इतना शांत दिखता है तू,
फिर क्यूं अंदर से खौल रहा...
मन में जब तेरे दृढ़ निश्चय है,
फिर क्यूं अभिमान तेरा डोल रहा...
जब जीत तेरी ही निश्चित है,
फिर क्यूं हार-जीत को तौल रहा ⚖️...
गर मंज़िल से पहले थकता है तू ,
फिर तेरे इतने कदमों का क्या मोल रहा...
चल उठ अब समय ये तेरा है,
तेरे हाथों में ही भाग्य भविष्य ये तेरा है,
तू चाहे तो..हर रण पर लहराता परचम 🚩तेरा है,
पिघला दे तू पत्थर भी, जब खून तेरा ये खौल रहा..
फिर जीत तेरी ही निश्चित है, कतरा कतरा ये बोल रहा...
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शब्दों के इस मेले में,
कोई शब्द कहां पूर्ण अकेला है...
कितना भी कोरा पन्ना हो,
लेखक के मन से तो मैला है...
गर शांत है मन तो दर्पण सा,
वरना उथल पुथल का थैला है...
तुम कब तक इस उलझे मन को,
कागज़ और कलम से बांधोगे...
जो बांध न पाए इस मन को,
तो कब तक खुद ही खुद से भागोगे...-
यूँ तो नहीं था मैं,
जो अब हो गया हूँ...
निकला था किसी तलाश में,
अब खुद ही कहीं खो गया हूँ...-
कुछ यूं उलझा हूं दुनियां में... मुझे खुद की ख़बर कहां,
मैं सुकून की चाहत में हूं... मगर दुनियां को सबर कहां..-
सांपों को ख़ुद में पनाह दे दे कर बदनाम हुआ जो,
भला उस बेजार कुएं से पानी फिर किसने भरा होगा...
भूल जाते हैं लोग अक्सर ज़ख्म जिस्म के भरते ही,
आख़िर रूह का ज़ख्म तो हर किसी का अरसा से हरा होगा...
लोग करते हैं बातें बेशक तुम्हारे जनाजे में आने की, मगर..
किसको क्या खबर कि कौन कितनी दफ़ा जीते जी मरा होगा...-
कुछ बातें अब बचकानी लगतीं हैं,
रातें तन्हा ही अब सुहानी लगतीं हैं...
चले थे जिन मंजिलों की ओर कभी,
वो हकीकतें महज अब कहानी लगतीं हैं....-
दुआ ने दुआ को दुआ दी, चल तू ही मुक्कमल हो जाए...
इश्क़ की दुआ अगर भारी थी तो उससे नफ़रत ही मुक्कमल हो जाए...
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कल खास थे हम चलो आज आम हो जाएं,
कुछ यादों की खातिर जाम पे जाम हो जाएं,
बहुत हो गया नाम यारों चलो आज बदनाम हो जाएं...-
मौत को ठुकराने वाले भी,
मौत की दुआ करते हैं....
इक दफा की मौत से बचने वाले,
पूरी ज़िंदगी में कई दफा मरते हैं...-
ख़ुदा जाने,ये बेज़ार शख़्स भी क्या कभी किसी का ख़ुदा होगा,
कोई तो होगा वो आख़िरी शख़्स जो फिर ना मुझसे जुदा होगा....
चाहतें नहीं रहीं अब किसी की मोहब्बत की हमको,
न जाने अब किस जनम में ये दिल फ़िर किसी पर फिदा होगा...
कौन कहता है कि अमर होती है मोहब्बत,
इक ना इक दिन तो हर किसी की मोहब्बत का कब्र खुदा होगा...
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