सोचा था बेटे को कंधे पर दुनिया घुमाऊंगा
मगर पता नहीं क्यों आज अच्छा नहीं लगता
पत्नी के साथ लंबी सैर पर जाऊंगा
मगर पता नहीं क्यों आज अच्छा नहीं लगता
छाले जब तक हाथों में थे ठीक था
मगर आज पैरों में है अच्छा नहीं लगता
अब बस किसी तरह अपने घर पहुंच जाऊं
क्योंकि अब यह शहर भी अच्छा नहीं लगता
खूब रंगी खून से राजनीति कि दिवारें अपनी
मगर आज जो तुम कर रहे हो अच्छा नहीं लगता-
Karke dekho acha lagta hai
बम्बइ को सलाम करते उठी थी जिंदगी मेरी
बस एक ख्वाहिश थी कि इस सलाम का जवाब कुछ तालियों से मिल जाए
उस मदारी का खेल देख हम तालिया ही बजाते रह गए
और वह खामोशी से जिंदगी पर पर्दा गिरा गया
मां के सिकुड़ते ख्वाब में तो शामिल नहीं हो सका
लेकिन आज मां तुझ से मुलाकात मुकम्मल हो जाएगी-
अल्लाह की रहमत का भी जवाब नहीं,
परदा दिया तो वह भी बराबर
औरत की शक्ल पे और मर्दों की अक्ल पे-
अल्लाह की रहमत का भी जवाब
नहीं परदा दिया तो वह भी बराबर
औरत की शक्ल पे और मर्दों की अक्ल पे-
बहुत सारे इश्क करता हूं
मैं इश्क नहीं अदाकारी करता हूं
एक से ही सौ दफा करता हूं
रोज़ टुटता हूं ,मगर इश्क में ईमानदारी करता हूं
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ग़म अगर जिंदगी में होता तो काट लेते
मगर यहां तो ज़माना ही नाक़ाबिले-बरदाश्त है-
वक्त गुज़रे मौसम गुज़रे
मगर 47 के धब्बे आज भी नजर आते हैं
जब भी कोई पत्थर उछाला जाता है
वह 47 के शोले फिर धधक जाते हैं
दिल रोता है पर कहने से कतराते हैं
क्योंकि वह जख्म फिर नजर आ जाते हैं
बेवकूफ था वो इंसान जिसने कहा नाम में क्या रखा है
गौर से देख बशर्ते जहां में मरने वाले का पता रखा है
मिल गया वो खंजर जिससे हुआ था कत्ल मेरा
उस पर किसी के हाथों का धुंधला निशा नजर आते है
क्योंकि बहुत वक्त गुजर चुका है
मगर वह 47 के धब्बे आज भी नजर आते हैं-
पता नहीं कौन बेवकूफ कहता है
इन्सान भगवान की सबसे खूबसूरत रचना है,
शायद इन्सान हि कहता होगा-
देवेश
साठ लाख साल लग गए मुझे इंसान को बनाने में,
और तुम हर जिंदा शरीर को इंसान कहते हो ।
सदियां बीत गईं मेरी एक घर बनाने में ,
और तुमने एक पल ना सोचा माचिस जलाने में ।
इश्क इतनी आसानी से फैलाया जा सकता तो यह मिलता हर आशियाने में,
तो इंसान एक बार जरूर सोच नफरत फैलाने में ।
लगता है शायद मैंने ही गलत समझ लिया
अभी कुछ और समय लगेगा इंसान में इंसानियत जगाने में।
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वक्त
काश ऐसा हो की ये गमगीन वक्त गुजर जाए और लौटकर फिर कभी ना आए,
कहीं ऐसा भी ना हो कि लौटकर तो आएं वो पर हम कभी ना मिल पाएं
हो सके तो अपने वक्त से कुछ वक्त निकाल लेना,
कि कुछ वक्त संग भी बिता लें तो क्या पता यह गमगीन वक्त भी गुजर जाए।
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