यादों की उलझन   (Jiya (यादो की उलझन))
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Joined 13 May 2018


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सन्नाटे सब कुछ कह जाते है
बस हम ही चुप रह जाते है

सबको मिलती है मंजिल
हम क्यों राहें तकते रह जाते है

मेरी ही क्यों बारी नही आती
बाकी तो सब लोग कुछ कुछ कह जाते है

उन न दिखने वाले घावों को
हम क्यों यूं ही बेबस सह जाते है

मैं पूछूं किस्से की मेरी बारी कब आयेगी
हम क्यों बचते बचते रह जाते है

फिर से सारे अरमानों को पक्का करो
और फिर से सारे ख्वाब ढह जाते है

आखरी कब तक ये खेल चलेगा यारा
आसू कहते कहते बह जाते है

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In the world of two linears
I am an incomplete poetry






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अब इत्तेफाकन मिलने की कोई गुंजाइश न रही
तुझसे मिलने की कोई भी ख्वाहिश न रही
मेरे शहर से तुम क्या गए हो
इस शहर में कोई रवाइश ना रही







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जिंदगी थोड़े तो इम्तिहान लेगी ना चलो मंजूर है
इसके बाद जो जीत मिलेगी वह भी तो भरपूर है
सबको होगा अपनी जीत का बहुत गुमान
मुझे भी मेरी हार पर गुरूर है
जिंदगी थोड़े तो इम्तिहान लेगी ना चलो मंजूर है




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आज की हार स्वीकार है
कल की जीत का इंतजार है


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सब कुछ पाकर भी तुम कौन हो
तुम शुन्य हो अगर मौन हो








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दिल को हर शक्स पर वारा नही करते
ये मोहब्बत है दोबारा नहीं करते




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मैं कोई नाजुक सा पौधा नहीं
जो एक आंधी से उड़ जाऊं
मैं झुक गया हूं फिर से खड़ा होने के लिए



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तुझे गले लगा कर हर गम बताना है
मै क्यों कहूं कि ये गले लगाने का बस एक बहाना है





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सुरते हजार देखी सबके सदके वारे
बस एक ही मलाल रहा हो न सके तुम्हारे





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