यह बाजारू लपरवाहियाँ
जो मानस के मन की परतों को उघाड़ दे।
एक बने पँच, अन्य प्रतिवादी
कुछ उस तरह यह बिगाड़ दे।
गुण, अवगुण या अन्य मूर्खता
कि मानस की खपत है
उसके कर्मो से ज्यादा।
वह कोल्हू में जुता हुआ
निकाल रहा है
बन रहा है
गधा? या सजग नागरिक देश का?
शुभ लाभ, कर जो जरूरी देश का
लक्ष्मी माई और अन्य तंत्र, जन्तर
इन्द्रियाँ सारी ज्यों चमक-दमक में उलझा दी
जय हो, जय हो, जय हो।- यष्क
12 JUN 2021 AT 20:37