YASHI AWASTHI   (यshi Awaस्थी)
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Joined 11 August 2019


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19 FEB 2022 AT 0:14

"प्रेम"
ख़ामोशी में छुपे जज़्बात
और अनकही बातें
समझने के प्रयास में
और नज़दीक आने का तरीका!!

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11 FEB 2022 AT 18:51

इक रोज़ मिलेंगे,
हम किनारे पर
जब लहरें शांत हो जाएंगी
आएगा फिर कोई तूफ़ान,
अचानक से
जिसे स्वयं से आमंत्रण दिया होगा,
हमें अमर बनाने हेतु,
समस्त सृष्टि उसे कहेगी,
सिर्फ़ एक वचन और वो होगा,
अगाध प्रेम समर्पण!!

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8 FEB 2022 AT 15:19

देने पड़ते हैं ज़िंदगी में इम्तिहान कई,
हर सुबह ज़िंदगी की सुहानी नहीं होती!!

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31 JAN 2022 AT 14:07

मुझे कोई वचन नही चाहिए
हमारी शादी के मंडप में,
तुम बस मुस्कुराना और कह देना कि
अब मेरी मुस्कुराहट तुमसे ही है।
तुम्हारे साथ मेरी कोई तस्वीर नहीं है
पर फिर भी तुम मुझे,
रोज ख्वाबों में याद करते हो
जब सुबह तुमसे कुछ पूछूं, ये कह देना।
और मुझे ये बताना हर बार कि
तुम चाहते हो, मेरे साथ वक़्त बिताना
बिना वक़्त देखे हुए,
चाहते हो कि वक़्त ठहर जाए।
कभी आँखों से इज़हार करना तुम
मेरी गलतियों पर नजरंदाज न कर,
तुम बस ज़रा सा गुस्सा कर, फिर सब कुछ संभाल लेना।
और जब मैं करूं कोई शिकायत तुमसे,
तुम बिना कुछ कहे मुझे गले लगा लेना।
मेरी मुस्कुराहट को तवज्जो देना तुम
पर जब आँखें नम हों मेरी तो तुम मुझे मना लेना।
मैं तुमसे हर रोज हर बार यही कहूंगी कि,
मुझे पसंद है तुम्हारी बातों को सुनना
और तुम्हें देखते रहना बिन वजह भी!!
- YASHI AWASTHI

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28 JAN 2022 AT 23:05

दुःखद !!?
माँ को यह कहते सुनना कि मेरे भी सपने थे
जो अधूरे रह गए, बचपन में,
किसी और का बचपन संभालते हुए।

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28 JAN 2022 AT 22:38

विचार देखकर नहीं आते हैं
आपके लिंग की परिभाषा को
वो बस अपना परिचय देते हैं
एक विचारधारा के रूप में
जो अंतर्मन में छुपी हुई है
अनेक श्रेणियों में
जिसे स्वयं ने दबा दिया होता है
अपने आसपास के समाज को देखकर
सत्ता की बागडोर को संभालने के लिए
मनुष्य मात्र किसी कार्य हेतु जन्मा अभिप्राय नहीं है
मनुष्य है भावनाओं की एक सहज शीतलता
जो देती है एक नया रूप
एक नया मार्ग, समाज को सुगम बनाने हेतु!!

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27 JAN 2022 AT 11:35

बिखरी नज़रें, उलझी जुल्फ़ें।
कई राज़ है इनकी बातों में।।

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25 JAN 2022 AT 22:15

भीख मत मांगना अपनी ज़िंदगी में कभी किसी से।
मोहलत मांगी तुमने तो नज़रों में गिर जाओगे खुदकी इक दिन।।

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25 JAN 2022 AT 21:48

पीड़ा का विचार हो तो, आसमां को देख ले
हो अगर भ्रम तुझे तो, धरा से बाते पूछ ले
हैं कई जवाब तेरे आस पास ही,
तू एक बार बात खुदसे पूछ तो ले
सृष्टि की रचना में हैं कई विकार भी,
मुस्कुरा रही फिर भी सृष्टि स्वयं के विश्वास से!!
- Yashi Awasthi

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25 JAN 2022 AT 21:39

तू भीड़ से बाहर निकल
आवाज़ अपनी देख ले
पथ तेरा दुर्गम भी है
तो, जीत अपनी ठान ले
यूं निराशा का बीज तू,
स्वयं के भीतर पाल मत
तू है स्वयं एक वृक्ष खुदमें,
यूं ढाल अपनी त्याग मत
रण की भूमि हो या जंग का मैदान हो
रह अडिग तू मार्ग पर
और जीत अपनी मान ले
हार से भयभीत हो यूं,
तू स्वयं से न विकार ले
है तू श्रेष्ठ सर्वश्रेष्ठों में
अपनी बात तू पहचान ले
जीत अपनी ठान ले!!
- Yashi Awasthi

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