तुम्हारी ये चुप्पी
मनमोहक बड़ी है,
यह नम सी निगाहे
मनमोहक बड़ी है,
तभी तो हा नादान
आंखे ये मेरी
तुम्हारे ही चेहरे पर
आकर खड़ी है।
तुम्हारी ये चुप्पी,
चतुराई तुम्हारी,
तितली सी चंचल
चपलता तुम्हारी,
लगती हो मुझको बहुत खूबसूरत
जब तुम किताबों में खोई हुई हो।-
From Gujarat(b.k)
Dhanera-Raviya-385310
रूह कांपी,
बीते कल की याद हुई जो ताज़ा,
देर थी क्या फिर,
विरल यादों को खुद से किया साझा।
बरसों बाद जब फिर एक बार मैं उसी गली में आया।
भीड़ के आदि मुझको मैंने फिर अकेला पाया।
रुक जाता था,
बिना फिक्र के वक्त कहां फिर जाता
देख के आज,
विद्युत वेग से भागा बाहर जाता।
वहीं हूं मैं, और वही जगह, बस कुछ कुछ बदला सा है,
खुशी नहीं खामोशी है अब, कुछ सन्नाटा सा है।
इस घर में लगती घुटन अभी, बिछड़ गये रे यार सभी।
वो कभी न जानेवाले अब क्या फिर मिलेंगे यहां कभी?
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मैं तो कुत्ता हूं, मेरी इज्जत करेगा भी कौन?
जबतक हो जरूरत लोग लाड है लड़ाते,
खाने को रोटी तो कभी बिस्कुट भी देते।
लेकिन ये सब तबतक उनका मूड सही हो जबतक,
मिजाज बिगड़ते ही वो मुझको लताड़ते,
कभी पीटे लात से तो कभी डंडे भी मारते।
दुख मुझे भी होता है, मैं भी फिर तो रोता हूं
लेकिन मेरा रोना सुने कौन?, मैं तो कुत्ता हूं।
मेरी इज्जत करेगा भी कौन?
थोड़ा वक्त बीतते ही मैं सब कुछ भूल जाता हूं,
जैसे कुछ हुआ ही नहीं मैं वैसा हो जाता हूं।
मुझे मारने वाले भी मुझे फिर से लाड लड़ाते है,
जैसे कुछ हुआ ही नहीं वो भी ऐसे जताते है।
लेकिन ये लाड प्यार तबतक उनका मूड सही हो जबतक।
शायद मेरा होना भी ये होने के लिए है,
छुपाकर खुद के आंसू बस रोने के लिए है।
शिकायत करू तो भी किससे,
मेरी शिकायतें सुनेगा कौन?
मैं तो कुत्ता हूं मेरी इज्जत करेगा भी कौन?-
फिर दौड़ लगाई सपनो की गलियों में मैने,
फिर मुंह मोड़ा है अपनो की गलियों से मैंने।
जो टूट- टूटकर बिखर-बिखर कर मर जाना था,
फिर उसे जगाया मौत की गलियों से मैंने।
वो यार वार वो लाड प्यार वो फूल कली से,
चुना कंटक, नाता तोड़ा कलियों से मेंने।
संघर्ष के जरिए मंजिल तक जो पहुंचा देगी,
'लंकेश' जोड़ा है मन उसी गलियों से मैंने।-
जिंदा इंसानों को समझने की कोशिश होनी चाइए,
जो बोलता नही उसे महसूस करना चाइए।
जबरदस्ती के रिश्तों से बेहतर है आजन्म दुश्मनी,
किसी एक के मरने से बेहतर है लग्नविच्छेद हो जाना।
किसी चिल्लाते हुए का एकदम से चुप हो जाना,
कहा का न्याय हैं किसी का जीवन छीना जाना।
गुजारिश है इस समाज से कि किसी को इतना भी
मजबूर ना किया जाए, कि उसे जीने से आसान लगे मर जाना।-
वादा जो किया था मैंने वो निभाकर जाऊंगा,
जाते जाते मैं सबकुछ ठीक करके जाऊंगा।
माना कि खरा नही उतरा मैं कई सारी बातों पर
बची कुची बिगड़ी बातों को में बनाकर जाऊंगा।
फर्क नही पड़ना यहां, किसी को मेरे जाने से,
सब रिझा लेंगे मन को कोई खूबसूरत से गाने से,
कोई होगा नजदीकी तो वो रो लेगा तो रो लेगा,
दस बारा दिन तक करेंगे परहेज अच्छा खाने से।
कुछ कर्ज लिया था यारो से वो कर्ज चुकाकर जाऊंगा,
गर फर्ज है फंदा फांसी का वो फर्ज अदा कर जाऊंगा।
हुई होगी तकलीफ किसी को जाने या अनजाने में,
तो उन सब को तकलीफों से, मैं जुदा कर जाऊंगा।
वादा जो किया था मैंने वो निभाकर जाऊंगा,
जाते जाते मैं सबकुछ ठीक करके जाऊंगा।-
मैं जब पीड़ा से भर जाऊंगा, मैं खामोश हो जाऊंगा।
नहीं कहूंगा एक भी लब्ज़ मैं किसी से,
किसी से किसी की ना शिकायत करूंगा।
अच्छा बना रहा हमेशा, अब बुरा नही बनना है,
बुरा बनू इससे पहले मैं अनंत में खो जाऊंगा।
नहीं बनना चाहा मै तकलीफ किसी की,
फिर भी लगे इल्जाम जो मुझ पर,
मेरे अपनो से लड़कर क्या मिलेगा मुझे,
मैं मेरे अपनो से भी दूर चला जाऊंगा।
मैं जब पीड़ा से भर जाऊंगा, मैं खामोश हो जाऊंगा।-
मैने खो दिया वो दोस्त,
जिससे बात करने के लिए हमेशा तत्पर रहता था।
जिससे अपने जीवन की सारी बातें कहता था।
हर समस्या सबसे पहले जिससे साझा करता था।
मेरी हर समस्या का समाधान करनेवाला,
मैने खो दिया वो दोस्त।
मैं जब भी मिला उससे, एक उलझन लेकर मिलता था,
वो खुद था परेशान फिर भी हंसते हंसते मिलता था।
सुनकर मेरी बात हमेशा, मुझको जो समझाता था।
मेरी हर उलझन को सुलझानेवाला,
मैने खो दिया वो दोस्त।-
हो हाथ में किताब और,
नजरे झुकी हो।
जब बाहरी दुनिया से तुम,
अलग हो चुकी हो।
भूल जाती हो तुम ये कि
आसपास क्या है,
समय की गति भी हा
जैसे रुकी हो।
तुम्हारी सहजता,
सरलता तुम्हारी
चेहरे पे झलकती
मासूमियत तुम्हारी।
लगती हो मुझको
बहुत खूबसूरत,
जब तुम किताबों में
खोयी हुई हो।-
इतनी ऊंचाई पर टिकना
मेरे बस की बात कहां?
कभी तो गिरना ही था तुम्हारी नजरो से।-