सबको लगाके लाइनों में उड़ गया तू तो आसमानों में,
बैंकों को ये पता नहीं कितना पैसा आया खजानों में।-
साँसे हो रही हैं कम, आओ जंगल बचाएं हम।
आओ मिलकर आवाज़ उठाएं, बक्सवाहा के जंगल को बचाएं।।-
किसी के हिस्से में बंगाल तो,
किसी के हिस्से में असम आया,
हम तो जनता हैं साहब,
हमारे हिस्से में श्मशान आया ।।-
हमारी शान है,
यही हमारा मान है, वतन का ये सम्मान है,
चले वतन इसी से है, यही हमारा अभिमान है।
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a lamp that gives as much light in the palace of the king as in the hut of a poor.
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हॉस्टल की मोटी-कच्ची रोटियां और ये नीरश सा खाना,
माँ तेरे हाथ के खाने का कभी मै था दीवाना,
दिन में एकबार खाकर अब तो भूख मर जाती है,
माँ तू नहीं अब ये भूख मुझे खाना खिलाती है।
जो खाने में करते थे हजार नखरे कभी,
वो यहाँ आज कुछ भी खा जाते हैं,
माँ तेरे हाथ के खाने को यहाँ तरस जाते हैं।
घर पहुँचते ही कितना भी खा लूँ,
फिर भी तू यही कहती है कुछ खाता क्यों नहीं है,
दिनभर बस यही रटती है तू मुटाता क्यों नहीं है ?।।
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क्या खूब खेलती हो तुम भी मेरी आँखों से
कि नज़रें मिलाती भी हो और फिर छुपाती भी हो।-