने तुम्हारे साथ अपने ख़्वाब कई
न जाने क्यूँ हो गये सब तार-तार फ़िर भी

बेवजह किया था तर्क़-ए-ताल्लुक मुझसे तुमने
हूँ अब तलक मैं तुम्हारी पैरवीकार फ़िर भी

न पूछ कितने सितम ढायें है तुमने मुझ पर
क्यूँ तुम न हुए मेरे सितमगार फ़िर भी

अफ़सोस बहुत है तेरे बिछड़ जाने का मुझको
लेकिन हूँ मैं बहुत शुक्र-गुज़ार फ़िर भी

तेरी हयात में मेरे लिये मक़ाम है या नहीं लेकिन
तुम्हारे लिये सदा खाली है क़ल्ब-ए-ज़ार फ़िर भी

तुमने राहे राह पर लाकर जो छोड़ दिया है मुझे
मैनें समझा है तुमको अपना मददगार फ़िर भी

वैसे मुझे है मुक़ाफत-ए-अम्ल से गुरेज़ जानाँ मगर
मन में उठने लगे तुम्हारे खिलाफ़ अशरार फ़िर भी

करके इज़हार-ए-उल्फ़त तुम तो भूल ही गये
"फ़लक़" के हर आ'ज़ा है वफ़ादार फ़िर भी

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