क्या करोगे तुम मेरा हाल जान कर, हम जिंदा हैं क्या ये काफ़ी नहीं। मगरुर, बत्तमीज, मतलबी, बेपरवाह, तुम दूर हो गए मुझसे यह कह कर । लगता है तुम्हे अब तक सुकून ना मिला जो तुम फिर वापस आ गई हो दर्द, तकलीफ़, ताने, अकेलापन मैं रोज़ लड़ता हूं इन चीजों से, क्या तुम्हारे लिए इतना काफी नहीं, क्या करोगे तुम मेरा हाल जान कर, हम जिंदा हैं क्या ये काफ़ी नहीं। "यश"
ये है शमशान,मुक्ति का द्वार जहां महाकाल स्वंग विराजते है यहां अक्सर अपने ही अपने को लाते हैं यहां कोई भेदभाव नहीं ना धर्म, ना वर्ण, ना कुल ना अमीर ना गरीब ना कोई संबंध ना कोई रिश्ता, ना कोई पिता ना कोई पुत्र ना कोई माता, ना परिवार से नाता शरीर से आत्मा का पलायन और अर्जित किया गया मोह अथाह संपति, यश, वैभव, कीर्ति सब कुछ मिथ्या सा लगता है जब सभी को यहीं आना है फिर लड़ाई किस लिए यहां तक लाने वाला भी अपना, आग मे जलाने वाला भी अपना शरीर के सारे हिस्से तक जलने का प्रतीक्षा करने वाला भी अपना, क्या वो सच में हमारा अपना है, जो हमारे मरने पे हमे सँजोक के रखने के वजाय हमे आग के हवाले कर देते है ये वो दर्पण है जिससे सभी दूर भागते हैं क्योंकि उनमें सत्य को स्वीकारने की छमता नहीं परन्तु इक दिन सत्य स्वंग को सिद्ध कर ही देता है
नया दिन कह रहा, मैं अब आपके हाथों में हूं, मुझे संभालो...! नई सुबह, ताज़ी हवा, घनघोर घटा... और सूरज की पहली किरण एक मनमोहक दृश्य, मन प्रसन्न, शांत चित, और भाव का सैलाब वक्त की कश्ती , और लहरों को गुमान किनारा दूर हैं,पर समंदर बेईमान लहरे तेज है, सायद उठी हो तूफान मैं समय,मैं ही समंदर और मैं ही लहर नया दिन कह रहा, उठा पतवार मैं अब आपके हाथों में हूं, मुझे संभाल...! "यश"
शाकी तुमने ये क्या अपना हाल कर लिया है , लगता है किसी से इश्क़ बेमिशाल कर लिया है , वो थे कभी तुम्हारे जो हाल पूछ लिया करते थे, बे–वजह तुमने अपना ये हाल कर लिया है, बहुत सी रंग बिरंगी तितलियां है इस ज़हां में, सभी के अपने अपने नस्ल है, ये खुदगर्जों का ज़माना है , बे–वजह तुमने अपना ये हाल कर लिया है।
उसूलों के लिए जीना, उसूलों के साथ मरना, मौत एक बार आएगी, मगर हर रोज़ डराएगी, भरोसा खोना नहीं, हार मानना नहीं, हौसले बुलंद होंगे, सायद तुम किसी को याद भी ना रहो, मगर जब भी अतीत का पाना उलटेगा, तुम्हारा ज़िक्र हमेशा होगा, एक नाम तुम्हारा भी होगा। "यश"
सायद गुम हो गया हूं मैं,इस भीड़ में मुझे अब खुद की तालाश है। होना काफी नहीं सिर्फ़ जिसम का मुझे अब रूह की तालाश है बहुत ख़ूब-रू थे वो पल जो दुनियां दारी से परे थे नादानियां,बचपना, ये सारे कभी हमारे साथ चला करते थे।