Zeenat Ansari   (Zeenat writes)
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مٹا دے اپنی ہستی کو گر کچھ مرتبہ چاہے
کی دانا خاک میں مل کر گل گلزار ہوتا ہے
Joined 21 September 2021


مٹا دے اپنی ہستی کو گر کچھ مرتبہ چاہے
کی دانا خاک میں مل کر گل گلزار ہوتا ہے
Joined 21 September 2021
7 JUL 2022 AT 18:38

बहुत खाली हूं अल्फाज़ भी अधूरे है
दिल की बंजर ज़मीन में ये सवाल भी अधूरे है

तेरी जुस्तुजू में तेरी चाह में ये ख़्वाब भी अधूरे है
इस मुख्तसर सी जिंदगी में अपनो के साए भी अधूरे है

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4 JUL 2022 AT 11:36

तुझे रोज़ देखूंँ क़रीब से
मेरे शौक भी है अजीब से

मैंने मांँगा हैं बस तुझ ही को
अपने रब ओर उसके ह़बीब से

मेरी आंँखों में हैं बस अजेज़ी
मेरे ख़्वाब भी है गरीब से

मेरे सब दुखों की दवा हो तुम
मिले क्या सुकूं फिर तबीब से

में बहुत खुश हुं जोड़ कर
नसीब अपने तेरे नसीब से

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1 JUL 2022 AT 22:18

یا اللہ! بیشک تیرے احسان بہت ہیں ہم پر
جس کا بدلہ کبھی کوئی ادا نہی کر سکتا
یا اللہ! ایک احسان اور کر گمراہ ہونے سے
بھٹکنے سے ہماری حفاظت فرما
آمین یا رب العالمین

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23 JUN 2022 AT 21:27

अपनी क़ाबिलियत से तुम सबको मायल करती हो
अपने लफ्जों से तुम सब को क़ायल करती हो

तुम्हे क्या ज़रूरत है इन बेफज़ूल हथियारों की
तुम अपनी तह़रीरों से सब को घायल करती हो

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21 JUN 2022 AT 21:07

यूँ ही बेवजह अब इस दिल को हम लगाते नहीं हैं
नग़मे होते हैं ग़मों के पर हम सुनाते नहीं हैं

जो किसी को चुभ जाएं ऐसे लफ्ज़ों के तीर हम चलाते नहीं हैं
मोहब्बत के झूठे दावे करके किसी को हम रुलाते नहीं हैं

दिल के गहरे जज़्बातों को भी किसी को हम बताते नहीं हैं
अश्क आँखों के भी अपने हर किसी को हम दिखाते नहीं हैं

खुद ही टूट जाते हैं पर दिल किसी का हम दुखाते नहीं हैं
इस तरह जो नायाब हैं ज़िंदगी में उन्हें हम गंवाते नहीं हैं

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19 JUN 2022 AT 20:57

मांँ की ममता के लिए मुज़्तरिब रहती हूंँ
हर जगह तेरे होने का एहसास करती हूंँ

अपनो में तेरा चेहरा तलाशा करती हूंँ
तेरी याद में खुद को संवारा करती हूंँ

तेरे संग का हर लम्स महसूस करती हूंँ
उम्मीद में तेरा आने का इंतज़ार करती हूंँ

जाने वाले जा कर कहां वापस आते है ज़ीनत
बस इन्ही बातों को याद कर के रोया करती हूंँ

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16 JUN 2022 AT 20:02

میری تکلیف میرے گناہوں کا ازالہ بن کر
میری روح کو سنوارا کرتی ہے. .......



मेरी तकलीफ़ मेरे गुनाहों का इज़ाला बन कर
मेरी रूह को संवारा करती है.......

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15 JUN 2022 AT 12:25

जो सच बता सके तू ऐसे आईने का इंतेख़ाब कर
खुद से ज़्यादा तूझे समझ सके तू ऐसे शख्स का इंतेख़ाब कर

जिन की परवाज़ हो बुलन्द तू ऐसे शाहीन का इंतेख़ाब कर
मुश्किल में भी साथ ना छोड़े तू ऐसे दोस्त का इंतेख़ाब कर

बिना मतलब के हो तेरी गुफ्तगू तू ऐसे लफ्जों का इंतेख़ाब कर
स्याह अंधेरों में जो रोशनी ला दे तू ऐसे जुगनू का इंतेख़ाब कर

तेरे आने से महेक उठे तू ऐसी खुश्बू का इंतेख़ाब कर
जो हक़ीक़त बन सके तू ऐसी दुआ का इंतेख़ाब कर

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10 JUN 2022 AT 13:45

ہر ابتدا سے پہلے ہر انتہا کے بعد
ذاتِ نبی بلند ہے ذاتِ خدا کے بعد
دنیا میں احترام کے قابل ہیں جتنے لوگ
میں سب کو مانتا ہوں مگر مصطفیٰ کے بعد
محمد صلی اللہ علیہ وسلم۔

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5 JUN 2022 AT 22:40

अभी तो " ऐन" लिखा हैं
अभी तो " शीन " बाकी है
अभी ए " बिनते" हव्वा सुन
तेरी " तौहीन " बाकी है

अभी " लैला " से मिलना है
अभी " शीरीन " बाकी है
अभी तो हुस्न की " मण्डी" का
यारों ! " सीन " बाकी है

बड़े आशिक बने फिरते हैं
उन से ज़रा तुम पूछो
की गिनती हो गई पूरी
या ! दो एक , तीन बाकी है

अजब एक शोर है बरपा
मोहब्बत है, मोहब्बत है
नदीदे है ये क्या जाने
खुदा का दिन बाकी है
" दुआ " क्यों रंग लाए कि
अभी " अमीन " बाकी है

हैं "मंजनू" की सब बातें
कहीं " फरयाद " के किस्से
क्या दुनिया में बजाने को
यही एक " बीन " बाकी है

नई " तहज़ीब " पर तेरी
करुंगी " बहेस " लेकिन
अभी ये बात सुन ले तू
खुदा का " दीन " बाकी हैं

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