अंधेरा कब तक जीतेगा
दिलों को रौशन-ए-चराग़ कर दो
सफर लम्बा है नम रातों का
रूह की आग बेहिसाब कर दो-
Poetry lover
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इक पल ठहर कर देख तू अपने अन्दर छुपी गहराईयों को
तेरी झील सी आँखो... read more
इतनी हैरानी से तुम पूछते हो
अरसे से मेरी कलम खामोश क्यूँ है
कुछ धुंधले से अल्फाज़ लिखती हूँ आजकल
गर पढ़ सको तो पढ़ लो-
ज़िन्दगी जब थोड़ी धीरे चलने लगी
कुछ बारीकियाँ इसकी पता चलने लगी
बेतरतीब जो चीज़ें कब से पड़ी थीं
सुकून से सहेज कर मैं उनसे मिलने लगी
मंज़िल की तालाश आज भी जारी है मगर
रास्तों के साथ बैठकर मैं भी मुस्कराने लगी
पक्की सड़के ना सही पगडंडियाँ ही हैं चलने को मगर
मैं भी इस ठहराव को ख़ुदमें महसूस करने लगी-
हर वक्त खुद को ऊँचा और दूसरों को नीचा दिखाने की होड़ है
पूछो कभी तो कहते हैं, पढ़ाई चल रही है
सभी तो अंधे और बहरे हैं यहाँ
फिर मेरे शहर में किसकी बादशाही चल रही है
क्यूँ सरेआम ये दर्द की नुमाइश चल रही है
आज फिर किस केस की सुनवाई चल रही है
ना जाने किसकी किससे कौन सी लड़ाई चल रही है
लगता है लोगों के बाजार में इंसानियत की महंगाई चल रही है-
कोई ढ़ूढ़ो मुझे गर ढ़ूढ़ पाओ तो
मेरा चेहरा भी अब सबके जैसा लगता है
ये कैसी हवा चली इधर से की
सब बिखरा-बिखरा लगता है
टूटा हूँ मैं इस हद तक
दिल टुकड़ों में अब धड़कता है
हरियाली कल तक थी जहाँ पर
अब बंजर सेहरा लगता है
क्या यही थे वो मेरे सपने
आँखें मूँदू सब धुँधला मंजर लगता है
माँ ने बोला था तू भी एक दिन पापा जैसे हो जाएगा
क्यूँ आज मुझे मेरा बचपन भी इक सपना सा लगता है-
मैं पत्थर काट कर रास्ता बनाता रहा
वो दिये जला कर उसे अपना बताता रहा-
आज शहर में सब खूब नाचे बारिश में
गाँव में किसान फिर रोया फसल बर्बाद होने पर-
Love is complete blissfulness
But if you get hurt in love
then examine it carefully
may be it's
attachment & dependency-