नीले आसमान के नीचे,
हरियाली की गोद में था विश्राम,
कौन जानता था शांति के बीच
बिखर जाएगा पहलगाम?
जहाँ बहती थीं उम्मीदें,
वहाँ बारूद की बू फैली,
जहाँ थी सैर की हँसी,
वहाँ मातम की चुप्पी खेली।
छब्बीस दिल अब धड़कते नहीं,
छब्बीस घरों में उजाला नहीं,
जिन आँखों में था कश्मीर का जादू,
अब वहाँ सिर्फ धुआँ और स्याही ही सहीं।
कौन जवाब देगा इस खामोशी का?
कौन सुनेगा दिलों की तन्हाई?
कश्मीर का हर पत्थर पूछे सवाल,
क्या ये ही है इंसानियत का हाल?
– योगेश
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Poems♥️😍
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सुबह की चाय अक्सर ठंडी रह जाती है,
दोपहर की भूख भी बातों में रह जाती है।
फ़ाइलों में उलझे हैं इतने बरसों से,
अपनी ही ज़िंदगी कहीं खो सी जाती है।
थक कर भी चेहरे पे मुस्कान रखी है,
हर बोझ को चुपचाप अपनी किस्मत समझी है।
ये नौकरी सिर्फ़ काम नहीं एक सफ़र है,
जहाँ हर दिन एक नए इम्तिहान का बहार है।
कभी तारीफ़, कभी ताने मिलते हैं,
कभी ख्वाब, कभी बहाने मिलते हैं।
पर रुकना नहीं सीखा इन हालातों में,
चलते रहे हम अपनी ही बातों में।
ये दौड़ है लंबी, मगर हम तैयार हैं,
हर शाम के बाद फिर नई सुबह का इंतज़ार है।
थोड़े थके हुए हैं, मगर हिम्मत साथ है,
क्योंकि मंज़िल से ज़्यादा, हमें खुद पर विश्वास है।
– योगेश
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घर वो घर जो कभी बचपन की यादों का ठिकाना था,
जहाँ हर कोना मेरी मासूम हँसी से पहचाना था।
वो दीवारें जो कहानियाँ सुनाया करती थीं,
अब चुपचाप बिकने को बाजार में लाया गया है।
आँगन जहाँ पहली बारिश में भीगते थे हम,
अब नाप-तौल में उसके दाम आँके जा रहे हैं।
जिस दरवाज़े से माँ की ममता झाँका करती थी,
आज उस पर “फॉर सेल” का बोर्ड टांका गया है।
क्या कीमत लगाओगे उन सपनों की जो वहीं देखे थे?
उन साँझों की जो दादी की कहानियों में बहकते थे?
घर बिक सकता है… पर क्या वो वक़्त बिक पाएगा?
जो दिल के किसी कोने में आज भी मुस्कुराता है।
– योगेश
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“वो जो तेरे होठों को छूकर, शर्मिंदा होकर महक उठा था,
बड़े गुरूर से खुद को ‘गुलाब’ कहता है वो”…..
— योगेश.-
यादे वेसीही रेहती हे
बस दिन गुजर जाते हे.....
दुर हम जाते हे लेकीन,
मन के फासले कम हो जाते हे....
यादे कल भी वेसी ही थी
यादे आज भी वेसी ही हे....
मुस्कुराहाट वेसी ही हे
बस आंखो की कहानी बदल जाती हे......
-योगेश
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नकळत सुचलेली कविता
तीचे शाई चे तीर्थ.....
सावर सावर म्हणता म्हणता
सुटलेले अर्थ...
लिहु लिहु म्हणता म्हणता
विसरलेल्या ओळी...
धाव घेत मन स्वतःला देते आरोळी...
नकळत सुचलेली कविता
तीचे शाई चे तीर्थ....
सावर सावर म्हणता म्हणता
सुटलेले अर्थ......
कागदावर येतांना मग ती,
अलगद कात टाकते...
तिच्यातल्या ‘ती’ चा अंश सोडून
नवी होऊन वावरते...
नंतर मात्र मामला हृदयाकडे जातो
ज्यास झाला बोध तो भावाने कडे वळतो...
त्याला वाटे हे आपलेच काव्यचित्र.....
नकळत सुचलेली कविता
तीचे शाई चे तीर्थ.....
सावर सावर म्हणता म्हणता
सुटलेले अर्थ.....
-योगेश.
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दिवाळी म्हणजे
नाते जपणारी पहाट....
दिवाळी म्हणजे सुगंधित प्रवास..
दिवाळी म्हणजे रम्य आठवणी
दिवाळी म्हणजे नात्यांचे मणी...
दिवाळी म्हणजे संस्कृती जपणे
काही पाप नष्ट करून टाकणे...
दिवाळी म्हणजे
आपुलकीची इच्छा
दिवाळीच्या आपणास शुभेच्छा.....
-योगेश.
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तुझे माझे काही क्षण
आठवत रमणे रोजचे असते....
तुझे निरागस बघणे
माझे त्यावर हसणे रोजचे असते....
धुक्याची वाट पावसात भिजणे
सारे अबोल होऊन जगणे रोजचे असते...
तुझे माझे स्पर्श सारे
स्पंदन चुकवित जगणे वेडे रोजचे असते...
तुझे माझे नवे सूर
तुझे माझे नवे गीत
तुझी माझी नवी कविता आता सारे नवे भासते...
तुझे माझे काही क्षण
आठवत रमणे रोजचे असते......
-योगेश.
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ही गुलाबी हवा
हूर हूर लावते जीवा.....
कोवळे प्रेम हे
कोवळ्या जाणीवा...
ही गुलाबी हवा
हूर हूर लावते जीवा....
श्वास बदलतात लय
सुरात सूर मिळवतो मारवा...
ही गुलाबी हवा
हूर हूर लावते जीवा...
तुझ्याच चाहुली हवेत
सारे शब्द नशेत....
सुरात मुक्त सुरमय पावा
ही गुलाबी हवा
हूर हूर लावते जीवा....
-योगेश.
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