कोई समंदर से लड़ता है,
कोई दरिया को तरसता है,
अकेला शख़्स महलों में रहता है,
और एक परिवार छत को तरसता है,
कोई अनाज को रौंधता है,
कोई उस अनाज को तरसता है,
ये शरीफ़ अमीरों का ज़माना है,
यहां सिर्फ गरीब हर रोज मारता है,
क्या ग़ज़ब सियासत है तेरा भी ए खुदा,
दानव सिंहासन पर बैठता है,
इंसान कौड़ियों में बिकता है,-
हम ज़िंदगी के सताए हुए हैं
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ये जानते हुए कि वो शख़्स अब कभी हमारा नहीं होगा,
दूर इतने हुए कि सामना दोबारा नहीं होगा,
है जो ये सब कुछ हार कर बैठा शख़्स,
मुझे मालूम है इसकी फितरत,
ये शख्स अब दोबारा किसी का नहीं होगा।-
बहुत प्यासा हूं मै,मुझे पीने को समंदर चाहिए,
रिश्तों की मिठास ने मुझमें ज़हर फैला रखा है,
अगर मौत आई तो कह दूंगा,थोड़ी देर रुक,
खानदान में ही तुम्हारा कोई क़ातिल है,
ये सुनना हमें नागवार गुजरता है।
समंदर में रहने वाले तैरना सिख जाते हैं
लहरें भी उनसे भयभीत हो जाते है,
सलीका आना चाहिए समंदर से लड़ने का
समंदर से लड़ने वाले जीना सीख जाते है।
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साकी मैने कब कहा कि मैं आबाद हुआ,
जिन दोस्तों से मिला सिर्फ बर्बाद हुआ,
बस एक आखिरी दिली तमन्ना है,
उन्हें जी भर के देखने का,
सुना है उनसे जो भी मिला,
फिर कभी वो बर्बाद न हुआ।-
कोई तो हो जो हमे भी पिलाए,
इतना पीयू की होश न रह पाए,
नशा ऐसा की मै उससे भूल जाऊं,
मै उसे भूल जाऊं,मगर मै उससे याद रह जाऊं,
जब भी लिखी जाए उसकी तक़दीर में मुहब्बत,
उसे मुहब्बत तो हो,मगर कभी रास न आए।-
मै रोता हूं आज भी उसके ख़्याल में,
जिसके ख़्याल में भी मै ना रहा,
खो बैठा हूं होशो हवास मैं,
जिस चेहरे के ख़ातिर,
मै कब मरा मुझे ये भी ख़्याल नहीं।-
अगर इश्क होता तो डोर भी होता,
कहीं गांठ तो उसका कोई छोड़ भी होता,
तुमने बंधे गांठ को छोड़ दिया,
किसी ने धागे को तोड़ दिया,
तुमने खुदी छोड़ा है धागों को,
अगर इश्क होता तो वो डोर भी होता।-
अगर इश्क होता तो डोर भी होता,
कहीं गांठ तो उसका कोई छोड़ भी होता,
तुमने बंधे गांठ को छोड़ दिया,
किसी ने धागे को तोड़ दिया,
तुमने खुदी छोड़ा है धागों को,
अगर इश्क होता तो वो डोर भी होता।-
सुना है हिंद में कोई अजनबी आया है,
फ़िर से कोई मुगल गज़नबी आया है,
जो कभी मरा था कुत्ते की मौत,
उसका कोई नाज़ायज़ आया है।
बड़ी ख्वाहिशें ले कर वो वापस आया है,
वो हिंद को फ़िर से मिटाने आया है,
जो ना लड़ सका धर्म के लिए,
वो चुन चुन कर काटा जाएगा,
हिंद घिर चुका है चारों ओर से,
वो अब अपनी तादाद बढ़ाएगा,
पहले वो चक्रव्यू बनाएगा,
बीच में सब समा जाएगा,
हिंद बदलेगा रण भूमि में,
लहू से वो पट जाएगा,
कई मरेंगे धर्म युद्ध में,
धरती सिमट कर रह जाएगा।
कैसा होगा कलयुग का भारत,
जब काल मृत्यु बन तांडव मचाएगा।-
मै क्या लिखता हूं मुझे खुद भी मालूम नहीं,
फ़िर ख़ुद ही में सोचता हूं क्या-क्या लिखूं।
लिख कर फिर सोचता हूं
जो जाना ही नहीं मै उस पर क्या लिखूं।-