मैं अबके बरस से बस तेरा हिज़्र नहीं मनाऊँगा,
तेरी यादों की शमायें अब कभी न जलाऊँगा,
न दूँगा दुआएँ तुझे हमेशा खुश रहने वाली,
न महफिलों में तेरे नाम के नगमे गुनगुनाऊंगा,
मैं अबके बरस...
चाहें हो लाख खिले गुल किसी भी बगिया में,
मैं उनमे से किसी को तेरी बातें न बताऊँगा,
चाहे लाख चिढाये ये चाँद चाँदनी संग हर रात,
तेरे हुस्न के ज़रिए से इसका मज़ाक न उड़ाऊँगा,
मैं अबके बरस...
पूछेगी ये धरती, नदियाँ, तू हैं कहाँ, तू कैसी है,
साधे चुप्पी राह पे अपनी चुपचाप बढ़ता जाऊँगा,
जब होगी दस्तक संझा की पूँछेगी तेरा हाल मुझे,
मैं नज़रें चुराके उससे भी घर में कहीं छिप जाऊँगा,
मैं अबके बरस...
मैं नहीं बनाऊँगा शब्दों से तेरे अब सुंदर प्यारे चित्र,
तेरी सुनहरी यादों को अब असल रूप न दे पाऊँगा,
तुम बढ़ गयी यूँ छोड़ मुझे रक़ीब का जो लेकर साथ,
अब झूठी आस लिए तेरा इंतज़ार न और कर पाऊँगा,
मैं अबके बरस से बस तेरा हिज़्र नहीं मनाऊँगा...
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