श्रावण उत्तर, लाग्यो भादवो
अब तो जाहर वीर -रो एक महिणा रो मेळो भर -सी
कोई नौकरी सु छुटटी लेर आसी
कोई खेती-बाड़ी न छोड़
तो एह छोटकीया टाबर तो छुटटी हाळे दिन
बाबे की पूरी रात ही हाजरी भर -सी
और धोळू तो आ नहन्या टाबरा र मनोरंजन रो मुख्य साधन बण-सी
अब तो रात न बहार जाण वास्ते घरका भी रोळा कोणी कर -सी
कोई ढ़ोल बजा-सी
कोई नाच-सी, कोई बर्तन मांज-सी
तो कई मेऱ जिस्या चाय पिसी और
कोरी ग्वायहा कर-सी
आधी हाली ज्योत र माथे ताजणे पर बोळा भगत थिरक-सी
और बाबो आपरो सकट होण रो प्रमाण धर-सी
कल्याण सिंह जी तो इण बुढ़ापे माथे भी खुद न
अखंड समर्पित कर-सी
और, ओरा न भी प्रेरित कर-सी
साँची बताऊ तो महिणो कोणी
सुकून, आंनद, उंमग और उल्लास है
जीण भाया न छुटटी कोणी मिली उण न पूछ लेया
बे आपरा भाईला न दादोसा हाळे जागरण र दिन तो
समय निकाळ ज़रूर वीडियो कॉल कर-सी
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