यादों की उलझन   (Jiya (यादो की उलझन))
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Joined 13 May 2018


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Joined 13 May 2018

नाउम्मीदी के सागर में गोते खाते खाते 
हमने ख़ुद को खो दिया तुम्हे पाते पाते 
यूं तो कोई शब्द घावों पर मरहम हो नहीं सकता 
पर फिर भी कहो क्या कहोगे जाते जाते 

तरकश में तीर है हाथों में तलवार भी 
फिर जंगे सारी हार गई मैं जीत के करीब आते आते 
किस्मत में क्या है ये समझ से परे है 
थक चुकी हूं सारे भगवानों को मनाते मनाते 

लोग उंगलियां उठाते है आते जाते 
नहीं समझते वक्त लगता है अंजाम को पाते पाते 
रात ढली तो चुकी है सहर भी होगी 
मैं पा लूंगी सब कुछ ख़ुद को पाते पाते 

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यादें आए जब जब तेरी
यादें भी ज्यादा ना हो

जब प्रेम करे मुझसे कोई
वजह कोई वादा ना हो

मैं रूक्मणी बन जाऊंगी
यदी तुम्हारी कोई राधा ना हो

राहें तुम्हारी चुन भी लूं
चाहे रहो में कोई बाधा भी हो

ये प्रेम मुझे स्वीकार है
यदी प्रेम तुम्हारा आधा ना हो

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एक काश की फुरकत में है
हम फिलहाल फुरसत में है

ये मेरी फितरत में नहीं था
जो अब मेरी आदत में है

जिसे कल तक नजरे पहचानती नहीं थी
वो आज मेरी इबादत में है

खाली शब और श्याह लगती है
राज़ अब भी परदे में है

ख़्वाब बड़ा एक देखा था
देखो अब क्या अंजाम मेरी किस्मत में है

एक दिन यूं होगा कि मेहरबानियां होगी
और हम कहेंगे कि बरकत में है

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The idea of us was beautiful
untill one day you left my city







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Let him go he was never yours....


Yes maybe you were good friends
Following the same trends
But now he will have to go
And this is how the story ends


Hope we will meet again

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वैसे तो सब कुछ ठीक हैं.......
पर एक काश हैं जो रह जाता है
जाने क्या क्या कह जाता है......






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सन्नाटे सब कुछ कह जाते है
बस हम ही चुप रह जाते है

सबको मिलती है मंजिल
हम क्यों राहें तकते रह जाते है

मेरी ही क्यों बारी नही आती
बाकी तो सब लोग कुछ कुछ कह जाते है

उन न दिखने वाले घावों को
हम क्यों यूं ही बेबस सह जाते है

मैं पूछूं किस्से की मेरी बारी कब आयेगी
हम क्यों बचते बचते रह जाते है

फिर से सारे अरमानों को पक्का करो
और फिर से सारे ख्वाब ढह जाते है

आखरी कब तक ये खेल चलेगा यारा
आसू कहते कहते बह जाते है

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In the world of two linears
I am an incomplete poetry






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अब इत्तेफाकन मिलने की कोई गुंजाइश न रही
तुझसे मिलने की कोई भी ख्वाहिश न रही
मेरे शहर से तुम क्या गए हो
इस शहर में कोई रवाइश ना रही







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जिंदगी थोड़े तो इम्तिहान लेगी ना चलो मंजूर है
इसके बाद जो जीत मिलेगी वह भी तो भरपूर है
सबको होगा अपनी जीत का बहुत गुमान
मुझे भी मेरी हार पर गुरूर है
जिंदगी थोड़े तो इम्तिहान लेगी ना चलो मंजूर है




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