_मेरी माँ_
मुझे अब भी याद है, वो मेरा पहली बार घर से दूर होना,
और तेरे आँखों में आंसू आ जाना, और बस यही बोल पाना
के जाओ बेटा मन लगा कर पढ़ना।
पर न जाने क्यों डर सा लगता है, उमर न काट जाए इस मंज़िल-ए-सफर में, ज़िन्दगी के इस बंधन में,
जिसने जकड़ रखा है मुझे बरसों से,
कोई आज़ाद कराएगा मुझे इस बंधन से,
के मेरे माँ घर पर इंतेजार कर रही है।
माँ का फ़ोन आया, कहने लगी खाना खाया तुमने, कर दिया मैंने हाँ यही सोच कर के, एक बार रूठ गयी थी मेरी माँ के एक रोटी काम क्यों खाया तुमने।
इंतेजार कर रही है माँ के हाथ की रोटी, भर पेट खाना, और माँ के गोद सर रख कर चैन की नींद सोना इंतेजार कर रही है,
मेरी माँ घर पर इंतेजार कर रही है।
अक्सर पूछा करती है माँ, तबियत तो ठीक है तेरी, कर देता हूं हाँ यही सोच कर के रो देती थी माँ, मेरी हर एक छोटी सी खरोंच पर।
मैं नहीं जानता मोहब्बत किसे कहते है,
पर झाँक लेता हूं माँ की आँखों में जब भी मुझे मोहब्बत की तलाश होती है,
तलाश कर रही है, माँ की सूनी आँखें मुझे तलाश कर रही है,
मेरी माँ घर पर इंतेजार कर रही है।
मेरी माँ घर पर इंतेजार कर रही है।।
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