किसी ने पूछा — ग़ज़लें ही क्यों सुनी जाती हैं,
मैं मुस्कुरा दी — ये दिल की दवा सी लगती हैं।
नए प्यार की खुशबू, नए जज़्बातों का रंग है इनमें,
कभी हँसी, कभी भीगी भीगी दुआ सी लगती हैं।
कभी बीते लम्हों की मीठी सी खुशबू बिखेर जाती हैं,
कभी बिछड़े ख़्वाबों की प्यारी सदा सी लगती हैं।
कभी मैं भी मोहब्बत में शायरी कर लिया करती थी,
कभी इश्क़ के मौसम में ग़ज़लें लिखा करती थी,
अब बस ख़ामोशी में छुपी, ये सुकून की दुआ सी लगती हैं।
अब न दिल में वही तड़प है, न लफ़्ज़ों की वो बारिश,
बस ग़ज़लों में कहीं छुपी हुई, कोई मीठी सदा सी लगती हैं।
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ऐसी देखादेखी कभी देखी नहीं
हुआ कुछ यूँ कि उन्होंने हमे देखा
हमने उन्हें देखा और हम देखते रह गये
शायद वो हमे अनदेखा कर गये
अब हाल ये है हम उन्हें देखने
देख देख कर जाते है
कभी दिख जाते है कभी नहीं दिखते है
जब दिखते है तो देखते रह जाते है
ग़र जो वो हमे कभी देखले
शायद वो ये सोचते है इसे कही देखा है
हम सोचते है हाए
ये रोज़ाना क्यों नहीं दिखते है
अब इस देखा देखी को आप चाहे जो नाम दे
चाहे इसे एक तरफ़ा मोहब्बत कहे
या इन नज़रो का सुकून
अब है तो है
ये देखादेखी की अब हमे आदत है
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When she menstruates, gives birth.
But suffers all the pain silently..
When she gives birth , give a new life.
But endures severe pain while smiling..
When she cooks, feeds everyone.
But bears all the pain of burn and cut with a smile..
She is a woman is like who sacrifices, tolerant , caring, non selfish, enthusiastic and the only one who turns house into a home..-
हम स्वयं आप पर क़ुर्बान
और हमारा मान और सम्मान
दिया सर्वस्व लुटा अपना
तन मन आत्मविश्वास
प्यारे दूर रह कर भी
बसे हो निरंतर पास
मेरी रूह आबरू सब
हो आप पर न्योछावर
दिल चीज़ क्या है
दूँ मैं निज प्राणो को वार-
यूहीं रात गुज़र जाती है
क्या कहे तुम बिन
नींद कहाँ आती है
माना दशक हो गया है
हमे साथ रहते रहते
पर अब भी ये दूरी इन नैनों
को बहुत सताती है-
किसी का नाम
कभी कभी ये नाम
मेहंदी से दिल मे आता है
और कभी ये नाम
दिल से मेहंदी मे भी आजाता है
कभी कभी दिल मे आता है
और दिल तक ही रह जाता है..
और कभी ऐसा भी होता है
कि मेहंदी मे तो आता है
पर दिल मे नहीं आ पाता है...
किसी का नाम किसी का नाम-
हाल ए दिल फिर बयान करे किसको
सुबह की अंगड़ाई से लेकर
रातों के ख़्वाब सुनाते है जिसको
अब वो ही न समझ सके हमको
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ये निगाहे इस कदर
प्यासी हो गयी
कि जब भी गुजरते है
अब तेरी गली से
भीड़ में भी तुझे
ढूँढने की आदी हो गई
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बस तेरा ही अक़्स है
अंतर्मन में जो बसा है
तू ही तो वो शख़्स है-