हँसती खेलती एक तितली जब आती है आँगन में,
खुलकर उस पर प्यार बरसाते हैं लोग
उजागर करती है घर आँगन जिसका,
जाने क्यों वक्त के साथ बदल जाते हैं वही लोग
पलती बढ़ती है जिन हाथों में,
कैसे उसे समाज की बेड़ियों में बांधते है लोग
क्या उन्हें दर्द नहीं होता,
जब अपनी ही तितली के पंख काटते है लोग?
तरस गई उसकी निगाहें एक टुकड़ा आसमां को,
रोती उस आवाज को क्यों न पहचान सके लोग??
ठंडी पड़ी है जब उसकी साँसें आज,
मुरझाने पर उसके फिर उड़ने की दुआ क्यों मांगते है लोग?
जीते जी दो लफ्ज़ प्यार को तरसी जो,
मरने के बाद उस से कुछ ऐसे वफ़ा निभा रहे है लोग
जिन्दा जिसकी क़दर न कर सके,
मरने पर उसके आज आँसू बहा रहे है लोग।।
- Preet maan
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