**"संयोग की संध्या"**
चाँदनी रात में घुला हुआ इत्र,
तुम्हारी साँसों का संगीत...
हमारे बीच की दूरी,
एक तपस्या की तरह टूटी,
जब आँखें मिलीं तो लगा -
यही तो है वो मंदिर,
जहाँ प्रेम की पूजा होती है।
तुम्हारी हथेली पर मेरी उँगलियाँ,
मंत्र बनकर लिखी गईं...
हर स्पर्श में जागा वो ज्ञान,
जो वेदों से भी पुराना है।
तुम्हारा शरीर - मेरी समाधि,
मेरी चेतना - तुम्हारा आसन।
जब एक हुए हमारे तन,
तो लगा यही है वो योग -
जहाँ न कोई पड़ोसी, न कोई भेद,
सिर्फ़ दो आत्माओं का मिलन...
और रात भर बहता रहा
अमृत का वो स्रोत,
जिसे हम संभोग कहते हैं।
यह कविता कामुकता को गरिमापूर्ण ढंग से प्रस्तुत करती है, जहाँ शारीरिक आनंद आत्मिक अनुभव बन जाता है।-
87992 99827
**"रात की रागिनी"**
चाँदनी में नहाई तुम्हारी चुप्पी,
हवा में तैरता तुम्हारा इत्र...
पड़ोस की दीवारें भी जानती हैं,
कैसे गुनगुनाते हैं तुम्हारे सपने।
तुम्हारी साँसों की लय,
मेरी नींद में घुल जाती है,
जब रात झुककर
तुम्हारे खिड़की से झाँकती है,
मैं सुनता हूँ -
तुम्हारी चादर की सरसराहट,
तुम्हारे तकिए की मदहोशी...
हमारे बीच की ये दूरी,
एक अधूरी ग़ज़ल की तरह,
जिसके अश्आर रात भर
मेरी रगों में दौड़ते हैं...-
**"पड़ोसन"**
हर सुबह तेरी चुनरी उड़ती है,
मेरी खिड़की से टकराकर...
तेरी मुस्कान के नशे में,
मैं दिन भर बेसुध पड़ा रहता हूँ।
तेरी आँचल की छाया में,
मेरे ख्वाबों का डेरा है भाभी...
जब तू बालकनी में निचोड़ती है गीले कपड़े,
मेरी साँसें अटक जाती हैं तेरी बाँहों के घेरे में।
तेरी चप्पलों की खटखट,
मेरे दिल की धड़कन बन जाती है...
और वो दिन जब तूने गलती से
मेरे कमरे में झाँक लिया,
मैंने देख लिया तेरी आँखों में छुपा वो सन्नाटा,
जो मेरे सपनों को गीला कर देता है।
तेरी रसभरी बातें,
मेरे कानों में शहद घोलती हैं...
और जब तू पानी पीती है,
गले का उठना-गिरना,
मुझे पागल कर देता है-
तुम्हारा नंगा पन"
तुम्हारा उभरता हुआ बदन, मेरेखड़े हुए लिंग को और सख्त बना देता है... हर मुद्रामें तुम जब हिलती हो, मेरीनसों में आग बह जाती है।
तुम्हारे स्तनों का भारीपन, मेरेहाथों को बेचैन कर देता है, जब तुम झुकतीहो आगे की तरफ, मेरालंड और भी तन जाता है।
तुम्हारी गोल जांघों के बीच, मैंअपना चेहरा दबाना चाहता हूँ, तुम्हारीगीली गर्मी में, अपनीजीभ डुबो देना चाहता हूँ...
और जब तुम मुझपर बैठोगी, मेरासख्त लंड तुम्हारे भीतर जाएगा, हम दोनोंकी तड़प एक साथ मिलेगी, और येपल हमें स्वर्ग दिखाएगा...-
**"जंगल का रस"**
हमारी देहें चिपकीं
उस गर्म घने अंधेर में,
जहाँ बेलें हमारी छालों को
छूने लगीं...
तुम्हारी साँसों की गर्मी
मेरी गर्दन पर भाप बनकर उठी,
और जब मैंने तुम्हें दबोचा,
किसी जानवर की तरह,
तुम्हारी चीख ने पक्षियों को उड़ा दिया...
गीली मिट्टी पर हमारे निशान,
हमारे पसीने की खुशबू
जंगल की हवा में घुल गई—
तुम्हारे नाखून मेरी पीठ में
जैसे कोई बेल चढ़ रही हो...
और जब हमारे शरीर एक हुए,
पेड़ों की छाल ने देखा
कैसे हमने जंगल के देवता को
पुकारा— अपनी चीखों से,
अपने रस से,
अपने उन्माद से...
**भाव:** जंगल की कामुक उष्मा, जहाँ प्रकृति और देह का मिलन होता है।
**विशेषताएँ:**
- प्रकृति और कामुकता का मिश्रण
- जंगल की ध्वनियों और संवेदनाओं का वर्णन
- अप्रत्याशित स्थान पर रोमांच
क्या आप चाहेंगे:
- अधिक जानवरों वाली प्रतीकात्मकता?
- जलप्रपात या नदी के पास का दृश्य?
- अधिक आदिम/क्रूर भाषा?
आपकी पसंद के अनुसार बदला जा सकता है।-
**"जंगल का रस"**
हमारी देहें चिपकीं
उस गर्म घने अंधेर में,
जहाँ बेलें हमारी छालों को
छूने लगीं...
तुम्हारी साँसों की गर्मी
मेरी गर्दन पर भाप बनकर उठी,
और जब मैंने तुम्हें दबोचा,
किसी जानवर की तरह,
तुम्हारी चीख ने पक्षियों को उड़ा दिया...
गीली मिट्टी पर हमारे निशान,
हमारे पसीने की खुशबू
जंगल की हवा में घुल गई—
तुम्हारे नाखून मेरी पीठ में
जैसे कोई बेल चढ़ रही हो...
और जब हमारे शरीर एक हुए,
पेड़ों की छाल ने देखा
कैसे हमने जंगल के देवता को
पुकारा— अपनी चीखों से,
अपने रस से,
अपने उन्माद से...-
**"चॉकलेट और तुम"**
मैंने चॉकलेट पिघलाई
तुम्हारे उभारों पर—
धीरे-धीरे बहती मिठास
जैसे गर्म शहद की नदी...
मेरी जीभ ने चखा
वो मीठे-नमकीन स्वाद—
तुम्हारी त्वचा का नमक
और डार्क चॉकलेट का पागलपन...
तुम हंसी जब मैंने चूमा
वो टपकता हुआ अमृत—
"और खा" तुमने कहा,
मैं डूब गया तुम्हारी मिठास में...
हमारी चिपचिपी खेल
बन गई दावत—
तुम्हारे स्तनों पर मेरे होंठ
चॉकलेट से भी मीठे...-
**"चॉकलेट और तुम"**
मैंने चॉकलेट पिघलाई
तुम्हारे उभारों पर—
धीरे-धीरे बहती मिठास
जैसे गर्म शहद की नदी...
मेरी जीभ ने चखा
वो मीठे-नमकीन स्वाद—
तुम्हारी त्वचा का नमक
और डार्क चॉकलेट का पागलपन...
तुम हंसी जब मैंने चूमा
वो टपकता हुआ अमृत—
"और खा" तुमने कहा,
मैं डूब गया तुम्हारी मिठास में...
हमारी चिपचिपी खेल
बन गई दावत—
तुम्हारे स्तनों पर मेरे होंठ
चॉकलेट से भी मीठे...-