yogendra pathak   (Yogendra Pathak)
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Joined 23 December 2022


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8 HOURS AGO

त्याग और संघर्ष जिसका मान है
वो  हमारा  मुल्क  हिंदुस्तान  है।

एकता बंधुत्व और समभाव ही
बस हमारे देश की पहचान है।

आंच हम आने न देंगे देश पर
मर मिटेंगे इसमें अपनी आन है।

आज आजादी के अमृत काल में
विश्व भर में देश की ही शान है।

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11 HOURS AGO

ये तिरंगा ये वतन ये हौसला जिंदा रहे।
हम रहें न रहें मग़र ये प्रेरणा जिंदा रहे।

खून से सींचा शहीदों ने जिसे बलिदान दे
वीरभूमि मातृभूमि ये धरा जिंदा रहे।

हम हिफाजत जान देकर भी करें इसकी यहाँ
बस वतन के वास्ते यह भावना जिंदा रहे।

उन शहीदों को नमन और याद हम करते रहें
ताकि खासो आम में वह वाकया जिंदा रहे।

ये वतन आबाद हो हर हाल जिंदाबाद हो
हर किसी के दिल में यारों ये दुआ जिंदा रहे।

योगेन्द्र पाठक
लखनऊ

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YESTERDAY AT 14:02

प्रेरणा है हौसला है जान है
ये तिरंगा देश की पहचान है..
शेष कैप्शन में पढ़ें..

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YESTERDAY AT 13:45

इन आंखों में चिंताएं हैं दुख भी है और प्यार भी है।
दुनियादारी को छोड़ छाड़ कुछ प्रेम भरा इजहार भी है।
लेकिन समाज का डर,ताने,जिल्लत के संग रुसवाई भी
इन सबसे कैसे लड़ पाएं इनकी चिंता साकार भी है।

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YESTERDAY AT 9:19

तू नहीं तुम्हारी याद सही
जो रोज उतरती है मन में
एक धूप बनी इस आंगन में
सीले सीले इस जीवन में।
एक तनहा दर्द भरा मौसम
जाने क्या दर्द जगाता है
तेरी यादों के जंगल से ही
रोज मुझे ले जाता है।
चलते चलते जब पांव रुके
तो आहट तेरी आ जाती है
मेरे भीगे भीगे मन को
एक उलझन सी दे जाती है।
तेरी यादें ही काफी हैं
मुझमें हर जख्म उगाने को
तू अब इस राह नहीं आना
इन जख्मों को सहलाने को
मै सांस सांस में याद भरूं
जीवन में एक विश्वास भरूं
तू नहीं तो तेरी याद सही
इतने से ही दिलशाद रहूं।
योगेंद्र पाठक
लखनऊ

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YESTERDAY AT 6:41

सुकून मन का कहां है किसे पता है यहां।
बड़ा तिलस्मी जहां है किसे पता है यहां।
कभी उल्फ़त कभी रिश्ते कभी तन्हाइयों में
सुकून ढूंढे यहां वहां किसे पता है यहां।

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YESTERDAY AT 5:10

इजहारे इश्क इतना आसान भी नहीं
चाहत से मेरे आप यूं अनजान भी नहीं
रुसवाइयों से तुमको बचाना था ओ हसीं
ऐसे में ये कहना पड़ा पहचान ही नहीं।

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13 AUG AT 20:53

पिया मिलन की आस लिए मन
ढूंढ रहा है कुछ तन्हाई
मन की खुशी कहां छिपती है
आहट जब प्रियतम की आई।
मन सोलह श्रृंगार करे तो
तन भी कहां पीछे हटता है।
रूप और यौवन भी सजने को
आईने के समक्ष डटता है।
खुद का ही प्रतिबिंब देख कर
मन ही मन सजनी मुस्काए
अबकी बार जो प्रिय आयेंगे
बांध ही लूंगी कहीं न जाए।
सांसों ने भी धड़कन को ही
बढ़ना जैसे सिखा दिया है
हर आहट पर ठिठक ठिठक कर
पागल ही मन बना दिया है।
आ जाओ अब तो प्रियवर तुम
बुझ जाए आंखों की प्यास
जाने कब से बढ़ी हुई है
मेरी पिया मिलन की आस
योगेन्द्र पाठक
लखनऊ

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13 AUG AT 18:52

बेवजह उलझन व ग़म में जा घिरोगे
हर किसी के दिल में बस कर क्या करोगे।

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13 AUG AT 15:48

लफ्ज़ दर लफ्ज़ ये एहसास बांध कर लिखना
ये हुनर आप ही आता है समझ कर लिखना।
बात जज्बात की हो दिल ही समझ पाएगा
कहां ए आई समझ पाएगा जज्बा लिखना।
सिर्फ तुकबंदियां शब्दों का महज जाल नहीं
गीत या गजल को लिख पाने में कमाल नहीं
पता चल जाएगा किसने कहां से कैसे लिखा।
खोखला होगा वो खुद ही सीख पाए क्या भला

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