yogini pathak  
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Joined 27 August 2018


Joined 27 August 2018
10 APR 2021 AT 17:34

हकिकतें बिकती हैं , ख़्वाब नहीं बिकते
दुनिया के बाज़ार में जज़्बात नहीं बिकते
मेरा ईश्वर मुझमें ही है समाया ,
बिकती तो है मूर्तियां भगवान नहीं बिकते

उसने सितारों पे रखा था कदम , आसमां की सैर को
उसे क्या मालूम था ,
वो आसमां की सैर नहीं कर सकते ,
ज़मीं पर जिनके पांव नहीं टिकते
हकिकतें बिकती हैं , ख़्वाब नहीं बिकते

लोग कहते हैं गोता लगा ही लो तुम भी , महॉब्बत के दरिया में
पर हम करें भी तो क्या ,
हमें किसी से इश्क हो जाए ,
ऐसे तो कोई आसार नहीं दिखते
हकिकतें बिकती हैं , ख़्वाब नहीं बिकते

- योगिनी पाठक

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9 DEC 2019 AT 20:49

I write .

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8 NOV 2019 AT 21:57

मैंने बचपन को देखा
आज मैंने बचपन को देखा ,
एक मासूम को मां के आंचल से लिपटा देखा ,
कुछ नन्हे कदमों को उछलकूद करते देखा ,
खूबसूरत आंखों में शरारत को चमकते देखा ,
आज मैंने बचपन को देखा ,
किसी प्यारे से चेहरे पे एक पेंसिल खो जाने की उदासी को उतरते देखा ,
सुर्ख गुलाबी लबों पे एक चॉकलेट मिलने की खुशी को उभरते देखा ,
एक छोटी सी गलती पर भी नन्हे हाथों को माफी के लिए दुआ में उठते देखा ,
आज मैंने बचपन को देखा ,
ये सब देखकर मैंने खुद को ऊपर वाले से अपने बचपन के बीत जाने की शिकायत करते देखा ,
आज मैंने बचपन को देखा ।

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3 NOV 2019 AT 15:23

नहीं ज़रूरत उसे की मां बनकर ही मां कहलाए वो ,
मां ना होकर केवल स्त्री भी है तो वो पूर्ण है स्वयं में ,
अपना अंश ना पा सके तो हर बच्चे पे ममत्व लुटाए वो.....

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19 OCT 2019 AT 22:41

धूप ने दस्तक दी है , सारी धुंध छंटने को है
अंधेरा बदल रहा है उजाले में , रोशनी फैलने को है
अब उठो तुम भी , उजालों की और कदम बढ़ाओ
बन्द आंखों के सपने तो टूटेंगे ही , अब खुली आंखों से सपने सजाओ ...

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11 OCT 2019 AT 22:26

वो एक ख़्वाब है अभी , हक़ीक़त में जाने कैसा होगा
अनदेखा वो शख़्स , जाने कैसा दिखता होगा
कभी यूंही खयालों में तराशती हूं चेहरा उसका
क्या गहरी झील सी होंगी उसकी आंखे ...?
क्या वो भी मुझे तलाशता होगा ...?
क्या नाम होगा उसका ...?
क्या वो भी मेरा नाम जानना चाहता होगा ...?
बेचैन है मेरा दिल मिलने को उससे ,
जाने कब खत्म ये इंतज़ार होगा

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10 OCT 2019 AT 9:24

जिसकी जहां लिखी है वहां आएगी ,
मौत एक दिन ज़िन्दगी से दूर ले ही जाएगी ,
मिले हैं जो लम्हे अनमोल हैं बहुत ,
मुस्कुराकर बिताओ हर पल ,
न जाने कब ये सांसे छीन जाएंगी......

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2 OCT 2019 AT 16:54

मुझमें भी इक जंगल है ,
मैं भटकती हूं उस जंगल में ,
कई - कई पेड़ों बीच अनजाने रास्तों पर चलती हूं ,
कोई रास्ता मंज़िल की ओर ले जाता है तो कोई भटका देता है ,
इस जंगल में भटकना भी एक मंथन है ,
मेरा मन , हां यही तो नाम है इस जंगल का .......

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2 OCT 2019 AT 16:33

I will write 3001th quote

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28 SEP 2019 AT 18:34

जब सब कुछ ही बिखरा पड़ा हो तो कुछ संवारने का क्या फायदा ,
मन में अगर अंधेरा हो तो बाहर रोशनियां फैलाने का क्या फायदा ,
जब करीब थे तो कुछ कह ना सके वो अब हमें होना है किसी और का तो इज़हार करने का क्या फायदा.....

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