जख़्मी   (अरुण मलिहाबादी)
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"ज़ख्मी मेरी कलम , प्रगतिशील हमारी आवाज"
~आवारा प्रेमी
Joined 26 December 2019


"ज़ख्मी मेरी कलम , प्रगतिशील हमारी आवाज"
~आवारा प्रेमी
Joined 26 December 2019
4 JAN AT 22:09

घर के छप्पर पर पड़ा तिरपाल और उस पे गिरती यह ठंडी ओस उसके नीचे बैठे हमारे बप्पा-अम्मा आग जला रहे होंगे, पड़ोस के झमई चाचा भी संभवता बैठे ही होंगे।

शहर की घनी आबादी के बीच एक घर के किराए कमरे में यह सोचना* मेरी आग को ठंडा होने नहीं देता।

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23 OCT 2023 AT 19:27

हमारे शब्द व्यवहारिक होते हैं और लोगों की समझ सैद्धांतिक और व्यवहार भविष्य में सिद्धांत बनता है।

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28 JAN 2023 AT 19:17

उर अंचल में बसी सादगी
कि नई ताजगी हो तुम
ए अरुण, कई दौर गुजरें..
ऐसी आदमीयत के लिए ।

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2 NOV 2022 AT 10:25

Our best moments Engraved on the wall of the heart like "paleolithic writing signs" would be understood by each and every upcoming archaeologist through that signs.

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29 AUG 2022 AT 6:36

मेरी सिफा का हर मरीज़ , एक निशा ले जाता है...
निहारती है जो दुनियां चांद , वह भी मेरी छत से नज़र आता है।

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21 JUL 2022 AT 20:52

मुखौटो के शहर में,
जिंदा इंकलाब हूं
बिकता हूं दिन - रात
मैं वो मज़दूर किसान हूं ।

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10 JUL 2022 AT 13:53

नई- नवेली अच्छी बातों को जी तरसता है
अरुणोदय की चाहत में लहू बरसता है।

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13 JUN 2022 AT 6:29

ज़िंदगी एक किस्सा है , किस्से में वो भी है
उसका हिस्सा है , अब ये दिल उसका है।

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16 MAY 2022 AT 12:24

हर हाल में जी लेता हूं यह सोचकर
चौराहों का रास्ता अकेला नहीं होता।

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8 MAY 2022 AT 22:01

बड़ी मुद्दत के बाद , अरमान अधूरे ही रहे
ए अरुण, हवा चली भी तो गर्म ।

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