yash parasar   (TYCE)
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इश्क़ अच्छी नही आरिज़ी को
हम ज़िंदगी के सताए हुए हैं
Tycepoetry@gmail.com
Joined 15 April 2019


इश्क़ अच्छी नही आरिज़ी को
हम ज़िंदगी के सताए हुए हैं
Tycepoetry@gmail.com
Joined 15 April 2019
11 APR AT 12:35

चंद रोज़ पहले तक मैं भी शरीफ़ था,
हमने इश्क़ कर लिया और गुनहगार हो गया।
"यश"

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11 APR AT 11:36

देख साक़ी अब मैं भी बुरा हो गया,
जो कल तक बुरा था आज खुदा हो गया।

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11 APR AT 10:55

हुआ जो बर्बाद तो शरीफ़ कौन कहेगा
हुआ शरीफ़ तो गुनहगार कौन कहेगा
इश्क़ तो बस हम कर लिया करते हैं
ये कभी सोचा ही नहीं कौन क्या कहेगा।






"यश"

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11 APR AT 10:26

क्या करोगे तुम मेरा हाल जान कर,
हम जिंदा हैं क्या ये काफ़ी नहीं।
मगरुर, बत्तमीज, मतलबी, बेपरवाह,
तुम दूर हो गए मुझसे यह कह कर ।
लगता है तुम्हे अब तक सुकून ना मिला
जो तुम फिर वापस आ गई हो
दर्द, तकलीफ़, ताने, अकेलापन
मैं रोज़ लड़ता हूं इन चीजों से,
क्या तुम्हारे लिए इतना काफी नहीं,
क्या करोगे तुम मेरा हाल जान कर,
हम जिंदा हैं क्या ये काफ़ी नहीं।
"यश"

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9 APR AT 21:20

कुछ तो ऐब हो जिंदगी में भी
जो तन्हाई में हमसफर बन सके।
"यश"

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27 MAR AT 23:15

ये है शमशान,मुक्ति का द्वार
जहां महाकाल स्वंग विराजते है
यहां अक्सर अपने ही अपने को लाते हैं
यहां कोई भेदभाव नहीं
ना धर्म, ना वर्ण, ना कुल
ना अमीर ना गरीब
ना कोई संबंध ना कोई रिश्ता,
ना कोई पिता ना कोई पुत्र
ना कोई माता, ना परिवार से नाता
शरीर से आत्मा का पलायन
और अर्जित किया गया मोह
अथाह संपति, यश, वैभव, कीर्ति
सब कुछ मिथ्या सा लगता है
जब सभी को यहीं आना है फिर लड़ाई किस लिए
यहां तक लाने वाला भी अपना,
आग मे जलाने वाला भी अपना
शरीर के सारे हिस्से तक जलने का प्रतीक्षा करने वाला भी अपना,
क्या वो सच में हमारा अपना है,
जो हमारे मरने पे हमे सँजोक के रखने के वजाय हमे आग के हवाले कर देते है
ये वो दर्पण है जिससे सभी दूर भागते हैं
क्योंकि उनमें सत्य को स्वीकारने की छमता नहीं
परन्तु इक दिन सत्य स्वंग को सिद्ध कर ही देता है

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4 MAR AT 9:05

नया दिन कह रहा,
मैं अब आपके हाथों में हूं, मुझे संभालो...!
नई सुबह, ताज़ी हवा, घनघोर घटा...
और सूरज की पहली किरण
एक मनमोहक दृश्य,
मन प्रसन्न, शांत चित, और भाव का सैलाब
वक्त की कश्ती , और लहरों को गुमान
किनारा दूर हैं,पर समंदर बेईमान
लहरे तेज है, सायद उठी हो तूफान
मैं समय,मैं ही समंदर और मैं ही लहर
नया दिन कह रहा, उठा पतवार
मैं अब आपके हाथों में हूं, मुझे संभाल...!
"यश"

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3 MAR AT 15:27

शाकी तुमने ये क्या अपना हाल कर लिया है ,
लगता है किसी से इश्क़ बेमिशाल कर लिया है ,
वो थे कभी तुम्हारे जो हाल पूछ लिया करते थे,
बे–वजह तुमने अपना ये हाल कर लिया है,
बहुत सी रंग बिरंगी तितलियां है इस ज़हां में,
सभी के अपने अपने नस्ल है,
ये खुदगर्जों का ज़माना है ,
बे–वजह तुमने अपना ये हाल कर लिया है।

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3 MAR AT 14:35

उसूलों के लिए जीना,
उसूलों के साथ मरना,
मौत एक बार आएगी,
मगर हर रोज़ डराएगी,
भरोसा खोना नहीं,
हार मानना नहीं,
हौसले बुलंद होंगे,
सायद तुम किसी को याद भी ना रहो,
मगर जब भी अतीत का पाना उलटेगा,
तुम्हारा ज़िक्र हमेशा होगा,
एक नाम तुम्हारा भी होगा।
"यश"

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2 MAR AT 23:35

सायद गुम हो गया हूं मैं,इस भीड़ में
मुझे अब खुद की तालाश है।
होना काफी नहीं सिर्फ़ जिसम का
मुझे अब रूह की तालाश है
बहुत ख़ूब-रू थे वो पल
जो दुनियां दारी से परे थे
नादानियां,बचपना, ये सारे
कभी हमारे साथ चला करते थे।

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