Yash Vishnoi   (©यश..✍️)
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Joined 6 January 2018


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Joined 6 January 2018
19 JAN 2022 AT 6:56

मैं अबके बरस से बस तेरा हिज़्र नहीं मनाऊँगा,
तेरी यादों की शमायें अब कभी न जलाऊँगा,
न दूँगा दुआएँ तुझे हमेशा खुश रहने वाली,
न महफिलों में तेरे नाम के नगमे गुनगुनाऊंगा,
मैं अबके बरस...

चाहें हो लाख खिले गुल किसी भी बगिया में,
मैं उनमे से किसी को तेरी बातें न बताऊँगा,
चाहे लाख चिढाये ये चाँद चाँदनी संग हर रात,
तेरे हुस्न के ज़रिए से इसका मज़ाक न उड़ाऊँगा,
मैं अबके बरस...

पूछेगी ये धरती, नदियाँ, तू हैं कहाँ, तू कैसी है,
साधे चुप्पी राह पे अपनी चुपचाप बढ़ता जाऊँगा,
जब होगी दस्तक संझा की पूँछेगी तेरा हाल मुझे,
मैं नज़रें चुराके उससे भी घर में कहीं छिप जाऊँगा,
मैं अबके बरस...

मैं नहीं बनाऊँगा शब्दों से तेरे अब सुंदर प्यारे चित्र,
तेरी सुनहरी यादों को अब असल रूप न दे पाऊँगा,
तुम बढ़ गयी यूँ छोड़ मुझे रक़ीब का जो लेकर साथ,
अब झूठी आस लिए तेरा इंतज़ार न और कर पाऊँगा,
मैं अबके बरस से बस तेरा हिज़्र नहीं मनाऊँगा...

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1 JAN 2022 AT 7:50

कुछ चर्चे हैं जो होने बाक़ी हैं,
कुछ बातें हैं जो बतानी बाक़ी हैं,
यूँ तो इक और साल बीत गया तेरे बग़ैर,
लेकिन मुहब्बत में मेरी अभी वो रवानी बाक़ी है..

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11 DEC 2021 AT 17:16

जल गया शहर सारा उसका मलाल नहीं मुझे,

तेरी तस्वीर सलामत बची उसका सुकून है बस..

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10 OCT 2021 AT 14:22

बिछड़ कर तुमने हमसे ऐसा क्या ही पाया है,
मेरा रंग तेरे ऊपर थोड़ा और निखर आया है..

शामिल रहे तू दिन भर यूँ जो ग़ैर की महफ़िल में,
शाम होते ही तुमने चराग़ वही पुराना जलाया है..

खुशी सारे जहाँ की तेरे आस पास तो फैली है,
दर्द भेजा था मैंने वो तुझे छू के वापिस आया है..

तेरे हिसाब से दरख़्त फिर गुलज़ार जो हो रहे हैं,
ये मौसम ए बहार भी तो पतझड़ के बाद आया है..

मेरी ग़ज़लों में तेरे मिलने की खास वजह नहीं है,
खबर सबको है कि ये हुनर मुझे तेरे बाद आया है..

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1 SEP 2021 AT 20:15

मेरी कविताओं में लिखा हुआ,
एक एक शब्द,
तुम्हारे ही किसी अंग का,
प्रतिबिम्ब होता है..

मैं जब भी प्रेम लिखने की कोशिश,
कर रहा होता हूँ,
मेरे मन में एक ही ख्याल होता है,
वो है केवल तुम्हारी छवि..

क्योंकि कविताएं लिखने का केवल,
एक ही कारण होता है,
या तो बहार या फिर,
बहार का इंतेज़ार..

अगर कभी मेरे शब्द तुम पढ़ो,
तो वही बहार होती है,
और तुम्हारे पढ़ने तक का वक़्त,
उसी बहार का इंतेज़ार है..

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18 AUG 2021 AT 18:23

तेरे हुस्न के मारों का कोई ठिकाना नहीं है,

कोई मयकदे में बैठा है तो कोई मुशायरे में..

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15 AUG 2021 AT 16:28

किसी शायर की कल्पना हो तुम,
उस खुदा की अद्भुत रचना हो तुम,
तुम हो जैसे नूर आफताब का,
तुम हो जैसे संगीत कोई राग सा,
आँखें ये तुम्हारी सारे दरिया समेटे हैं,
चाँद तारे सब रोशन तुमसे ही होते हैं,
गुलाब की चाहत है तुम्हारे होठ से हो जाएं,
घटायें काली भी तुम्हारी ज़ुल्फ़ें बनना चाहें,
पागल हैं वो जो तुम्हे छोड़,
कहीं और जाते हैं,
तुम्हारी सिर्फ मुस्कान से,
हज़ारों फूल खिल जाते हैं,
गिरती है लट जब तुम्हारे रुखसार पे,
बलखाती है नागिन जैसे सावन की फुहार से,
कुदरत भी तेरे रूप को यूँ बयाँ न कर पायेगी,
भाषा में भी शब्दों की बहुत कमी पड़ जाएगी,
सब कुछ फीका लगता है तुम्हारे रूप के आगे,
है जैसे उठा के हाथ एक नमाज़ी कोई दुआ माँगे...

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14 JUL 2021 AT 17:22

किसी के साथ की आरज़ू रह नहीं गयी मुझे,
तेरे बाद तन्हा रहना ही अब अच्छा लगता है..

याद नहीं है वो प्रेम गीत जो गाये थे तेरे लिए,
विरह का सन्नाटा ही मुझे अब अच्छा लगता है..

ज़िक्र तेरी आदतों का नहीं करता मैं किसी से,
मन ही मन तुझे भूल जाना अब अच्छा लगता है..

तेरी गली की तरफ अब मुड़ते भी नहीं कदम मेरे,
बिना देखे सीधे निकल जाना अब अच्छा लगता है..

रोशनी इस सूरज की तेरी मुस्कान सरीखी है,
शामों में सूरज का डूब जाना अब अच्छा लगता है..

तमाम सँध्याओं में तेरे मिलने का रास्ता देखा है,
रजनी से इश्क़ करना मुझे अब अच्छा लगता है..

हिज्र पे उठे क्या? क्यों? कैसे का जवाब नहीं देता मैं,
अपने अंदर तुझे बेवफा कहना अब अच्छा लगता है..

तुम्हारी ही ज़िद थी कि मैं बदल लूँ खुद को थोड़ा,
बदला है यश और ऐसे ही रहना अब अच्छा लगता है..

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26 JUN 2021 AT 16:17

तुम्हारी आँखें हैं या पहेली अजब सी,

कुछ कुछ इनमें मैं उलझता जा रहा हूँ,

मेरा वजूद भी हाथों से फिसल सा रहा है,

मैं रफ्ता रफ्ता खुद से तुम होता जा रहा हूँ..

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8 JUN 2021 AT 22:29

मोहब्बत में बस एक तेरे लिए बेक़रार बैठे हैं,
इतवार सी है तू हम हफ्तेभर तेरे इंतज़ार में बैठे हैं..

रूठना मनाना मोहब्बत के महज़ खेल हैं जाना,
तेरी खुशी के लिए तो हम अपनी जाँ निसार बैठे हैं..

तेरी पायल की छन छन, तेरे झुमके की रुनझुन,
हाय! हम ही दुनिया में इस मर्ज़ के बस बीमार बैठे हैं..

शहर में हो रही हैं अपने इश्क़ की बात हर ज़ुबान से,
सुना है दरवाजे पे मेरे हुकूमत के चंद पहरेदार बैठे हैं..

अजब रिवाज़ हैं मोहब्बत के कुछ समझ नही आते,
अमानत ए रकीब है तू हम फिर भी तेरे तलबगार बैठे हैं..

निकाह पढ़ लिया तू ने ग़ैर के संग क़यामत थोड़े ही है,
हम तो पहले दिन से ही तेरी रूह के बस हक़दार बैठे है..

पढ़े जाए नग़मे तेरी गली में मोहब्बत के तो सुनाना तू भी,
मालिक-ए-दिल तो हम हैं असली, रक़ीब तो केवल यहाँ किरायेदार बैठे हैं..

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