Yasir Faraz   (Yasir)
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Joined 15 April 2020


Joined 15 April 2020
23 JUN 2022 AT 23:49

Ham ko na mil saka to faqat ek sukoon-e-dil
Ae zindagi vagarna zamane main kya na tha

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25 APR 2022 AT 18:35

हैं दुःख के उसके जाने का ग़म पाले बैठे हैं,
खुशफहमी यह है वापस आने कि आस पाले बैठे हैं ।

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13 MAY 2021 AT 22:42

ऐ ईद तू यहा आना छोड़ दे ,
तेरे आने से ज़ख्म पुराने ताज़ा होते हैं ।

जो चले गए इस दुनिया से उनकी बातें मुंझे याद आती है , जो छोड़ गए उनके वादे मुझे सोने नही देते ।

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10 MAR 2021 AT 23:32

इतनी घुटन है कि यहाँ से निकल जाने का जी चाहता है ,
ज़मी छोड़ आसमाँ में बस जाने का जी चाहता है ।

देख कर उदासी अपने अन्दर की ,
बेवफ़ा को मनाने का जी चाहता है ।

वो गया हैं जबसे छोड़कर मुझें ,
सब-कुछ छोड़ कर जाने का जी चाहता हैं ।

खुदखुशी हराम हैं बेशक लेकिन ,
रोज़ मरने वालों का एक बार मर जाने का जी चाहता हैं ।

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7 FEB 2021 AT 11:15

यह मेरा अहम था जो मुझको ले डूबा ,
वो आएंगे लौट कर ये वहम ले डूबा ।

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20 DEC 2020 AT 22:47

लूँगा आखिरी सांस पर ख्याल उसका होगा ,
सूरज डूब जायेगा मगर इंतज़ार उसका होगा ।

क्यूं भला मुंतज़िर रहूं मैं रोज़-ए-महशर का ,
आँख ये जब-जब बंद होगी दीदार उसका होगा ।

और किसी जन्नत की कोई तमन्ना ही क्यूं करे ,
आँख खोल, माँ को देख इससे बेहतर नज़ारा क्या होगा ।

अभी ज़िन्दा हूँ तो नहीं है कोई हाल तक पूछने वाला ,
मेरी मौत पर देखना मातम कमाल का होगा ।

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2 OCT 2020 AT 16:42

पिछली भुला कर नई मुहब्बत को जगह कैसे देते है लोग,
इश्क़ करते है, इश्क़ में दगा कैसे देते है लोग ।

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29 SEP 2020 AT 19:04

ज़िन्दगी सिखा रही हैं आहिस्ता-आहिस्ता ,
ज़िन्दगी गुज़र जाती हैं आहिस्ता-आहिस्ता ।

दुख-दर्द साथी हो सफर में जिसके ,
बीमारी दिल की उसे लग जाती है आहिस्ता-आहिस्ता ।

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28 SEP 2020 AT 11:32

इतनी घुटन है कि यहाँ से निकल जाने को जी चाहता है ,
ज़मी छोड़ आसमा में बस जाने का जी चाहता है ।

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27 SEP 2020 AT 14:08

अभी ज़िन्दा हूँ तो नहीं है कोई हाल तक पूंछने वाला ,
मेरी मौत पर देखना मातम कमाल का होगा ।

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