Yuddhveer Singh   (खानाबदोश)
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Joined 1 March 2018


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27 JUL 2022 AT 3:26

तू आया छीनने मुझसे मेरे ख़्वाब,
कोई तो वजह जो तूने सोची ऐसी,
तू बोला मेरा प्यार नकारा, एक भद्दा दाग़,
एक दिन तेरी महबूबा भी किसी और के बिस्तर पर लेटी होगी।

कह दे बेगैरत आवारा जाहिल या बेचारा,
ना कहना बुरा मेरे वक्त को जो उसके साथ था गुजारा,
वो, लम्हे, वो वक्त वो तस्वीरों के सहारे काटी है रातें,
वो मुझपे मुझसे ज्यादा हक़ जताने वाला रहा कहां अब हमारा,

अब मैं लापता घूमता फिरू,पर टूटा थकान से ही,
अब जिस भी गली से गुजरू दिखता तेरा मकान नहीं,
आसान नहीं एक उमर दर्द में हमने काट दी,
तुम पत्थर दिल, मेरी खुशियां थी सारी कांच की,

जलाए नही आज भी वो खत जिनपे तेरा नाम,
मैं लिखूं हाल अपना, ये लोग मेरे गम खरीदें सरेआम,
सिर्फ मालूम उन्हें वो किस्से बेवफाई के, वो नजर कैसे मिलाएंगे,
जब करोगे एहदे वफ़ा हम याद बहुत आयेंगे।

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1 JUL 2022 AT 13:16

अंधेरों से डर क्या, हम एक दूसरे के नूर थे,
दुनिया भर में हमारे किस्से भी मशहूर थे,
जख्मों को मरहम की जरूरत ही न थी,
उन्हें पाके हम हो गए मघरूर थे,

थी बात अलग औरों से उसमे,
एक लाश में भी जान डाल दी,
जहां सदियों से सूखा पड़ा था,
उनकी खुशबू ने पहचान डाल दी,

मैं जो सिर्फ तस्वीरों में मुस्कुराता था,
उन लबों को हंसना सिखाने आई थी,
जो सुकून का मकान टूटा था मेरा,
उन ईंटों से एक नया घर बनाने आई थी,

कहां मिला है सुकून उसे जिनके हिस्से में सिर्फ रात हो,
वक्त ने छीना है सब कुछ, हर बार, उसे जिसका साथ हो,
जो बीच समंदर छोड़ गए, उनसे ख्वाहिश है मेरी,
मेरे मौत पे एक बार सीने पे उसका हाथ हो।

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1 JUL 2022 AT 12:49

लिखता हूं मौत पे क्योंकि जीने की वजह नही है,
जो वजह बने उनकी यादें मैंने हाथो से दफ़न की है,
वक्त, प्यार, दिन, रात, सब एक न एक दिन भरेंगे ज़ख्म,
ये झूठ पे भरोसा करने की दिल में जगह नहीं है,

जितनो से मांगा प्यार, बदले में दर्द मिला,
उजाला ढूंढने जिधर निकाला माहौल सर्द मिला,
ज़ख्म इतने पड़े सूखने को की नए की जगह नहीं,
फिर भी नए घाव मिलते की मौत की अब रजा रही,

एक कलम ही है जिससे बयां कर जाता हालत को,
वक्त नही लगता मौत को, अगर न लिख पाता जज़्बात को,
ये कला ही थामे है सांसों की डोर मेरी,
मैं भी पाक हो जाता अगर कोई थाम लेता मेरे हाथ को,

जिस दिन मौत मुकमल होगी मुझे, उससे मेरा सवाल होगा,
मेरी गलतियां क्या जो खोया सब कुछ इसका हिसाब होगा,
मैने नही मांगी ये जिंदगी तो गम ही गम क्यों, इसका जवाब होगा,
वो भी रोएगा मेरे ज़ख्म देख उसको भी मलाल होगा।

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28 JUN 2022 AT 23:15

The hope was lost, so was I,
Wanted to stay away from light,
I was afraid, waiting to die,
Then I saw her eyes, that shines so bright,

And if I was with you, I wouldn't need the sky,
No Northern lights, no Superman's kryptonite,
No I don't want to see the Eiffel Tower at night,
I could just look you in the eyes, that shines so bright.

They bring the peace, to my heart,
To my mind, they talk alot
Without saying anything, ain't that an art,
Till my demise, I'll look in the eyes, that shines so bright.

Deeper than an ocean, calmer than moon,
distant yet so desirable, oh I couldn't attune,
Oh, the peace was lost, even having everything despite,
I found it in the eyes, eyes that shines so bright.

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28 JUN 2022 AT 23:12

जिस पहर से बात हुई हमारी थी, वो पहर खुशनुमा था,
साहिबान, मैने आंखों में देख अपनी धड़कनों को सुना था,
उनके ऊपर एक छोटे से तिल को दिल दे बैठा,
ऐसी नायाब परियां तो सिर्फ कहानियों में सुना था,

मेरे गम-ए-शाम में आई तू एक नया अफताब बनके,
तू छुपी दूर जैसे बादलों से मेहताब झलके,
तेरी आंखों की कशिश डूबा ले ना मुझे,
अब तेरे बातों और मुलाकात के मोहताज ठहरे,

तू दिमाग में बसी रहे ताकि याद तेरी आए न,
तन्हाई थी मेहमान मेरे घर से जो जाए ना,
तेरे बातों ने वो सहर भूला दिया,
अब तेरी आंखों में मेरा दिल क्यों समाए ना?

आंखों में तेरी देखूं खुदको जैसे हो वो कोई आयना,
गहरी वो ख्वाबों समंदर समेटे, और मैं करता हूं मुआएना,
तेरे आंखो से कह इतना खुश न करे मुझे
थोड़ा तो रुलाए मेरे अंदर का शायर मार जाए ना,

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28 JUN 2022 AT 14:30

अब मैना दूर कहीं उसका पता कहां,
मैं मान बैठा था खुदा उसकी खता कहां,
कब चल पाता सहारे उसके,
उसके जाने से भी टूटा मेरा जहां कहां?

वो कैद थी पिंजरे में जब मैं था आज़ाद,
चमकता था पहले भी मेरे महखाने का मेहताब,
तो क्यों रहो पड़ा उसके इंतज़ार में यहां,
कैसे करू आराम जब अधूरे पड़े है मेरे ख़्वाब,

हूं उठ खड़ा तयार मंजिलों को तरफ बढ़ने को,
वो रास्ते तो बिछड़ से गए उन्हें अपना करने को,
जो लग गई थी लत मैना के सहारे की,
अब डटे है हथियार लिए सारी जंगें खुद से लड़ने को,

जो रहा वो अपना, जो चला गया वो अपना कैसा?
जो अपना है वो आएगा, जो ना आए तो रुकना कैसा?
दिए पंख थे उसे खुदा ने, लेकिन उड़ने की आजादी मैंने,
तू रख बुलंद दिल को अपने मंजिलें खुद हासिल की तो झुकना कैसा?

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28 JUN 2022 AT 14:17

था अकेला रास्तों पे बढ़ रहा मंजिलों की तरफ,
पिंजरे में दिखी फंसी मैना एक मेरी बंदिशों की तरह,
मैं तोड़ पिंजरा उसके पर किए आज़ाद उड़ने को,
उसके बांधने वाले देख रहे मुझे रंजिशों की तरह,

मैना बंधन से आज़ाद उड़ जा बैठी एक डाल पे,
मैं भी हूं खुश उसे उड़ता देख अब उसके हाल पे,
देख मैना सुनाने लगी मुझे अपना गीत,
सुन लगा ऐसा जैसे था इसी घोष के इंतज़ार में,

उसकी मंजिलों को अपना बना चल दिया साथ उसके,
वो चहक चहक गुनगुनाए गीत, मैं भी पास उसके,
अपनी मंजिले छोड़ रहा खड़ा उससे मुतासिर मैं,
मुसीबतों के मांझे से कटे पर, कटा मैं भी साथ उसके,

वो उड़ चली खुद को बचा, मैं गिर गया मिली इश्क की सज़ा,
टूटा बिखरा हुआ वापस आने की उम्मीद में ठेहरा रहा,
पड़ा हूं सोच में वो ना थी साथ तो क्या था?
वही अकेले दो जोड़ी कपड़े में सही, पड़ा मेरे लिए पूरा जहां था।

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18 JUN 2022 AT 4:28

था लिखने का मन नही तुझपे पर लिखने जा रहा हूं,
खून के सियाहि को पन्नों पे सजा अपने जख्म बहा रहा हूं,
बोला था तेरी याद में न आएंगे ये अश्क दुबारा,
तो आज ये बिन वजह फिर क्यों रोए जा रहा हूं ?

मैं ये दर्द बांटने जो बैठा पिरो में,
सभी दिखे तंग हाथों की लकीरों से,
मुख्तलिफ परेशानियां खाए जा रही उन्हें भी,
है बंधे वो भी इस वक्त की जंजीरों में,

तो इन खयालों को क्या दबा दूं अंदर की दम घुट जाए?
या समेट लूं उन्हें खुद में की मेरा सब कुछ टूट जाए?
इस सवाल का जवाब आयेगी देने क्या तू?
या डरती है की देख मेरे आंखों के आईने में खुद को फिर से तेरा दिल न लूट जाए?

इसी जवाल को दबाए भटक रहा उरूज़ की तलाश में,
ख़्वाबों का वो जहां भी रखा है संजोए तेरे आने की आस में,
हा है इल्म मुझे लटकेंगे फांसी पे वो,
मैं, मेरे ख़्वाब और मेरा जिस्म मेरे होशो हवास में।

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11 JUN 2022 AT 0:23

लिखूं अफसाने अब दर्द बयां करने को,
रंजीशे, बंदिशे, दुश्वारियों को रिहा करने को,
वो बोले मैं हूं तेरा तू मांग तो सही,
मैं मांग लिया उनसे मेरी मौत की दुआ करने को।

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4 JUN 2022 AT 3:44

तेरी नफरतों की आग में जल सा गया हूं,
जीने के लिए जिंदगी से ही लड़ मैं रहा हूं,
पहली किरण की तरह खुशनुमा था कभी,
आज एक अंधेरे शाम की तरह ढल रहा हूं,

अंधेरों से घिरा डूब रहा हूं एक शून्य की तरफ,
याद तेरी आज भी गुजरे दिमाग में बहते लहू की तरह,
तुझे भूलने की कोशिश तो भरपूर कर रहा हूं,
मैं आज फिर एक बार एक नई मौत मर रहा हूं,

तेरी बेइमानियों को सह बचपना समझता गया,
तेरी खामियों को अपना तुझे प्यार करता गया,
अब हिज्र पे लिखे अपने मर्सिए पढ़ रहा हूं,
आज फिर तेरे दिखाए उन झूठे ख्वाबों से डर रहा हूं,

देती रही तू वक्त और मुझे बराबर का दोष,
हर वक्त कमियां गिनाई, गलतियां दिखे तुझे हर रोज,
हरे पत्ते सा डाल पे सजा था, सूख अब झड़ रहा हूं,
साथ छोड़ तेरा लड़खाता सही मंजिल की तरफ बढ़ रहा हूं।

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