मैं फिर से ईद के दिन खफा हो जाऊ तुमसे क्या फिर से तुम मनाओगे मुझे मैं फिर से इंतज़ार कर लुंगी तुम्हारा क्या फिर से तुम अपनी बावफ़ा दीद कराओगे मुझे मैं फिर से तुमसे ईदी माँगू क्या फिर से तुम मेरी ईदी बनोगे...!!!
जहाँ मोहब्बत हो वह इसरार करना चाहिए, जहाँ मोहब्बत ना हो वहां इसरार नहीं करना चाहिए, जब आने वाले गम की आहट पता हो जाएँ, तो राब्ता कम कर देना चाहिए, राब्ता ख़त्म तो ताल्लुक़ात भी ख़त्म, इसरार, मोहब्बत,राब्ता,ताल्लुक़ात को ज़िन्दगी में तरजीह देना कम कर दो तो ज़िन्दगी में खुशियों की बरकत बेशुमार होगी....!!!
चलो एक बार फिर से हम दोनों अजनबी बन जाएँ, मैं न रखूं तुमसे कोई तवक्कुल दिल-ए-नवाज़ी की, न तुम मेरे पास वापस आओ दिल-ए-उदासी लेकर न जाहिर हो कश्मकश मेरी बातों से, न तुम मुतास्सिर हो मेरी मुख्लिसि से, मेरे हमराह में हैं बेवफाई मेरे माज़ी के, तुम फिर से बावफ़ा बन कर मेरे मुस्तक़बिल के हमराह न बनो, तुम अफ़साना थे मेरी ज़िन्दगी के, जिसका मैंने जनाज़े की फातिहा पढ़ लिया...!!!!