सब समझ का फेर है
दुनियां एक माया जाल है
शायद दुनियां एक मंच है
ज़िंदगी सुख दुख का मेला है
यहां भीड़ में भी कोई अकेला है
कही अंधेरा कही उजाला है
दिल भी उसी केलिए रोता है
जो उसकी किस्मत में नही होता है
सब अपने कर्मो का खेल है
जो सोया वो खोया जग की रीत है
नसीहत से लोग नही समझते है
ठोकर से लोग बुद्धि मान होजाते है
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