जो करता रहा इस जहाँ में ज़र्रे-ज़र्रे की तफ़्तीश
वो उम्र-भर तलाश में ही रहा कमाल-परस्त की-
।। हेरी मैं तो प्रेम दीवाना मेरा दर्द ना जाने कोय ।।
समंदर-सा सैलाब छिपाये दर्द ऑंखें
कलेजे से भी भारी उठाये दर्द आँखें
कभी ग़मगीन कभी शीन कभी शीर
काज़ल काला मग़र उसकी ज़र्द आँखें
क्या क्या न देखा होगा चुप-चाप से
नम-ज़दा थी रही फ़िर भी सर्द ऑंखें
जो दिल में है वो जुबान पर नहीं
दिल-ज़ुबाँ के बीच हम-नबर्द आँखें
मर्ज़-ए-इश्क़ के गुमाँ में रहे काज़ल
इक तासीर ऐसी भी दस्त-गर्द आँखें
हमेशा एक ही ख़ाब की मुंतज़िर रही
तेरी -मेरी -मेरी -तेरी फ़र्द-फ़र्द आँखें
तवायफ़ों के भी तो बरसते होंगें आँसू
फ़िर भी रही हर पहर वो मर्द आँखें-
फरेबों से नेकी का वास्ता क्या
काफिरों का ख़ुदा से वास्ता क्या
ना ग़ौर-ओ-फ़िक्र करमों पर गया
अब अज़ाब-ए-क़ब्र बे-वास्ता क्या
अपने ही घर में सब अनजाने थे
वो जाए भी कहाँ दूसरा रास्ता क्या
सज़दे में जो माँगा वो कभी मिला नहीं
इसके बाद भी ख़ुदा से ख़्वास्ता क्या
ज़िंदगी भर फ़क़त तालुक-ए-ज़ार रखा
ख़्वास्ता क्या दिल-ए-ना-ख़्वास्ता क्या
दुनिया जहाँ के ग़म सीने में दफ़न किए
दिल फ़िर भी टूटा नहीं तो बरखास्ता क्या-
रो पड़ता अजाब-ऐ-दिल कब तक अफ़सुर्दा रहता,
मग़र अफ़सोस तुझसे तबस्सुम-ऐ-ज़िन्दगी वादा कर बैठा हूँ ।।-
हाय ये काजल, ये आँचल
ये ज़ुल्फें, ये झुमके तेरे
खैर हम तो मर ही गए हैं
ये ख़ुदा-राई किस-लिए ।।-
इज़हार-ऐ-मोहब्बत का आलम तो देख "इस्मत'
लब चुप हैं मगर आंखे सब बयाँ करती हैं ।।-
सुना है दुआ का ज़िक्र कर देने पर
दुआ मुक्कमल नहीं होती
मालूम होता है
उसे पाने की फ़रियाद मैंने सरेआम की है ।।-
पैकर भी क्या ख़ूब बनाई हिदायतकार ने मेरी
दर्द-ऐ-क़िरदार लिखा, मिरी ज़िंदगी बन गयी ।।-