बिना अनुशासन मन पर शासन नहीं किया जा सकता।
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परिस्थिति चाहे अनुकूल आये या प्रतिकूल आये, उसका आरम्भ और अन्त होता है।
अब ऐसी प्रतिक्षण जन्मने और मिटने वाली अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियों को लेकर अतिउत्साहित या हतोत्साहित होना है या नहीं, ये निर्णय आपको करना है।
-भगवद्गीता प्रेरित-
कुछ करने का एक कारण कुछ न करने के सौ बहानों से ज्यादा ताकतवर है। उस कारण को पहचानिए।
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तेरी लौ सुलगी और हम पिघलते चले गए
बेसुध हुए और इश्क़ में हम जलते चले गए-
तेरी लौ सुलगी और हम पिघलते चले गए
बेसुध हुए और इश्क़ में हम जलते चले गए-
कोई रंग भी न घुला और इंद्रधनुष चमक उठा
कोई इत्र भी न खुला और आलम महक उठा
कहूं इबादत, अदायगी या जादू इस इश्क़ को
तुझ में मैं मिला और मुझ में तू ही तू झलक उठा-
न ही पूछो मुझ से मेरे इश्क़ की...
जो मैं बता ही पाऊं
तो इसे जियूं कैसे?
अब जी रही हूं इसे
तो बताऊं कैसे?— % &-
इसे इश्क़ न कहिये, ये जोख़िम है जनाब
समझ मे आने से पहले समझ चली जाती है
ये हाकिम रंगरेज का रचा रंगीन दरिया है
जिसमें डूब कर दुनिया बेरंग नज़र आती है-