Kabhi kabhi lagta hai ki tu ek khwaab hai,
Agar esa h to m neend se kabhi uthu naa.
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Maine tere jane ka gam, tere jaane se pahle bhi kayi baar manaya thaa..
Yu he to nahi tere jaane p meri aankh se ek bhi aansu naa aaya thaa..
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Much happened behind the curtains
That broke me
Much happened behind the Walls
That choked me
Much happened in front of my eyes
That i ignored
Much happened inside my heart
Which made my soul roar
Something was hidden in those words
That i didnt record
Lies were sold to meh
Blended with the words of Lord
A bag full of phony promises
Handed to me with a smile
Was neither in nor out
Knew won't walk down the aisle
Preet Maan
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डूबा है उसमें तू, जो कब का गुज़र चूका है
चुभता है आज भी वो, जो बरसों पहले बिखर चूका है
निकाल इन रिश्तों के दरिया से खुद को,
देख वक़्त के साथ तू कितना निखर चूका है-
देखती है आईना जब भी वो,
उसे अक्सर एक चीख़ सुनाई देती है
बिखरा सा काजल और ग़मगीन आँखें,
जाने किसकी ये तस्वीर दिखाई देती है
भागती है दिन रात जिस सच से वो,
आईने में उसे अपनी ही हकीकत दिखाई देती है
कि ये उसकी ही परछाई है,
जो उसे इस क़दर तन्हा दिखाई देती है-
हँसती खेलती एक तितली जब आती है आँगन में,
खुलकर उस पर प्यार बरसाते हैं लोग
उजागर करती है घर आँगन जिसका,
जाने क्यों वक्त के साथ बदल जाते हैं वही लोग
पलती बढ़ती है जिन हाथों में,
कैसे उसे समाज की बेड़ियों में बांधते है लोग
क्या उन्हें दर्द नहीं होता,
जब अपनी ही तितली के पंख काटते है लोग?
तरस गई उसकी निगाहें एक टुकड़ा आसमां को,
रोती उस आवाज को क्यों न पहचान सके लोग??
ठंडी पड़ी है जब उसकी साँसें आज,
मुरझाने पर उसके फिर उड़ने की दुआ क्यों मांगते है लोग?
जीते जी दो लफ्ज़ प्यार को तरसी जो,
मरने के बाद उस से कुछ ऐसे वफ़ा निभा रहे है लोग
जिन्दा जिसकी क़दर न कर सके,
मरने पर उसके आज आँसू बहा रहे है लोग।।
- Preet maan
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देखा है हमने आज भी उसकी उदास आँखें नम हैं
मुस्कुराते उस चेहरे के पीछे छुपे न जाने कितने गम हैं-
तेरे इश्क़ की बहुत बड़ी क़ीमत चुकाई है हमने
अपने हाथों से अपने ही घर में आग लगाई है हमने
गुलाब की चाहत में काटों से भी दोस्ती निभाई है हमने
तेरी बेवफ़ाई याद कर रोते थे घंटो,ऐसी भी रातें बिताई है हमने-
झूठे हैं लोग और झूठी है उनकी बातें,
मत करना भरोसा किसी भी आवाज़ पर,
धोख़ा दे जाती हैं अक्सर अपनों की ही आँखें ।
- Preet maan
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मोहब्बत का है सौदा मगर जिस्मों पर क़ीमत लग रही है
देख़ आकर बाज़ार-ए-इश्क़ में बेहिसाब ये हवस बिक रही है।
किसे क़दर है पाक रिश्तों की यहाँ ?
ज़ज्बातों की आड़ में तो महज़ जिस्मों की प्यास बुझ रही है।
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