Yenmandra Mridula   (अवनिजा 🍁)
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free as bird😉🐦😍
Joined 20 February 2017


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28 FEB 2021 AT 22:21

अजीब शहर का नक्शा दिखाई देता है
जिधर भी देखो अंधेरा दिखाई देता है

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27 FEB 2021 AT 2:17

ये सन्नाटा ये जुगनू और ये झिंगुर का शोर
मुझे खींच रहा हैं सिर्फ तेरी यादों की ओर

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11 FEB 2021 AT 22:55

तू आज भी हैं
कहीं ना कहीं
सपनो में रहा हैं
और मिश्री के
इन बादलों में
तू आज भी
कहीं पे छिपा हैं
मैं हो गयी हूँ
सोने के महलों में
मैं हो गयी हूँ
मिट्टी के शहरों में

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10 FEB 2021 AT 22:41

मैं अकेला था
मैंने अकेला होने का व्रत नहीं लिया था
कोई नहीं था तो अकेला था
दिये की रौशनी में अकेला
अकेला बल्ब की रौशनी में
कितने अकेले लोग हैं यहाँ!
सब पानी के बुलबुलों को फोड़ते
अकेला अकेले के लिए क्या कर सकता है!
सिवाय अकेले-अकेले पानी पर सन्देश लिखने के
आ जाओ अकेले में कभी
दो अकेले एक अकेला से कभी भी बेहतर होते हैं
आओ बताओ कि जीवन अकेले जीने के लिए हैं।

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10 FEB 2021 AT 22:37

पुराने मुहावरों में मुझे डूबना था
नये मुहावरों में भी यही स्थान।
बीतता है पावस, कँपता है शरीर
रोटी लेकर भागता है कौआ।
सुग्गा कुतरता है बिम्बफल
बनते हैं एटम बम, गिराये जाते हैं।
बाथटब मेंअभिनेत्री की लाश
रोबो करता है शल्यकर्म।
अमरीका से आता है फोन कि
दुनिया बहुत व्यस्त हैंl
बदलते हैं मुहावरे
लेकिन आदमी हैरान ही हैरान।

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10 FEB 2021 AT 22:29

माँ की तरह हम पर प्यार लुटाती है प्रकृति,
बिना मांगे हमें कितना कुछ देती जाती है प्रकृति…
दिन में सूरज की रोशनी देती है प्रकृति,
रात में शीतल चांदनी लती है प्रकृति…
भूमिगत जल से हमारी प्यास बुझाती है प्रकृति,
और बारिश में रिमझिम जल बरसाती है प्रकृति…
दिन-रात प्राणदायिनी हवा चलाती है प्रकृति,
मुफ्त में हमें ढ़ेरों साधन उपलब्ध करती है प्रकृति…
कहीं रेगिस्तान तो कहीं बर्फ बिछा रखे हैं इसने,
कहीं पर्वत खड़े किए तो कहीं नदी बहा रखे हैं इसने…
कहीं गहरे खाई खोदे तो कहीं बंजर जमीन बना रखे हैं इसने,
कहीं फूलों की वादियाँ बसाई त्यों कहीं हरियाली की चादर बिछाई है इसने…
मानव इसका उपयोग करे इससे इसे कोई ऐतराज नहीं,
लेकिन मानव इसकी सीमाओं को तोड़े यह इसको मंजूर नहीं…
विकास की दौड़ में प्रकृति को नजरअंदाज करना बुद्धिमानी नहीं है,
क्योंकि सवाल है हमारे भविष्य का, यह कोई खेल-कहानी नहीं है…

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10 FEB 2021 AT 22:15

तरुओं की चोटी पर
बैठी_ बिराजी
ढलती धूप !
मन ही मन
मनुहार कर रही
मन हरने वाले
सतरंगी इंद्रधनुष से!
चंद पलों की गुपचुप में
पाया जी भर सुख!
नयन रम्य वह दृश्य देख
रोमांचित हो उठा क्षितिज!
सरगम में थिरकती
अलविदा हो रही
अब सूरज संग
वही ढलती धूप!!

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13 JAN 2021 AT 17:07

क्योंकि तितली के रंगो के तरह सुख भी उड़ जायेगा
भागना ही हैं तुम्हे तो समय के पीछे भागो
केवल एक समय ही हैं जो सुख और दुख हैं लाता

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27 OCT 2020 AT 21:24

ये पहचान्ते हुए भी
ये मानते हुए भी
ये देखते हुए भी
हमें तुमसे कितना प्यार था
तुमने ऐसे हमें नज़रंदाज़ कर दिया
के मानो हम वो फेकें हुए
Plastic की तरह हैं
जिसका अब कोई भी उपयोग नहीं।

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25 OCT 2020 AT 13:51

मेरी याद ना अब कभी तुम्हे आएगी
ना ही मेरी उंगलियाँ तुम्हारे कानो को सताएगी

मैं साथ थी या नहीं ये भी भूल जाओगे तुम
क्योंकि अकेले बहुत खुश हो तुम

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