फितरत थी उनकी दगाबाजी करने की
तिरस्कृत कर हमें हर पल हर क्षण
हमारे ही नजरों में हमारी इज्जत तार तार करने की
किया भी निसंकोच बार बार हर बार
प्रेम और समर्पण की कसौटी पर खरे उतरे हम हर पैमाने में
लुटा कर देखी अपनी घुटती सांस भी जिनको पाने में
वो ही निकले बेहतर की तलाश करने इस ज़माने में
फ़िर क्या करता मैं खुदाया
फिर क्या करता मैं खुदाया
मैं भी नजर आया लोगों को फिर
जमाने भर के हर मयखाने में-
🌸तस्य सिया वा अहं सदा एकः एव अस्मि🌸
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आज फ़िर रोया वो टूटकर टुकड़ों में
ये बात आख़िर उसने बताई किसको
कौन रोया कौन खोया
कौन टूटा कौन रूठा
क्या है पाया क्या है खोया
इसका हिसाब नहीं लगा पाया
इस बार भी दिवाली पे वापस
वो नवजवान घर नहीं जा पाया
ये विरह उसका आखिर मैं समझाऊं किसको
जो उसको विरह के जौहर में
राख होता देख भी ख़ामोश रहा
कैसे जज़्बात अपने मैं बताऊं उसको
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नए लोग नई महफिल नई बातें नई यादें
नए दोस्त नए ख्वाब नए सपने नए अपने
नया जमाना त्रेता द्वापर तो बहुतय पुराना
नई हंसी नए ख्वाब नया अंदाज
नए दोस्त नई किताब नया खिताब
नया मुकाम नया अंजाम
नई शाम नया जाम नई जिंदगी नया मुकाम
नर में राम दिख भी जाएं तो भी सीता स्त्री से गुमनाम
इसी को तो नया जमाना कहते हैं
हाथ पकड़ना भी अब आम बात लगती है
पूछकर हाथ पकड़ा तो पुरुषार्थ की कमी
बिना पूछे पकड़ा तो दुस्सासन सी प्रवृत्ति
सुरक्षित तो धुत सभा में द्रौपदी भी ना थी पांडवों के हाथों
सर्वशक्तिशाली सर्वश्रेष्ठ योद्धाओं से रक्षा ना हो सकी
क्या मैंने धुत सभा में उसको नीलाम किया था
अपना सर्वस्व न्यौछावर कर हृदय तन मन तो किसी के बस नाम किया था
रखा था उसकी मान मर्यादा को अंबर समतुल्य
दुर्गा स्वरूप मान बस उसके चरणों को प्रणाम किया था
स्त्री का सम्मान करने की प्रवृत्ति का तिरस्कार करता जमाना
अरे सदियों पहले की बातें जनाब
वो द्वापर त्रेता तो बहुतय पुराना
🏹 जय सिया राम 🏹-
तकलीफ तो बहुत है अपने दिल में
आंखों में सैलाब लिए फिरते हैं
भीगी पलकों में नियति का सितम छुपाए
आंखों में गर्व व सम्मान साथ साथ लिए फिरते हैं
यूं तो यादों में तुम्हारी हम रोज़ जौहर की आग से जलते हैं
अरे हम तो मतवाले हैं माटी मातृभूमि के
अपना सर कलम कर के भी
मां भारती का सम्मान लिए फिरते हैं
हम तो ठहरे प्रेमी त्रेता द्वापर ज़माने के
तन मन हृदय राम सीता सा त्याग लिए फिरते हैं
स्त्री समान की बात हो गर
महाभारत रामायण का युद्धघोष व यलगार लिए फिरते हैं
जिंदा तो हैं सांसें भी चल रही
जिंदा होके भी शहीदी का खिताब लिए फिरते हैं
हृदय में जेल डायरी संजोए भगत सिंह की
हम हस्तरेखाओं में भी इंकलाब लिए फिरते हैं-
मुझ में कहां अब मैं रहा
मुझ में बस तुम ही तुम हो
मेरी नींद हो तुम मेरा ख़्वाब हो तुम
मेरी हर धड़कन की आवाज़ हो तुम
तुम बिन हर क्षण अंधियारा है
मेरा सूरज तुम मेरा चांद हो तुम
तुम हो मेरी जिंदगी ही
मेरी तो हर स्वांस हो तुम
मुझमें मैं भी राख आज हूं
मेरा धर्म तुम ही मेरी जात हो तुम
हर ईश तुम ही हर धाम हो तुम
तुम ठहरे कैलाश भी मेरे
मेरा मानसरोवर का ताल भी तुम
हर रोम तुम ही हर कण में तुम हो
मुझ में मैं नहीं मुझ में तुम हो
मुझ में मैं नहीं मुझ में तुम हो-
Dear Girls
You don't need an ALPHA MAN
To feel protected
You just need a " MAN "
Who respects your dignity
Who nurtures your soul
Manlihood which degrades respect of woman
Is not manlihood at all-
From MAHANARAYAN beyond multiverse
To MULTIVERSE beyond universe
From UNIVERSE beyond galaxies
To GALAXIES beyond solar system
From SOLAR SYSTEM beyond planets
To EARTH among planets
From seven continents beyond ASIA
To BHARAT beyond your State
From state beyond your DISTRICT
To CITY beyond your home
From Soil of your house
To the DUST of your feet
I loved you so so little
Coz I worshipped you my DEITY
And I bow at thy feet-
तुम्हारे चले जाने के बाद
मैंने बस मेरी मौत से वफ़ा मांगी है
नयनों में सैलाब लिए दिन दोपहर शाम
तुम्हारी खुशियां ही हर दफा मांगी है
मैंने मेरे रब जी से हर सांस पूरे हक से
तुम्हारी जिंदगी की हर बला मांगी है
भले ही निर्जन वीरान सा पाऊं खुदको मैं
फिर भी रब जी से तुम्हारी शिकायत करूं
नहीं जाना नहीं स्वप्न में भी नहीं
तुम ताउम्र मुस्कुराओ जाना
मैंने तुम्हारे लिए रब जी से यही सजा मांगी है
मैंने तुम्हारे लिए रब जी से यही सजा मांगी है-
मेरा जिक्र ना करना अब शायद
उनकी मज़बूरी है
मेरी रुकती धड़कन शायद
उनकी खुशियों के लिए जरूरी है
मेरी तो प्रत्येक स्वांस
लगता उनके बिना अधूरी है
मुझे उखड़ती सांसे देकर
शायद उनके चेहरे की मुस्कान अब पूरी है
शायद उनके चेहरे की मुस्कान अब पूरी है-
🧡 STAR'S 🧡
GRACEFUL TO LOOK AT
BUT HARD TO REACH
SOME THOUGHTS ONLY HEARTBEATS UNDERSTAND
TO BRAIN SOMETIMES
IT'S HARD TO TEACH-