Zeeshan Hashmi   (Z_HASHMI)
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Joined 13 December 2019


Joined 13 December 2019
4 MAR 2020 AT 0:58

घा़व भर रहे है मेरे, कोई जख़्म अता कर दो ना,
वफ़ा तो तुम कर न सके, कोई इल्ज़ाम ही अता कर दो ना।
इलज़ाम अता कर के कोई सज़ा भी अता कर दो ना,
मेरे जख्मों को हरा कर दो ना।।

आंसू सूख रहे है मेरे, फिर से नम् कर दो ना,
दिल तो तोड़ ही चुके हो, टुकडे भी कर दो ना,
फिर से अपनी खुदगर्ज़ी का सबूत दो ना,
मेरे जख्मों को हरा कर दो ना।।

भूलने में लगा हूँ तुझे, फिर से याद आओ ना,
दर पे खड़ा हूँ तेरे, दीदार कर दो ना,
सामने से मेरे एक बार फिर गुजरो ना,
मेरे जख़्मों को हरा कर दो ना।।

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20 DEC 2019 AT 14:10

सितम तो तुमने ढाया है ऐ सितमगर,
चिंगारी अब शोला बन चुका है धधक कर।
तेरी लाठियां भी रुक जानी है अब थक कर,
ये कौम जो कर रही है सामना अब डट कर।

ख़ून जो बहाया है बच्चों का हिसाब देना है तुमने,
घर जाकर अपने बच्चों को भी मुंह दिखाना है तुमने।
क्या थी इतनी दुश्मनी, फर्श पर पड़ी किताबें पूछती है,
ख़ून का एक-एक कतरा तेरे ज़मीर का हिसाब मांगती है।

एक सैलाब आ रहा है बह जाना है तुमने उसमें,
अब इस तूफ़ान का सामना कैसे करना है तुमने।
हिन्दू-मुस्लमान बांटने चले थे तुम तो,
किस्मत तो देखो तेरी, एक कर बैठे तुम तो।

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14 DEC 2019 AT 23:27

KISI NE PUCH LIYA HUMSE YE TANHAI KAHAN BASTI HAI,

BATA DIYA MAINE USE APNE DIL KA PATA.

GHAR KE ANDHERON KO TO MITA DETE HAI DIYA RAUSHAN KAR KE,

PAR KAISE MITAYE ISS ANDHER KO JO GHAR KAR CHUKA HAI DIL ME.

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14 DEC 2019 AT 12:54

_मेरी माँ_

मुझे अब भी याद है, वो मेरा पहली बार घर से दूर होना,
और तेरे आँखों में आंसू आ जाना, और बस यही बोल पाना
के जाओ बेटा मन लगा कर पढ़ना।

पर न जाने क्यों डर सा लगता है, उमर न काट जाए इस मंज़िल-ए-सफर में, ज़िन्दगी के इस बंधन में,
जिसने जकड़ रखा है मुझे बरसों से,
कोई आज़ाद कराएगा मुझे इस बंधन से,
के मेरे माँ घर पर इंतेजार कर रही है।

माँ का फ़ोन आया, कहने लगी खाना खाया तुमने, कर दिया मैंने हाँ यही सोच कर के, एक बार रूठ गयी थी मेरी माँ के एक रोटी काम क्यों खाया तुमने।

इंतेजार कर रही है माँ के हाथ की रोटी, भर पेट खाना, और माँ के गोद सर रख कर चैन की नींद सोना इंतेजार कर रही है,
मेरी माँ घर पर इंतेजार कर रही है।

अक्सर पूछा करती है माँ, तबियत तो ठीक है तेरी, कर देता हूं हाँ यही सोच कर के रो देती थी माँ, मेरी हर एक छोटी सी खरोंच पर।

मैं नहीं जानता मोहब्बत किसे कहते है,
पर झाँक लेता हूं माँ की आँखों में जब भी मुझे मोहब्बत की तलाश होती है,
तलाश कर रही है, माँ की सूनी आँखें मुझे तलाश कर रही है,
मेरी माँ घर पर इंतेजार कर रही है।
मेरी माँ घर पर इंतेजार कर रही है।।

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14 DEC 2019 AT 0:17

TUM TO PANCHI THE, UDD GAYE TUM,

PAR MERE PARR KO KYU KAAT GAYE TUM.

JIS SHAAKH PAR THA NASHEMAN MERA,

USS SHAAKH KO HI KAAT GAYE TUM.

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