लिख दो शोहरत को नाम मेरे के दरोदीवार मुझसे, शख्शियत मेरी पूछते हैं, मैं आइनों से जी चुराने लगा हूँ आजकल जब भी मिलते हैं मुझसे, सवाल कई पूछते हैं, कोई नहीं कहता है के, कहो किस हाल में हो ना जाने आँखों में मेरी कौनसा तंगेहाल देखते हैं, — % &
क्या है और क्या था, ये सवाल अब भी बाकी है, तुम्हारी अधूरी बातों का हिसाब अब भी बाकी है, कुछ ख्वाब थे, जो अब सिमटे-सिमटे से रहने लगे है, देखो मिजाज दिल की धड़कनों का, सब मुकम्मल सा लगता है, ये खयाल अब भी बाकी है,— % &
के कदम दर कदम साथ चलेंगे ताउम्र, बड़ी सादगी से निभाएंगे कसमे वादे सारे, कुछ नादानियों के भी किस्से दोहराएंगे हम, एक आरज़ू ये भी रहेगी, के तेरे अलावा, फिर कभी किसी को न चाहेंगे हम।
कुछ गुलाब थे, कुछ मोगरे और कुछ चम्पा मैं बस इक फूल था और कुछ नहीं कुछ चाँद थे, कुछ सितारे थे, कुछ रौशनी मैं बस आसमां था और कुछ नहीं कुछ ख्वाब थे, कुछ ख़्वाब की ताबीर थे और कुछ ख्वाबों का आशियाना मैं बस एहसास था और कुछ नहीं।
दिल के वीराने को ही अपना कारवाँ बना लिया, मौजूद रहती है जहाँ तन्हाइयाँ उस ज़मी को अपनी माशूका सा सजा लिया, हरफ़ दर हरफ़ लिख के मायूसी की दास्तां आखिरी किस्सा भी वफ़ा का दफ्ना दिया।