घर के छप्पर पर पड़ा तिरपाल और उस पे गिरती यह ठंडी ओस उसके नीचे बैठे हमारे बप्पा-अम्मा आग जला रहे होंगे, पड़ोस के झमई चाचा भी संभवता बैठे ही होंगे। शहर की घनी आबादी के बीच एक घर के किराए कमरे में यह सोचना* मेरी आग को ठंडा होने नहीं देता। -
घर के छप्पर पर पड़ा तिरपाल और उस पे गिरती यह ठंडी ओस उसके नीचे बैठे हमारे बप्पा-अम्मा आग जला रहे होंगे, पड़ोस के झमई चाचा भी संभवता बैठे ही होंगे। शहर की घनी आबादी के बीच एक घर के किराए कमरे में यह सोचना* मेरी आग को ठंडा होने नहीं देता।
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हमारे शब्द व्यवहारिक होते हैं और लोगों की समझ सैद्धांतिक और व्यवहार भविष्य में सिद्धांत बनता है। -
हमारे शब्द व्यवहारिक होते हैं और लोगों की समझ सैद्धांतिक और व्यवहार भविष्य में सिद्धांत बनता है।
उर अंचल में बसी सादगीकि नई ताजगी हो तुम ए अरुण, कई दौर गुजरें..ऐसी आदमीयत के लिए । -
उर अंचल में बसी सादगीकि नई ताजगी हो तुम ए अरुण, कई दौर गुजरें..ऐसी आदमीयत के लिए ।
Our best moments Engraved on the wall of the heart like "paleolithic writing signs" would be understood by each and every upcoming archaeologist through that signs. -
Our best moments Engraved on the wall of the heart like "paleolithic writing signs" would be understood by each and every upcoming archaeologist through that signs.
मेरी सिफा का हर मरीज़ , एक निशा ले जाता है...निहारती है जो दुनियां चांद , वह भी मेरी छत से नज़र आता है। -
मेरी सिफा का हर मरीज़ , एक निशा ले जाता है...निहारती है जो दुनियां चांद , वह भी मेरी छत से नज़र आता है।
मुखौटो के शहर में,जिंदा इंकलाब हूंबिकता हूं दिन - रातमैं वो मज़दूर किसान हूं । -
मुखौटो के शहर में,जिंदा इंकलाब हूंबिकता हूं दिन - रातमैं वो मज़दूर किसान हूं ।
नई- नवेली अच्छी बातों को जी तरसता हैअरुणोदय की चाहत में लहू बरसता है। -
नई- नवेली अच्छी बातों को जी तरसता हैअरुणोदय की चाहत में लहू बरसता है।
ज़िंदगी एक किस्सा है , किस्से में वो भी हैउसका हिस्सा है , अब ये दिल उसका है। -
ज़िंदगी एक किस्सा है , किस्से में वो भी हैउसका हिस्सा है , अब ये दिल उसका है।
हर हाल में जी लेता हूं यह सोचकरचौराहों का रास्ता अकेला नहीं होता। -
हर हाल में जी लेता हूं यह सोचकरचौराहों का रास्ता अकेला नहीं होता।
बड़ी मुद्दत के बाद , अरमान अधूरे ही रहे ए अरुण, हवा चली भी तो गर्म । -
बड़ी मुद्दत के बाद , अरमान अधूरे ही रहे ए अरुण, हवा चली भी तो गर्म ।