ज़िन्दगी बेरोक बढ़ती जा रही है,
फिर भी वक़्त ठहरा सा लगता है।
सूरज निकल कर घंटो हुए ,
फिर भी अंधेरा सा लगता है ।
उम्मीद की नाउम्मीदी में उलझा सा है मंजर,
मुझे कोई राज गहरा सा लगता है
आज दूर तलक दिखाई नहीं दिया,
सड़कों पे कोहरा सा लगता है ।
फूल ख्वाहिशों के इस बगान में थे,
आज उनपे पहरा सा लगता है ।
चाह तो दरिया की थी ,
यहां वीरान सहरा सा लगता है ।
ज़िन्दगी बेरोक बढ़ती जा रही है ,
फिर भी वक़्त ठहरा सा लगता है ।।-
शाम भी थी धुआं धुआं,
आंखो में भी अंधेरा था,
एक ख्वाब जो मैंने देखा था ,
उस पर चढ़ता अब कोहरा था।
न वक़्त को परवाह थी मेरी ,
न किस्मत पर अब भरोसा था,
जो रिश्ते मैंने संजोए थे,
उन पर नफरत का पेहरा था।
शाम भी थी .....
बहता - बहता सा पानी अब ,
कहीं पे जा कर ठहरा था ,
पग - पग मेरे साथ चला जो,
उस पर हक न मेरा था।।
शाम भी थी धुआं धुआं,
आंखो में भी अंधेरा था...-
ढूंढते रहे वो दराजों में हमें,
पुराने खतों में लिखे सवालों में हमें।
टटोला खूब यादों को,
खंगाल कर देख डाला सब ।
कुछ बातों , कुछ मुलाकातों में,
तौल कर देख डाला सब।
न देखा खुद का चेहरा,
न हटाया दिल का पहरा,
तलाशा खूब , मगर न हटाया मन का कोहरा।
बस यूं ही,
ढूंढते रहे वो दराजों में हमें,
पुराने खतों में लिखे सवालों में हमें।-
शाम भी थी धुआं धुआं,
आंखो में भी अंधेरा था,
एक ख्वाब जो मैंने देखा था ,
उस पर चढ़ता अब कोहरा था।
न वक़्त को परवाह थी मेरी ,
न किस्मत पर अब भरोसा था,
जो रिश्ते मैंने संजोए थे,
उन पर नफरत का पेहरा था।
शाम भी थी .....
बहता - बहता सा पानी अब ,
कहीं पे जा कर ठहरा था ,
पग - पग मेरे साथ चला जो,
उस पर हक न मेरा था।।
शाम भी थी धुआं धुआं,
आंखो में भी अंधेरा था....-
कभी हम मासूमियत में हुई चाहत को प्यार समझ लेते है, तो कभी चंद मुलाकातों में हुई उल्फ़त को मोहोब्बत ,
कभी कभी हम एक पागलपन को इश्क़ का जुनून मान लेते है। ओर रिश्तों के दलदल में धसते चले जाते है
हम इंसान बड़े ही भोले होते है, कब किसे अपना वक़्त ओर व्यक्तित्व सोंफ देते है एहसास ही नही होता
मगर रिश्तों का ये हार कब हमारे गले का फंदा बन जाता है पता ही नही चलता, क्या तब भी उसे पहने रखना मुनासिब है?
बस यही सवाल मन मे आते ही उसने उस हार को उतार फेंका ,ये सोचे बिना की उस हार का एक एक मोती किसी ने अपने जज्बातों से पिरोए थे।-
अनजानी सी राहे ,न मंज़िल का पता है,,,
बलखाती सी लहरे, न साहिल का पता है,.
बड़ी नाज़ुक है सिलवट, मोहोब्बत का सफर है,,
धड़क आहिस्ता से ए दिल, जाना कहा है,,
न तुझको पता है , न मुझको पता है।-
बड़ा विकट संसार अजब ये, करतल ध्वनियों का स्वामी,,
दूर दूर तक जहाँ भी देखो सब हैं तमाशे के ज्ञानी-
दिन भर की थकान को जब मेरे हवाले कर , सीने में सर रखकर तुम अपनी सपनो की दुनिया में अक्सर ही खो जाया करती, तो तुम्हे देखकर अपनी किस्मत पे नाज़ किया करता, उस रोज़ जब तुम्हे कहानियां सुनाते , एक हाथ से थपकियां देते हुए सुलाया तो दूसरा हाथ जो तुमने धीरे से पकड़ रखा था , अचानक कस कर पकड़ लिया, लगा की कोई तुम्हारे सपने में ,मुझे तुमसे दूर करने की साजिश कर रहा हो,,,,,मैंने तुरंत आने दोनो हाथो के बीच तुम्हारे हाथो को थाम लिया,और सारी रात कस कर पकड़ के रखा ताकि यदि वो लोग मुझे तुमसे दूर कर भी दे , तो तुम घबरा कर उठो तो खुद को मेरे उतने ही करीब पाओ जितना की उस दुनिया में जाने के पहले।।
-
मई की गरम दोपहरी में ,,जब बैठी मेरा हाथ पकड़,
तो लगा की ,जैसे सावन की अब झड़ी ही लगने वाली है।।
सूख चुकी उस डाली को जब छुआ जान ने हाथो से,
तो लगा की , उसमे कोमल सी एक कली ही खिलने वाली है।।
मई की गरम दोपहरी में, जब बैठी मेरा हाथ पकड़
खामोश बहती उस नदिया का , पानी जो उछाला हाथो से,
तो लगा की दीद रूहानी में बस लहर सी उतने वाली है।।
मई की गरम दोपहरी में, जब बैठी मेरा हाथ पकड़
मेरे माथे पे आते पसीने को जब फूंका उसने होंठो से,
तो लगा की ,जैसे लपटों में अब बर्फ ही घुलने वाली है।।
मई की गरम दोपहरी में जब बैठी मेरा हाथ पकड़
सिर पे चढ़ते सूरज को जब देखा उसने एक नज़र,
तो लगा की, जैसे सूरज को एक बदरी ढ़कने वाली है।।
मई की गरम दोपहरी में ,जब बैठी मेरा हाथ पकड़
धीरे से अपने हाथो से जो छुआ है मेरे सीने में,
तो लगा की , उसकी धड़कन अब मेरे दिल में बजने वाली है।।
मई की गरम दोपहरी में , जब बैठी मेरा हाथ पकड़-
ये लड़की भी यारो कमाल करती है ,
एक ही वक़्त में कई काम करती है,
जला लेती है हाथ , सेंकते-सेंकते वो रोटियां,
फिर भी मेरे बेकार , सवालों को जबाब करती है ।।
ये लड़की भी यारो कमाल करती है......
पढ़ाते पढ़ाते छुटकी को, वो भूल जाती है गिनतियां,
फिर भी मुझे रूठे से, बहाल करती है।।
ये लड़की भी यारो कमाल करती है.....
फर्स्ट डिवीजन के लिए , वो जागती है रतियां,
फिर भी छुपाकर फोन सिरहाने पर, मुझे सुलाया करती है।।
ये लड़की भी यारो कमाल करती है....
शक - शूबा , सवाल - जवाब , वाजिब नहीं यारो,
बस इंतजार करता हूं , और वो सब संभाल लिया करती है।।
ये लड़की भी यारो कमाल करती है ......
डांट- डपट पर ले लेती है, सगुन चाय की प्यालीयां,
फिर भी रात - दिन नाम मेरा पुकारा करती है।।
ये लड़की भी यारो कमाल करती है,
एक ही वक़्त में कई काम करती है।।-