"कौन जाने?"
झुक रही है भूमि बाईं ओर, फिर भी
कौन जाने?
नियति की आँखें बचाकर,
आज धारा दाहिने बह जाए।
जाने किस किरण-शर के वरद आघात से
निर्वर्ण रेखा-चित्र, बीती रात का,
कब रँग उठे। सहसा मुखर हो
मूक क्या कह जाए?
‘संभव क्या नहीं है आज—
लोहित लेखनी प्राची क्षितिज की,
कर रही है प्रेरणा, यह प्रश्न अंकित? कौन जाने
आज ही नि:शेष हों सारे सँजोए स्वप्न,
दिन की सिद्धियों में
कौन जाने
शेष फिर भी,
एक नूतन स्वप्न की संभावना रह जाए।
'बालकृष्ण राव'- YQ Hindi
27 JUN 2023 AT 23:21