योगेंद्र योगी  
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Joined 9 August 2017


Joined 9 August 2017

खुद को खुद ही गले लगाया कर
ग़म में भी खुल के मुस्कुराया कर

पूछता हाल बस हमारा है
अपने दिल की भी तू सुनाया कर

पानी रखने के ही बहाने से
घर की छत पे कभी तो आया कर

जान लेनी है शौक से ले ले
मुझको हरगिज़ न आजमाया कर

होके मदहोश आप ही खुद में
ख़ुद की कमियाँ न भूल जाया कर

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किसको क्या समझाया जाये
अपना ढोल बजाया जाये

"भाड़ में जाओ"से अच्छा है
खुद ही भाड़ में जाया जाये

हम पगड़ी धारी बन्दों को
अमृत से नहलाया जाये

ये हरिजन हैं इनको खाना
सबसे दूर खिलाया जाए

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कौन किसके काम आया ऐ खुदा तेरे सिवा
है यहाँ सब "मोह माया" ऐ खुदा तेरे सिवा

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है यहाँ सब " मोह माया" ऐ खुदा तेरे सिवा
कौन किसके काम आया ऐ खुदा तेरे सिवा

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दिख रहा जो दूर बस्ती से धुँआ उठता हुआ
वो किसी बुढ़िया का यारो है मकां जलता हुआ

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सुन लो तुम समझाने निकले
हम औकात दिखाने निकले

राजमहल में सोने वालो
तुमको आज जगाने निकले

अंगारे भरकर आंखों में
सड़कों पर दीवाने निकले

रोजगार, पेंशन की बातें
सब झूठे अफ़साने निकले

जिनको हमदम अपना माना
वो सब यार सयाने निकले

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दौड़ते - भागते कट गई जिंदगी
न इधर का रहा न उधर का हुआ

चार काग़ज़ के टुकड़े कमाने गया
गाँव मुझमें बसा मैं शहर का हुआ

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कभी वो भी, शरीफ हुआ करते थे
हमसे बिछड़ क्या गए, बदनाम हो गए

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न जाने कैसे मेरी माँ मेरे दुःख जान लेती है
कहूँ मैं झूठ जो कोई उसे पहचान लेती है

ज़माने भर की रश्मों को वो रख देती है कोने में
उसे करके दिखाती है जिसे वो ठान लेती है

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मैंने किया था इश्क बता तूने क्या किया
एहसान फरामोश मैं तुझसा तो नहीं हूँ

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