yash parasar   ("यश")
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इश्क़ अच्छी नही आरिज़ी को
हम ज़िंदगी के सताए हुए हैं
Tycepoetry@gmail.com
Joined 15 April 2019


इश्क़ अच्छी नही आरिज़ी को
हम ज़िंदगी के सताए हुए हैं
Tycepoetry@gmail.com
Joined 15 April 2019
YESTERDAY AT 2:12

वो चेहरा है, जिसे देखने को दिल तरसता है,
ये वो आँखें हैं, जिनमें डूबने का दिल करता है।

जहाँ समंदर दरिया से मिलने को बेकरार है,
लहरों की हर चोट से उसे भी दर्द होता होगा।

वो भी बेबस होकर शायद ख़ुद को जलाता होगा,
धुआँ बनकर बादलों से फिर वो मिल जाता होगा।

थोड़ी देर वही सुकून भी पाया करता होगा,
फिर बारिश बनकर दरिया से मिलने आता होगा।

कुछ तो बात है इस दरिया में,
जहाँ समंदर दरिया से मिलना चाहता है।

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13 SEP AT 0:26

हिंदुस्तान...! कैसा होगा हमारा हिंदुस्तान,
जब हमसे हमारा ही अधिकार छीना जाए,
सियासत के लिए धर्म को आधार बनाया जाए,
सत्य बोलने वाले को जमींदोज कर दिया जाए,
अपराधी को सम्मान दिया जाए,
नैतिकता को भुला दिया जाए,
न्याय को ख़रीद लिया जाए,
अन्याय को धर्म संगत बताया जाए,
चलो आज़ाद को फ़िर से ग़ुलाम बना दिया जाए,
लोग मूक और बधिर हो जाएँ,
सारे जहां में अराजकता फैलाई जाए,
एक दूसरे पर आरोप लगाए जाएँ,
चंद लोगों की खुशियों के लिए,
बेबस लोगों के घर उजाड़े जाएँ,
चुनाव नज़दीक है, चलो मिल कर गठबंधन सरकार बनाई जाए।

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26 AUG AT 14:47

अपनी आँखों में सपने अभी और बोएंगे,
जब बारिश होगी हम तभी रोएंगे,
कैसे–कैसे लोगों को सब कुछ दे दिया तूने ऐ ख़ुदा,
हम अपनी बर्बादी पर और कितना रोएंगे।

बहुत वक़्त लगा, खुद के ख्वाब को जगाने में,
जो भी छीना गया मुझसे, उसे भुलाने में।
सफ़र लंबा है, मगर ख़्वाहिशों ने दाम तोड़ रखा था,
मगर हौसला तब भी ज़िंदा था।

वक़्त ज़रूर लगेगा साहब, आसमान को छूने में,
अब आँखें भी तभी लगेंगी, जब हम आख़िरी मर्तबा सोएंगे।

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26 AUG AT 13:10

ए इश्क़ तू मुझपर बस इतना एहसान करना,
मैं इधर रोऊँ तो तू उससे परेशान मत करना,
ये हक़ीक़त है कि इश्क़ अब भी ज़िन्दा है मुझमें,
तू उसे उसकी मोहब्बत से जुदा न करना,

हमें मालूम है क्या-क्या होता है इश्क़ में जुदाई पर,
मह़रूम ही रहा यश ता-उम्र खुशियों से,
बस उसे उसकी खुशियों से कभी रुस्वा न करना,

कभी रूबरू हुए तो हम अजनबी लगने चाहिए,
अलफ़ाज़ों से हम मतलब़ी मालूम होने चाहिए,
ऐसा न लगे कि मोहब्बत आज भी ज़िन्दा है,
बेगुनाह होकर भी हम उसे क़ातिल नज़र आने चाहिए।

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14 AUG AT 19:30

सफर यूं कुछ इस कदर गुज़र जाए,
आंख लगे और सवेरा हो जाए।
ये जो सफ़र है वो सितम है
और ये सितम जिंदगी है,
कोई साथ चले तो कोई छूट जाए।

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4 AUG AT 18:52

राजनीति और जिस्मफरोश दोनों एक हो गए हैं,
जिनके पास पैसा है, वे उनके हो जाते हैं,
रात के अंधेरे में स्वयं को बेच देते हैं,
सुबह होते ही शरीफ़ बन जाते हैं,
सफ़ेद कुर्ते पर न जाने कितनी कालिख लगी होती है,
ये आदत से मजबूर हैं,
दिखावे के लिए मात्र कपड़े बदल लेते हैं,
ये तालाब की कीचड़ से ज़्यादा काले होते हैं,
कीचड़ में उगे कमल को लेकर स्वयं को शरीफ़ बताते हैं,
देश को बेचा कैसे जाता है,
कोई इन नेताओं से सीखे.....
देश को बेचने के लिए नई-नई नीतियां लाते हैं
ये देश का विकास जुमलेबाज़ी से करते हैं,
झूठी खबर अख़बार में छपवाते हैं,
सच को पैसों से दफ़न कर देते हैं
शिक्षा से इनका दूर तक कोई नाता नहीं होता,
अंगूठा छाप व्यक्ति को शिक्षा मंत्री बनाते हैं,
जनता से अधिक से अधिक कर वसूलना ये अपना कर्तव्य समझते हैं,
कर के पैसों से ये अपना महल बनवाते हैं,
आम जनता का खून का आंसू बहता है,
जब उसका बच्चा रोटी के लिए तड़पता है।
ये अपना कर्तव्य इसी तरह निभाते रहेंगे,
उद्योगपतियों के सामने अपनी पूँछ हिलाते हैं,
यह सच है मगर कड़वा है,
जो भी ख़िलाफ़ होते हैं इनके,
उनकी लाश कहीं पाई जाती है,
हर तरफ अंधकार फैलता जा रहा है,
और ये नेता उसे नया प्रकाश बताते हैं,
यह ग़लती हमारी है यश,
हम गेहूं, चावल और जुमलेबाज़ी से ख़ुश हो जाते हैं।

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2 AUG AT 18:52

मुद्दा गरम है,
नेता सब बेशरम हैं,
चुनाव का माहौल है,
अभी सब व्यस्त हैं,
नेता कुर्सी के लिए सशस्त्र हैं,
प्रसाद वितरण की कमी हो रही है,
अब व्यापारी भी संगठित हो रहे हैं,
प्रसाद वितरण में सहयोगी हो रहे हैं,
हाय ये लालच क्या न करवाए.....
बेईमान और लुटेरे सब एक हो रहे हैं,
चुनाव तक विकास का प्रहर है,
चुनाव के बाद फिर वही कहर है,
फिर जुमलेबाज़ी भरा विकास होगा,
डिजिटल प्रकाश होगा,
डिजिटली चुनाव का प्रसार होगा,
जनता वोट देगी,
सरकार चुनी जाएगी,
सब जश्न मनाएंगे,
उसके बाद क्या?
नेता....जी पाँच साल बाद ही अब नज़र आएंगे।
यश

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2 AUG AT 9:33

आज इंसान भी क्या क्या होना चाहता है...!
जिसमें इंसानियत नहीं बचा,आज वो भी खुद होना चाहता है।
ये सच है कि एक दिन हम सब मर जाएंगे,
जिंदा जो भी है, वो कभी मरना नहीं चाहता है।

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29 JUL AT 1:42

हिन्दुस्तान का अंत नज़दीक होगा...
अधर्म की प्रचुरता होगी,
और धर्म संकट में होगा,
रिश्ते शर्मसार करेंगे,
पैसों का व्यवहार होगा,
शाह के मुसाहिब,
इंसानों का व्यापार करेंगे,
सत्ता का गुरूर होगा,
वो कत्ल सरेआम करेंगे,
मंदिर सरकारी होंगे
और हम सिर्फ़ दान करेंगे,
मठाधीश सरकारें चुनेंगी,
ये अधर्म की प्रचुरता का ललकार होगा...
ज्ञानी अंधकार में चले जाएंगे,
अज्ञानी का प्रकाश होगा
मिट्टी फिर लाल होगी...
इज़्ज़त शर्मसार होगी।
बिलखते लोग होंगे,
लाशों पर व्यापार होगा।
जिस्मों की बोलियाँ लगेंगी,
और मृत्यु का इंतज़ार होगा।

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10 JUL AT 23:50

**एक प्रश्न जो मैं चाहता हूं,
की मैं क्या चाहता हूं....?
मैं सीमित मात्रा और निमित्त नहीं रहना चाहता हूँ,
मैं पुनः प्रकाश में विलीन होना चाहता हूँ।
अपनी ऊर्जा को पुनः पहचानना चाहता हूँ,
मैं पंचतत्त्व से एकाकार होना चाहता हूँ।
अपनी आकांक्षाओं को विस्तृत करना चाहता हूँ,
मैं जीवन और मृत्यु से परे होना चाहता हूँ।
काल के खंडों को मैं समझना चाहता हूँ,
मैं पुनः प्रकाश में विलीन होना चाहता हूँ।
शरीर को साधन बनाना चाहता हूँ,
मैं स्वयं की खोज चाहता हूँ।
मैं माया से परे होना चाहता हूँ,
मैं कैलाश की शिखर को छूना चाहता हूँ।
मैं कलियुग की सोच से परे होना चाहता हूँ,
मैं स्वयं की खोज चाहता हूँ।
मैं शून्य होना चाहता हूँ,
मैं धर्म और अधर्म का भेद जानना चाहता हूँ,
मैं माया को समझना चाहता हूँ।
जीवन-मरण औचित्य तक ही निमित्त हैं,
मैं मृत्यु के बाद भी जीना चाहता हूँ।
न लोभ, न लालच, न काम, न क्रोध,
न जात-पात, न धर्म का भेद।
मैं वायु बनना चाहता हूँ,
मैं शीतल, मैं चंचल,
मैं निराकार होना चाहता हूँ।
मैं पुनः नीर बनना चाहता हूँ।
मैं ही अम्बर, मैं ही धरा, मैं ही अग्नि,
मैं पुनः निर्विकार होना चाहता हूँ।**

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