तुम जब जिधर गए हो तो हम भी उधर गए
कितने ही माहोसाल् तो यूँही गुज़र गए
फूलों के साथ रब्त् हमारा ज़रूर है
गुलशन सन्वर् गया है तो हम भी सन्वर् गए
तुमसे जुदा हुए तो कहीं के रहे न हम
तनहाईयों में रेत की सुरत बिखर गए
हालांके इंतज़ार का मौसम तवील था
वो जब मिले तो यूँ लगा लम्हे ठहर गए
तन्हा भटक रहे हैं ज़माने की भीड़ में
अपने जो थे हमारे न जाने किधर गए
माना सफर में पेश थीं दुश्वारियाँ बहुत
पैरों में छाले पड़ गए अपने मगर गए
"ज़ीनत" बहुत तवील थी राहे अदब मगर
हम वालेहाना इसके सफर से गुज़र गए।
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Believer in marxist philos... read more
मेरी हस्ती का पता मुझको बताने वाले
मेरे अश्कों के निशां सारे मिटाने वाले
जब से आए हो मेरी दुनिया में ऐ जानेवफा
डर नहीं ज़ुल्म करें लाख ज़माने वाले
अब मेरी ग़ज़लों में आया है नया रंगे सुख़न
क़द्र करने लगे ग़ालिब के घराने वाले
रब्त सब ख़त्म हुए रंजिशे बेजा के सबब
लौट कर आए नहीं रूठ के जाने वाले
कोई करता ही नहीं कुचए जानां का तवाफ
खो गए राह में सब ख़ाक उड़ाने वाले
वो मेरी ज़ीस्त में नासूर बने बैठे हैं
आरज़ुओं के चराग़ों को बुझाने वाले
गुनगुनाएंगे मेरी ग़ज़लों को तन्हाई में
याद रखेगें मुझे अगले ज़माने वाले-
दस्तोपा शल हुए और आँख भी पथराई है
ख़्वाहिशे दीद की मैंने ये सज़ा पाई है
मुझको मालुम नहीं झुठ के सच्चाई है
लोग कहते हैं क़यामत मेरी अंगड़ाई है
हसरते दीद से आँखों के दिए रौशन हैं
तेरे आने की ख़बर बादे सबा लाई है
सब के सब करने लगे आज मेरे घर का तवाफ
जिसको देखो वो यहाँ मेरा ही सौदाई है
जम के बरसेंगी घटाएं ये यक़ीं है मुझको
इश्क की बदली मेरे चारों तरफ छाई है
मुझसे मिलती ही नहीं है कभी मिलने की तरह
ज़िंदगी तो मेरे साए से भी घबराई है
झील की तरह नज़र आती है लेकिन "ज़ीनत"
उसकी आँखों में तो पाताल सी गहराई है-
सर पे जो रहता है ,वो हाथ कभी मत छोड़ो
अपने माँ बााप का तुम साथ कभी मत छोड़ो
तुम अगर रुठे भी तो तुमको मना ही लेगें
जानेमन सहने मुलाक़ात कभी मत छोड़ो
और कुछ भी न सही दौलते दीदार सही
उनसे जो भी मिले सौग़ात कभी मत छोड़ो
छोड़ना है तो शहनशाहों के तोहफ़े छोड़ो
तुम मगर वलियों की ख़ैरात कभी मत छोड़ो-
दिल में हो अज़्म जो चाहेगें,वो कर जाएंगे
राह की ठोकरें खा कर के निखर जाएंगे
कहीं दम लेंगे ना आवारा सदाओं की तरह
हम मगर कुचएजानां में ठहर जाएंगे
हम पे जिस रोज़ अयां होगी ज़मीं की अज़मत
बामे अफलास के ज़ीने से उतर जाएंगे
तूने गर प्यार के पौधे को पनपने ना दिया
हम तेरी यादों की हर शाख़ कतर जाएंगे
फिर भी मैं मुंतज़िरे दीद हूँ उनकी "ज़ीनत"
जानती हूँ की वो वादों से मुकर जाएंगे।-
कितना है मुश्किलों से भरा ये सफर मेरा
याद आ रहा है अब मुझे छोटा सा घर मेरा
बेचेहरगी ने मुझको कहीं का नहीं रखा
अब चेहरा ढूंढता है हर आइनागर मेरा
मैं तिनका तिनका चुन के बनाती तो हूँ मगर
रोज़ आशियाँ जलाते हैं बरकोशरर मेरा
अज़्मोयक़ीं के साथ ही निकली हूँ घर से मैं
देखें की क्या बिगाड़ता है अब सफ़र मेरा
ख़ूनेजिगर से सींच के तामीर जो किया
देखो तो ढह गया है वो दिल का नगर मेरा
उसकी ग़ज़ल में मेरा सरापा दिखाई दे
सारा ज़माना देख रहा है असर मेरा
बेचैन आत्मा की तरह "ज़ीनत " उनकी याद
दरवाज़ा पीटने लगी शामोसहर मेरा-
चाँद आता है नज़र जिसमें,वो पैकर् तुम हो
मेरी आँखों में बसा है जो वो मंज़र तुम हो
यूँ तो दुनिया में हँसी चेहरे कई देखें हैं
उनमें ऐ जाने वफा सबसे ही बेहतर तुम हो
मेरी तहरीर में ढल जाते हैं अल्फाज़् मेरे
और मेरी नज़्मों का उन्वान भी अक्सर तुम हो
ऐसा लगता है की मैं तुझ में हूँ रूपोश कहीं
हुबहु मेरी अदाएें ,मेरा तेवर तुम हो
तुमसे रोशन है मेरा ज़ौक़े सफर ,राहे वफा
मेरे हमदम,मेरे साथी ,मेरे रहबर तुम हो
तुम को पाने के लिए सात जनम लेना है
एक दो पल नहीं सदियों के बराबर तुम हो
और मैँ किसकी तरफ ग़ौर से देखुँ"ज़ीनत"
मेरे ख़्वाबों मेरे अरमानों का पैकर तुम हो-
कितने ख़ुशरंग नज़ारे हैं मेरे चारों तरफ
सर्द मौसम के इशारे हैं मेरे चारों तरफ
मैं भी बुझने लगी मुफलिस के चराग़ों की तरह
टिमटिमाते हुए तारे हैं मेरे चारों तरफ
कोई दुख दर्द मेरे बांटने वाला भी नहीं
बेहिसी पाँव पसारे है मेरे चारों तरफ
क्या करुँ किस तरह निकलुँ,मैं हेसारे ग़म से
अभी बेरहम शरारे हैं मेरे चारों तरफ
मैं समुंदर में हुँ,मौजों के हवाले "ज़ीनत"
मुझसे नाराज़ किनारे हैं मेरे चारों तरफ
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बेवजह फासले नहीं होते
ख़त्म यूँ राबते नहीं होते
इश्क़ में रतजगे नहीं होते
अब कहीं दिलजले नहीं होते
पहले नाइत्तफ़ाक़ी होती है
यक़बयक़ फैसले नहीं होते
बेटियों की बड़ाई होती है
बहुओं पर तबसिरे नहीं होते
सब के हाथों में फ़ोन है अपना
और कुछ मशगले नहीं होते
लड़कियाँ मायके में हँसती हैं
लब पे फिर कहकहे नहीं होते
तेरी आँखें हैं मैकदा "ज़ीनत"
नैन सब मदभरे नहीं होते।-
मैंने चाहा जिसे वो मेरा हो गया
दर्देदिल का मेरे ख़ात्मा हो गया
आइने से मेरा सामना हो गया
मेरा चेहरा बोहोत खुशनुमा हो गया
ढुँढती ही नहीं हूँ कोई रहगुज़र
मैं जिधर चल पड़ी रास्ता हो गया
मेरी तन्हाई है अब शरीके सफर
मेरा साया भी मुझसे जुदा हो गया
जिसको जानेवफा हम समझते रहे
वो सितमगर बोहोत बेवफा हो गया
मैं न उसको मिली,वो न मुझको मिला
आशिक़ी का मगर तजरुबा हो गया
ख़्वाबे गफलत में ही मैं पड़ी रह गई
और रवाना मेरा काफ़िला हो गया-