Ham ko na mil saka to faqat ek sukoon-e-dil
Ae zindagi vagarna zamane main kya na tha-
हैं दुःख के उसके जाने का ग़म पाले बैठे हैं,
खुशफहमी यह है वापस आने कि आस पाले बैठे हैं ।-
ऐ ईद तू यहा आना छोड़ दे ,
तेरे आने से ज़ख्म पुराने ताज़ा होते हैं ।
जो चले गए इस दुनिया से उनकी बातें मुंझे याद आती है , जो छोड़ गए उनके वादे मुझे सोने नही देते ।-
इतनी घुटन है कि यहाँ से निकल जाने का जी चाहता है ,
ज़मी छोड़ आसमाँ में बस जाने का जी चाहता है ।
देख कर उदासी अपने अन्दर की ,
बेवफ़ा को मनाने का जी चाहता है ।
वो गया हैं जबसे छोड़कर मुझें ,
सब-कुछ छोड़ कर जाने का जी चाहता हैं ।
खुदखुशी हराम हैं बेशक लेकिन ,
रोज़ मरने वालों का एक बार मर जाने का जी चाहता हैं ।-
लूँगा आखिरी सांस पर ख्याल उसका होगा ,
सूरज डूब जायेगा मगर इंतज़ार उसका होगा ।
क्यूं भला मुंतज़िर रहूं मैं रोज़-ए-महशर का ,
आँख ये जब-जब बंद होगी दीदार उसका होगा ।
और किसी जन्नत की कोई तमन्ना ही क्यूं करे ,
आँख खोल, माँ को देख इससे बेहतर नज़ारा क्या होगा ।
अभी ज़िन्दा हूँ तो नहीं है कोई हाल तक पूछने वाला ,
मेरी मौत पर देखना मातम कमाल का होगा ।-
पिछली भुला कर नई मुहब्बत को जगह कैसे देते है लोग,
इश्क़ करते है, इश्क़ में दगा कैसे देते है लोग ।-
ज़िन्दगी सिखा रही हैं आहिस्ता-आहिस्ता ,
ज़िन्दगी गुज़र जाती हैं आहिस्ता-आहिस्ता ।
दुख-दर्द साथी हो सफर में जिसके ,
बीमारी दिल की उसे लग जाती है आहिस्ता-आहिस्ता ।-
इतनी घुटन है कि यहाँ से निकल जाने को जी चाहता है ,
ज़मी छोड़ आसमा में बस जाने का जी चाहता है ।-
अभी ज़िन्दा हूँ तो नहीं है कोई हाल तक पूंछने वाला ,
मेरी मौत पर देखना मातम कमाल का होगा ।-