एक नदी जैसे प्यास बुझाए एक आरज़ू जैसे कुछ करने को सिखाए एक मरहम जैसे घाव का इज़ाफा कराए एक पल जैसे खुशी दिलाए एक आईना जैसे खुद से आबरु कराए एक घड़ी जैसे अपने मुताबिक चलाए एक दिलकश शाम में और गुमशुदा सी रात में झलक.. उफ्फ_ “वो दिमाग ही क्या काम का जो मुझे ये न कहे की, आपको किसी और की नही आपकी खुद की ज़रूरत है”
"POETRY" क्यों स्पेशल हो तुम मेरे लिए क्यों मन मेरा,रास्ता मेरा,चैन मेरा, सब तेरे बारे में जानना चाहते है। क्यों तुम्हारी उस हसीं के लिए में, बेकरार रहता हूं। क्या बात है तुझमें की, इतना मशहूर हूं में तुझमें, की फ़र्क नहीं किसी जन्नत का जैसे सारी जन्नत तो तुमसे मिलकर आती है। तुम बस कहदो की साथ रहोगे मेरे, की सारी जन्नत ही तुम्हारे हाथ में हो।
कभी ऐसा लगता है, की कुछ कर दिखाऊ पर करने की हिम्मत नही होती। कभी ऐसा लगता है, की अपने आप को इस काबिल बना दु की, अपने आप पर फक्र करने लगु। और कभी ऐसा लगता है की, में यह कर सकता हूं या नहीं। कभी ऐसा लगता है की, में अपने आप में मस्त हूं, कभी ऐसा लगता है की, में अपने आप में कुछ नहीं।